CJI ने दिए संकेत, 7 न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा जा सकता है राजद्रोह का मामला
राजद्रोह कानून की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट 7 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को भेज सकता है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने 22 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह किया। वकीलों ने तर्क दिया कि 1962 में केदारनाथ सिंह बनाम बिहार मामले में 5 न्यायाधीशों की पीठ ने राजद्रोह कानून की वैधता बनाए रखी थी और अगर इसकी समीक्षा हो तो मामले को 7 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा जाए।
CJI ने वकीलों के तर्क पर जताई सहमति
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने वकीलों के तर्क पर अपनी सहमति जताई और कहा कि वह प्रासंगिक आदेश जारी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट मामले में दायर की जाने वाली सभी लिखित दलीलों और पुराने मामलों को संकलित करने के लिए नोडल वकील नियुक्त कर चुका है। मामले की सुनवाई अब जनवरी में हो सकती है। बता दें कि 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को सौंपने का फैसला किया था।
राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज करने पर लगी हुई है रोक
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत निर्धारित राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2022 में रोक लगा दी थी और केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को इस कानून के तहत मामला न दर्ज करने को कहा था। इसके अलावा धारा 124A के तहत लंबित जांचों, अपीलों और कार्यवाहियों को भी स्थगित कर दिया गया था। कई अधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप था कि राज्य द्वारा इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।
न्यूजबाइट्स प्लस
सरकार के प्रति असंतोष पैदा करने के लिए धारा 124A के तहत राजद्रोह में अधिकतम आजीवन कारावास का प्रावधान है। इसे आजादी से 57 साल पहले और IPC के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में दंड संहिता में जोड़ा गया था।