'मेक इन इंडिया' नीति के कारण भारतीय सेनाओं के पास हथियारों की कमी- रिपोर्ट
केंद्र सरकार द्वारा लाई गई 'मेक इन इंडिया' नीति भारत को चीन और पाकिस्तान से लगातार बढ़ते खतरे के बीच पहले की तुलना में ज्यादा असुरक्षित बना रही है। इस नीति के कारण सेना पुराने हथियारों को बदलने के लिए विदेशों से आधुनिक हथियार प्रणालियों का आयात नहीं कर सकती है। ऐसे में सेनाओं में 2026 तक हेलीकॉप्टर और 2030 तक लड़ाकू विमानों की कमी होने का खतरा बढ़ गया है। मामले से जुड़े अधिकारियों ने यह खुलासा किया है।
क्या है 'मेक इन इंडिया' नीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में देश में रोजगार पैदा करने और विदेशी मुद्रा को बाहर जाने से रोकने के लिए 'मेक इन इंडिया' नीति को लागू किया था। इसके तहत मोबाइल फोन से लेकर लड़ाकू विमानों तक का निर्माण किया जाना था। इस नीति के लागू होने के आठ साल बाद भी भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हथियारों का निर्माण नहीं कर पाया है। यह तीनों सेनाओं के लिए चिंता का विषय है।
सरकार ने सेनाओं में घेरलू उत्पादों की अनिवार्यता बढ़ाई
केंद्र सरकार की यह नीति भारतीय सेनाओं में 30 से 60 प्रतिशत देश में बने उपकरणों और हथियारों को शामिल करना अनिवार्य करती है। जबकि पूर्व में इस तरह का कोई नियम नहीं था। इतना ही नहीं सरकार ने घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए खरीद का एक बड़ा हिस्सा उत्पादन प्रणालियों के विकास में खर्च कर दिया। इससे सेनाओं के पास खरीद का बजट कम हो गया और आवश्यक उपकरण और हथियार भी नहीं मिल पा रहे हैं।
चीन और पाकिस्तान से बढ़ा भारत को खतरा
भारतीय सेनाओं में हथियारों और लाड़ाकू विमानों की कमी ने देश की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। वर्तमान में भारत का चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव चल रहा है। गलवान घाटी हिंसा के बाद से चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लगातार खुद को मजबूत कर रहा है। इसी तरह पाकिस्तान लगातार घुसपैठ कर रहा है। ऐसे में अब भारत को चीन से मुकाबले के लिए सीमा पर पहले की तुलना में दोगुने सैनिकों की आवश्यकता होगी।
अधिकारियों ने नाम उजागर करने से किया इनकार
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना में मामले से जुड़े अधिकारियों ने स्थिति बताने के साथ अपना नाम उजागर करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि भले ही सरकार ने रक्षा उपकरणों में स्थानीय खरीद को बढ़ावा दिया है, लेकिन पिछले आठ साल में देश में डीजल-इलेक्टि्रक पनडुब्बियों और दो इंजन वाले लड़ाकू विमानों का निर्माण शुरू नहीं हो सका है। सरकार देश में बने एकल इंजन वाले लड़ाकू विमानों के इस्तेमाल पर ही जोर दे रही है।
वायुसेना की हालत सबसे अधिक खराब
अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में वायुसेना की स्थिति सबसे अधिक खराब है। 2030 तक वायुसेना के पास 30 से कम लड़ाकू स्क्वाड्रन रह सकते हैं, जबकि चीन और पाकिस्तान से मुकाबले के लिए 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है। अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान में छह लड़ाकू स्क्वाड्रनों को बेड़े से हटाने की स्थिति है, क्योंकि उनका कार्यकाल लगभग पूरा हो चुका है। बता दें कि एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 लड़ाकू विमान शामिल होते हैं।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड हर साल कर रही महज आठ तेजस विमानों का निर्माण
अधिकारियों ने बताया कि बेंगलुरू स्थित डिफेंस निर्माण कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड हर साल केवल आठ स्वदेशी फाइटर जेट तेजस का निर्माण कर सकती है। हालांकि, कंपनी ने साल 2026 तक निर्माण क्षमता दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध से सप्लाई चेन बाधित होने से इसमें देरी हो सकती है। इसी तरह सेनाओं में हेलीकॉप्टर की भी कमी आ रही है। 80 प्रतिशत हेलीकॉप्टर तक 30 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं।
2026 तक अवधि पार हो जाएंगे अधिकतर हेलीकॉप्टर
एक रक्षा अधिकारी ने कहा कि सेना के पास मौजूद एकल इंजन वाले हेलिकॉप्टरों में अधिकांश 2026 तक उपयोग में लेने की स्थिति में नहीं रहेंगे। इसके उलट घरेलू स्तर पर बनाए जा रहे हल्के हेलीकॉप्टरों के 2030 के अंत तक तैयार होने की संभावना नहीं है। अधिकारी ने कहा कि रूसी कामोव-226 टी हेलीकॉप्टरों के निर्माण की योजना भी अभी तक अमल में नहीं आई है। इसका कारण लागत पर असहमति और स्वदेशी उपकरणों की कमी है।
सेना ने रक्षा मंत्रालय को दी थी प्रतिबंधों की अनदेखी करने की सलाह
एक रक्षा अधिकारी ने कहा कि पिछले साल भारतीय सेना ने रक्षा मंत्रालय को प्रधानमंत्री मोदी के आयात प्रतिबंधों को नजरअंदाज करने और कुछ दर्जन बहुप्रतीक्षित उपयोगिता वाले हेलीकॉप्टर खरीदने की सलाह दी थी, लेकिन इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।