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पंजाब: नकद प्रोत्साहन और सब्सिडी की बाद भी पराली जलाने से क्यों नहीं रूक रहे किसान?
एक खेत में पराली जलाता किसान।

पंजाब: नकद प्रोत्साहन और सब्सिडी की बाद भी पराली जलाने से क्यों नहीं रूक रहे किसान?

Nov 18, 2021
05:33 pm

क्या है खबर?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की हवा लगातार खराब हो रही है। लोगों का सांस लेना मुश्किल हो रहा है। इसके पीछे किसानों के खेतों में पराली जलाने को मुख्य कारण माना जाता है। इसको लेकर पंजाब सरकार ने किसानों को नकद भुगतान और पराली के अन्य उपयोग के लिए काम आने वाली मशीनों के लिए सब्सिडी दे रही है, लेकिन इसमें पर्याप्त सफलता नहीं मिल रही है। यहां जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या कारण है।

जानकारी

किसानों के पराली जलाने के पीछे क्या है कारण?

पंजाब में गेहूं की कटाई के बाद धान की बुवाई के लिए महज 20-25 दिन का समय होता है। किसान समय पर बुवाई के लिए पराली को खेतों से हटाने के लिए उन्हें आग लगा देते हैं। इसका अभी कोई स्थाई समाधान नहीं मिला है।

हालात

पंजाब में इस साल 10 लाख हेक्टेयर भूमि में लगाई आग

द प्रिंट के अनुसार, पंजाब में प्रतिवर्ष अक्टूबर-नवंबर में 2 करोड़ मीट्रिक टन पराली होती है। इसके चलते पंजाब में इस साल अब तक पराली जलाने के लिए 10 लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि में आग लगा दी गई है। 15 नवंबर तक 67,165 पराली के ढेरों में आग लगाई जा चुकी थी, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में 74,000 ढेरों में आग लगी थी। ऐसे में इससे उठने वाला धुआं दिल्ली-NCR की हवा में मिल जाता है।

निराशा

पंजाब सरकार को प्रयासों में नहीं मिल रही है पर्याप्त सफलता

बता दें कि पंजाब सरकार ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन इसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आए हैं। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव कुनेश गर्ग ने कहा कि राज्य में इसा साल 10 नवंबर तक पराली जलाने के लिए कुल 10.34 लाख हेक्टेयर भूमि में आग लगाई गई है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 15.44 लाख हेक्टेयर का था। इससे सरकार के प्रयासों के विशेष परिणाम नहीं आए हैं।

प्रयास

पंजाब सरकार ने बायोमास बिजली संयंत्र स्थापित किए

बिजली पैदा करने के लिए धान के भूसे का उपयोग करने के उद्देश्य से पंजाब सरकार ने 2005 में बायोमास बिजली संयंत्र स्थापित करना शुरू किया था, लेकिन 16 वर्षों में केवल 11 संयंत्र ही स्थापित हो पाए हैं। ये सयंत्र केवल 100 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं और इनमें सालाना 10 लाख टन धान की पराली का उपयोग होता है। ऐसे में पंजाब सरकार पराली को जलाने से रोकने के लिए किया गया यह प्रयास सफल नहीं हुआ।

भूसा

औद्योगिक बॉयलरों और ईंट भट्टों में पराली से बने भूसे का उपयोग

पंजाब सरकार ने पराली को भूसे बनाकर औद्योगिक बॉयलरों और ईंट भट्टों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की योजना भी बनाई, लेकिन यह कारगर साबित नहीं सकी। वर्तमान में राज्य में धान की भूसी के केवल दो ही ईंट भट्टे हैं वह प्रतिदिन 124 टन माल का उत्पादन करते हैं। इसमें केवल 44,000 मीट्रिक टन भूसे का ही उपयोग होता है, जो कि उत्पादन की तुलना में बहुत कम है। ऐसे में किसान पराली जलाने को मजबूर हैं।

जानकारी

बिजली महंगी होने से सफल नहीं हो पा रहे बायोमास बिजली संयंत्र

पंजाब एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (PEDA) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) नवजोत सिंह रंधावा ने कहा, "बायोमास बिजली संयंत्र महंगी बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। जिसे वितरण कंपनियां नहीं खरीदती है। ऐसे में कंपनियों की अधिक संयंत्र स्थापित करने में रुचि नहीं है।"

बयान

20 दिन में पराली को खरीदना है बड़ी चुनौती- सिंह

पंजाब स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सीनियर इंजीनियर प्रितपाल सिंह ने कहा, "पराली को भूसे का रूप देने के लिए इकाइयों की स्थापना करने के बड़े अवसर हैं, लेकिन फसल के बाद 20 दिनों में खेतों से पूरे भूसे की खरीद होना बड़ी चुनौती है।" उन्होंने कहा, "PEDA और PSPCL ने बठिंडा और रोपड़ में पराली से प्रतिदिन 100 टन भूसा तैयार करने के लिए दो स्ट्रॉ पेलेटाइजेशन टॉरफाइड प्लांट स्थापित करने के लिए टेंडर जारी किए हैं।"

गैस

बायोमास गैस और इथेनॉल परियोजना में हो रही देरी

पंजाब सरकार 229.35 टन प्रतिदिन की कुल क्षमता के साथ 22 कम्प्रेस्ड बायोमास गैस परियोजनाएं स्थापित कर रही है। इनमें आठ लाख मीट्रिक टन पराली की खपत होगी। इनमें से एक अगले महीने चालू होने की संभावना है, जबकि दो और निर्माणाधीन हैं। इसी तरह HPCL दो लाख मीट्रिक टन पराली के इस्तेमाल के लिए बठिंडा में प्रति दिन 100 किलोलीटर इथेनॉल क्षमता के साथ बायोएथेनॉल संयंत्र भी स्थापित कर रहा है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है।

जानकारी

जैव रासायनिक खाद में नहीं है किसानों की रुचि

पंजाब सरकार ने किसानों को पराली को विशेष उपकरणों की मदद से जमीन में गाड़ने और उससे जैस रासायनिक खाद बनाने के लिए भी प्रेरित किया है, लेकिन इसकी प्रक्रिया लंबी और अधिक मेहनत वाली होने के कारण किसानों की इसमें रुचि नहीं है।

CRM मशीन

सब्सिडी के बाद भी CRM मशीन नहीं खरीद रहे किसान

पंजाब सरकार का मुख्य फोकस फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) मशीनों को रियायती दरों पर किसानों को बेचने पर रहा है। 2018 में योजना शुरू होने के बाद से पंजाब ने 1,100 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसमें व्यक्तिगत किसान को उपकरण की कुल लागत पर 50 प्रतिशत और ग्राम सहकारी समिति या किसानों समूह को 80 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। इसके बाद भी किसान इसे महंगी बताकर खरीदने से बच रहे हैं।

जानकारी

पंजाब में अब तक बिकी है महज 86,000 CRM मशीनें

पंजाब कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक जगदीश सिंह ने कहा, "राज्य में अब तक 86,000 CRM मशीनें ही बेची गई है। किसान इन्हें महंगी बताकर खरीदने से बच रहे हैं। ऐसे में सरकार को किसानों को प्रेरित करने के लिए नकद प्रोत्साहन भी देना चाहिए।"

बयान

अन्य मशीनों की तुलना में अधिक महंगी हैं CRM मशीनें- किसान

अजनाला के किसान सुखा सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा बेची जाने वाली CRM मशीनें महंगी हैं। बाजार में एक SMS मशीन बिना सब्सिडी के ही 35,000 रुपये में उलब्ध है, लेकिन CRM मशीनें 50 प्रतिशत सब्सिडी के बाद भी 55,000 रुपये तक पड़ती है। उन्होंने कहा कि सरकार इन मशीनों को सीमित संख्या में खरीदती है। इसके कारण इनकी कीमत अधिक रहती है। सरकार को मशीनों के लिए प्लांट लगाकर इनकी कीमत कम करनी चाहिए।

प्रोत्साहन

नकद प्रोत्साहन का भी नहीं मिल रहा है लाभ

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए प्रोत्साहन देने के निर्देश दिए थे। उसके बाद पंजाब सरकार ने राली नहीं जलाने वाले छोटे और सीमांत किसानों को प्रति एकड़ 2,500 रुपये देने का फैसला किया था। इसके बाद उस साल 31,000 किसानों को 20 करोड़ रुपये बांटे गए, लेकिन उसके बाद बजट की कमी के चलते सरकार ने किसानों को प्रोत्साहन राशि नहीं दी। इससे सार्थक परिणाम नहीं आए।