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    क्या है कृष्ण जन्मभूमि विवाद और 1968 में हुए किस समझौते को दी गई चुनौती?
    क्या है कृष्ण जन्मभूमि विवाद और 1968 में हुए किस समझौते को दी गई चुनौती?

    क्या है कृष्ण जन्मभूमि विवाद और 1968 में हुए किस समझौते को दी गई चुनौती?

    लेखन भारत शर्मा
    May 20, 2022
    01:48 pm

    क्या है खबर?

    मथुरा की जिला अदालत ने गुरुवार को 13.37 एकड़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक देने और जमीन पर स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग वाली याचिका का स्वीकार कर लिया है।

    इसके साथ ईदगाह मस्जिद को हटाने की अदालती कार्यवाही शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। इस याचिका में मामले में दोनों पक्षों के बीच 1968 में हुए एक समझौते को भी चुनौती दी गई है।

    आइये इस विवाद के बारे में विस्तार से जानते हैं।

    पृष्ठभूमि

    क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक का विवाद?

    बता दें कि 'भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर' के नाम से वकील रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य लोगों ने 26 सितंबर, 2020 को मथुरा सिविल कोर्ट (सीनियर डिवीजन) में एक याचिका दायर की थी।

    इसमें उन्होंने दावा किया था कि ईदगाह मस्जिद को श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर ही बनाया गया है। ऐसे में उसे हटाते हुए पूरी 13.37 एकड़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मालिकाना हक भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को मिलना चाहिए।

    दलील

    याचिका में दी गई थी औरंगजेब द्वारा कृष्ण मंदिर को ध्वस्त करने की दलील

    इतिहासकार जदु नाथ सरकार के हवाले से जगह के इतिहास के बारे में याचिकाकर्ता अग्निहोत्री ने कहा था कि 1669-70 में औरंगजेब ने भगवान कृष्ण के जन्म मंदिर को ध्वस्त कर एक संरचना बनाई गई थी और इसे ईदगाह मस्जिद कहा गया था।

    100 साल बाद मराठों ने गोवर्धन की लड़ाई जीत ली और आगरा और मथुरा के पूरे क्षेत्र के शासक बन गए।

    मराठों ने मस्जिद को हटाकर भगवान श्रीकृष्ण मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।

    नीलामी

    1815 में अग्रेजों ने की थी जमीन की नीलामी

    याचिका में कहा गया था कि 1815 में अंग्रेजों ने जमीन की नीलामी कर राजापाटनी मल को बेची थी। साल 1944 में राजापाटनी के वारिसों ने जमीन पंडित मदन मोहन मालवीय, गोस्वामी गणेश दत्त को 19,400 रुपये में बेच दी।

    उन्होंने मार्च 1951 में एक ट्रस्ट बनाया और जमीन पर मंदिर बनाने की घोषणा की। अक्टूबर 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह सोसाइटी के बीच जमीन का ट्रस्ट की होने पर समझौता हुआ था।

    खारिज

    सिविल कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

    सिविल कोर्ट ने 30 सितंबर, 2020 को याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे खारिज कर दिया था।

    कोर्ट ने कहा था कि 1991 के उपासना स्थल अधिनियम के तहत 15 अगस्त, 1947 से पहले बने सभी धर्मस्थलों की यथास्थिति बनाए रखने का प्रावधान है। इस कानून में सिर्फ अयोध्या मामला ही एक अपवाद रहा है।

    कोर्ट ने कहा इस याचिका पर सुनवाई के लिए स्वीकार करने के पर्याप्त आधार नहीं हैं। ऐसे में इसे तत्काल खारिज किया जा रहा है।

    जानकारी

    याचिकाकर्ताओं ने जिला अदालत में दाखिल की पुनर्विचार याचिका

    सिविल कोर्ट के मामले को खारिज करने के बाद याचिकार्ताओं ने पिछले साल जिला अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर करते हुए 13.37 एकड़ श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मालिकाना हक दिलाने और जमीन से ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की थी।

    चुनौती

    पुनर्विचार याचिका में 1968 के समझौते को भी दी गई थी चुनौती

    पुनर्विचार याचिका में 1968 के समझौते को भी चुनौती देते हुए कहा गया था कि यह समझौता धोखे से किया गया था। किसी भी मामले में देवताओं के अधिकारों को समझौते से समाप्त नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह कार्यवाही का हिस्सा नहीं थे।

    इसी तरह उपासना स्थल अधिनियम को भी चुनौती देते हुए कहा गया था कि धर्मस्थानों का प्रबंधन और कानून-व्यवस्था राज्यों के अधीन है। ऐसे में केंद्र का कानून राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप है।

    जानकारी

    क्या था 1968 में हुआ समझौता?

    अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार, 1968 से पहले परिसर का ज्यादा विस्तार नहीं था और 13.77-एकड़ भूमि पर कई धर्मों के लोग बसे थे।

    समझौते के तहत जमीन पर बसे मुस्लिमों को जगह छोड़ने को कहा गया था तथा मस्जिद और मंदिर को एक साथ संचालित करने के लिए सीमाएं खींची गईं।

    यह भी सुनिश्चित किया कि मस्जिद में मंदिर की ओर कोई खिड़की, दरवाजा या खुला नाला नहीं होगा। मंदिर और मस्जिद के बीच एक दीवार भी होगी।

    स्वीकार

    मथुरा जिला अदालत ने स्वीकार की याचिका

    पुनर्विचार याचिका की दलीलों के आधार पर जिला और सत्र न्यायाधीश राजीव भारती ने 6 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसले के लिए 19 मई की तारीख निर्धारित की थी।

    गुरुवार को उन्होंने याचिका को स्वीकार करते हुए उस पर सुनवाई करने का निर्णय सुनाया और दोनों पक्षों को इस संबंध में अपने-अपने साक्ष्य रखने के लिए कहा है। इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने ईदगाह मस्जिद का भी वीडियो सर्वे कराने की मांग की।

    आदेश

    इलाहबाद हाई कोर्ट ने दिए थे याचिकाओं का चार महीने में निपटारा करने के आदेश

    मथुरा की विभिन्न अदालतों में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के मालिकाना हक और मस्जिद हटाने की मांग वाली कई याचिकाएं लगी हैं।

    इसी तरह खुद को श्रीकृष्ण का करीबी रिश्तेदार बताने वाले मनीष यादव ने इलाहबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है।

    इस पर हाई कोर्ट के जस्टिस सलिल कुमार राय ने 12 मई को मथुरा जिला न्यायाधीश को सभी याचिकाओं का चार महीने में निपटारा करने के आदेश दिए थे। तब मामले में तेजी से सुनवाई हो रही है।

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