
#NewsBytesExplainer: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ा कानूनी विवाद क्या है?
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक बेंच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही है और जल्द ही इस पर फैसला आ सकता है।
यह एक ऐसा विवाद है, जो लगभग 57 साल पुराना है और इस पर विभिन्न कोर्ट कई बार फैसला सुना चुके हैं।
चलिए फिर आपको विस्तार से बताते हैं कि AMU के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़ा ये पूरा विवाद क्या है।
अल्पसंख्यक दर्जा
सबसे पहले जानें अल्पसंख्यक दर्जा क्या होता है
संविधान का अनुच्छेद 30(1) सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार देता है।
यह प्रावधान अल्पसंख्यक समुदायों की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।
केंद्र सरकार यह गारंटी देती है कि यह 'अल्पसंख्यक संस्थान' होने के कारण इन संस्थानों को सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगी।
बता दें, अल्पसंख्यक समुदाय वे होते हैं, जो संख्या में कम हों।
स्थापना
AMU की स्थापना कब और कैसे हुई?
AMU मूल रूप से सर सैयद अहमद खान द्वारा मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (MOA) कॉलेज के रूप में 1875 में स्थापित किया गया था।
सर सैयद ने MOA की स्थापना मुसलमानों में शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने और उन्हें सरकारी सेवाओं के लिए तैयार करने में मदद करने के लिए की थी।
उन्होंने महिलाओं के शिक्षा की भी वकालत की थी।
1920 में संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया और MOA कॉलेज की सभी संपत्तियां AMU को हस्तांतरित कर दी गईं।
विवाद
AMU का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पहली बार कब विवाद में आया?
AMU के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे पर कानूनी विवाद 1967 में शुरू हुआ था।
तब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केएन वांचू के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में इस पर अहम फैसला सुनाया था।
कोर्ट ने कहा था कि चूंकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, इसलिए इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
उसने कहा कि 1920 में विश्वविद्यालय को मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित नहीं किया गया था।
दर्जा
फिर कैसे AMU को वापस मिला अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिमों के विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1981 में AMU अधिनियम में एक संशोधन किया, जिससे AMU को फिर से अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा मिल गया।
इस संशोधन के जरिए अधिनियम में धारा 2(L) जोड़ी गईं, जिसमें 'विश्वविद्यालय' को 'भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान' के तौर पर परिभाषित किया गया।
इसके अलावा उपधारा 5(2)(C) जोड़कर विश्विद्यालय को मुस्लिमों के सांस्कृतिक और शैक्षणिक विकास को बढ़ावा देने का अधिकार दिया गया।
2006
2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या फैसला दिया?
2005 में AMU ने एक नई आरक्षण नीति लागू कर स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों की 50 प्रतिशत सीटें मुस्लिमों के लिए आरक्षित कर दीं।
इस आरक्षण को 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने अजीज पाशा मामले का हवाला देते हुए कहा कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है और इसलिए मुस्लिमों को आरक्षण नहीं दे सकता।
केंद्र सरकार और AMU प्रशासन ने 2006 में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
कोर्ट
भाजपा की सरकार आने के बाद बदला केंद्र का रुख
भाजपा के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार ने 2026 में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह अपील वापस लेना चाहती है।
सरकार ने कहा कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में अल्पसंख्यक संस्थान स्थापित नहीं किया जा सकता।
इसके बाद मामले में AMU प्रशासन एकमात्र याचिकाकर्ता रह गया।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने 12 फरवरी, 2019 को मामले को 7 जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया, जो अब इस पर सुनवाई कर रही है।
सरकार
मामले पर मोदी सरकार का क्या कहना है?
कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के विपरीत मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा न दिया जाए।
सरकार ने कहा कि AMU के राष्ट्रीय चरित्र को देखते हुए यह किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय का विश्वविद्यालय नहीं हो सकता।
सरकार के अनुसार, कानून में संशोधन की पूरी प्रक्रिया के दौरान AMU के राष्ट्रीय और गैर-अल्पसंख्यक होने के चरित्र की समझ स्पष्ट रही है।