#NewsBytesExplainer: ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कैसे और किन तकनीकों की मदद से होगा?
ज्ञानवापी मस्जिद के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वे का रास्ता साफ हो गया है। आज इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे को मंजूरी दे दी। हाई कोर्ट ने कहा कि न्याय के हित में ये जरूरी है कि परिसर का सर्वे किया जाए। अब खबर है कि शुक्रवार सुबह ही ASI परिसर का सर्वे शुरू करेगा। आइए जानते हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किस तरह किया जाएगा और इसके जरिए किन सवालों के जवाब मिलेंगे।
सबसे पहले सर्वे से जुड़ा कोर्ट का आदेश जानिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया है, जो तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इसके साथ ही सभी अंतरिम आदेश अप्रभावी हो गए हैं। मुस्लिम पक्ष ने अपने बचाव में सर्वे से ढांचे को नुकसान पहुंचने की दलील दी थी, जिन्हें कोर्ट ने खारिज कर दिया। हालांकि, सर्वे के दौरान ASI किसी भी तरह की खुदाई नहीं कर सकेगा। खुदाई के लिए कोर्ट की अनुमति लेनी होगी।
परिसर में कहा-कहां होगा सर्वे?
24 जुलाई को जब थोड़ी देर के लिए ASI ने परिसर का सर्वे किया था, तब दीवार, गुंबद, चबूतरे और परिसर की बाकी जगहों का सर्वे किया गया था। इस आधार पर कहा जा सकता है कि ASI की टीम इन जगहों का सर्वे करेगी। वजूखाने का सर्वे नहीं होगा क्योंकि इसे सील कर दिया गया है। पहले हुए वीडियोग्राफी सर्वे के दौरान यहां मिली एक संरचना को हिंदू पक्ष ने शिवलिंग, जबकि मुस्लिम पक्ष ने फव्वारा बताया था।
किस तरह होगा सर्वे?
ASI ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) सर्वेक्षण, कार्बन डेटिंग पद्धति और अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर इस काम को अंजाम देगी। इसके अलावा वास्तुकला और चित्रकारी की बनावट के आधार पर भी सर्वे किया जाएगा। गुंबदों के नीचे GPR तकनीक के जरिए सर्वे किया जाएगा। जरूरत पड़ने पर यहां खुदाई भी की जा सकती है। परिसर में मिलने वाली सभी वस्तुओं की एक सूची बनाकर उनकी सामग्री और कार्बन डेटिंग के जरिए उम्र का पता लगाया जाएगा।
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
किसी भी वस्तु की उम्र पता करने के लिए कार्बन डेटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पता लगता है कि कोई संरचना कितनी पुरानी है। इस तकनीक के जरिए हर उस वस्तु की सटीक उम्र पता की जा सकती है, जिसमें कार्बनिक तत्व होते हैं। इस तकनीक की खोज 1949 में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। इस आविष्कार के लिए लिबी को नोबल पुरस्कार भी मिला था।
क्या होती है GPR तकनीक?
GPR तकनीक में उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगों का इस्तेमाल कर जमीन के नीचे की वस्तुओं की रडार इमेज तैयार की जाती है। इसमें विद्युत चुंबकीय तरंगों को जमीन के नीचे भेजा जाता है, जो किसी संरचना से टकराने के बाद परावर्तित होती हैं। इन परावर्तित किरणों को एक रिसीवर ग्रहण करता है और उन्हें डिजिटल इमेज में बदलता है। इसके जरिए जमीन के नीचे पाइप, केबल और कंक्रीट जैसी वस्तुओं का पता लगाया जा सकता है।
सर्वे से किन सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद?
वैज्ञानिक सर्वे के जरिए देखा जाएगा कि क्या मस्जिद और इसका परिसर किसी अन्य संरचना (मंदिर) के ऊपर बने हुए हैं, जैसा हिंदू पक्ष दावा करता है। इसके अलावा परिसर में जो हिंदू धर्म से संबंधित चीजें मिली हैं, उनकी उम्र का पता लगाकर ये जानने की कोशिश की जाएगी कि ये मस्जिद से पुराने हैं या नहीं। संरचना के ऊपर गुंबद कब बनाए गए और ये कितने पुराने हैं, इन सवालों का जवाब जानने की कोशिश भी की जाएगी।
ज्ञानवापी से जुड़ी सुनवाई में अब तक क्या-क्या हुआ?
5 हिंदू महिलाओं ने वाराणसी जिला कोर्ट में ज्ञानवापी परिसर में मां शृंगार गौरी की सालभर पूजा करने की इजाजत मांगी है। इस पर 21 जुलाई को वाराणसी जिला कोर्ट ने परिसर का ASI सर्वे कराने का निर्देश दिया था। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट गया था, जिसके बाद सर्वे पर 3 अगस्त तक रोक लगा दी थी। अब हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।