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    हर साल अक्टूबर में क्यों जहरीली हो जाती है दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा?

    हर साल अक्टूबर में क्यों जहरीली हो जाती है दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा?
    लेखन प्रमोद कुमार
    Oct 18, 2020, 08:17 pm 1 मिनट में पढ़ें
    हर साल अक्टूबर में क्यों जहरीली हो जाती है दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा?

    हर साल अक्टूबर में राजधानी दिल्ली की हवा प्रदूषण के कारण जहरीली होनी शुरू हो जाती है। साथ ही शुरू हो जाती है इस मामले पर राजनीति। हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलने से होने वाले धुएं का योगदान 4 प्रतिशत है। इसके जवाब में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि अगर पराली जलाने से प्रदूषण नहीं होता तो दिल्ली में पहले वायु प्रदूषण क्यों नहीं हुआ?

    प्रदूषण के पीछे कौन से कारण?

    हर साल अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली और आसपास के इलाकों में प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है। इसके पीछे हवा में प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी से लेकर मौसम और दूसरी परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं।

    अक्टूबर में प्रदूषण का स्तर बढ़ क्यों जाता है?

    अक्टूबर में उत्तर-पश्चिम भारत से मानसून की विदाई होने लगती है। मानसून के दौरान पूर्वी हवाएं चलती हैं, लेकिन मानसून के वापस लौटने पर हवाओं की दिशा बदलकर पश्चिमी हो जाती है। गर्मियों के दौरान भी दिल्ली में राजस्थान और कई बार पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरफ से हवाएं आती हैं, जो अपनी साथ भारी मात्रा में धूल लाती है। एक अध्ययन के अनुसार, सर्दियों में दिल्ली में 72 प्रतिशत हवा उत्तर-पश्चिम से आती है।

    तापमान में कमी से भी बढ़ता है प्रदूषण

    उत्तर पश्चिम से आने वाली धूल भरी हवाओं का दिल्ली पर असर कितना होता है, इसे 2017 के एक उदाहरण से समझा जा सकता है। उस साल इराक, सऊदी अरब और कुवैत में एक तूफान शुरू हुआ था। इस वजह से कई दिनों तक दिल्ली की हवा की गुणवत्ता बेहद खराब रही थी। हवा की दिशा के अलावा अक्टूबर आते-आते तापमान में गिरावट होना शुरू हो जाती है, जिससे प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।

    हवा की धीमी रफ्तार भी एक कारण

    इनके साथ-साथ प्रदूषक तत्वों को बिखेरने के लिए तेज हवा की जरूरत होती है, लेकिन सर्दियों में हवा की रफ्तार धीमी रहती है। इस कारण प्रदूषक तत्व लंबे समय तक एक स्थान पर इकट्ठे रहते हैं। मौसम संबंधी इन कारकों के कारण दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। इसके बाद पराली जलाने से होने वाला धुआं और धूल भरी हवाएं आग में घी का काम करती हैं।

    पराली जलाने से होने वाले धुएं की भूमिका कितनी है?

    बीते कुछ सालों से हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने से होने वाला धुआं भी दिल्ली के प्रदूषण को बढ़ा रहा है। इसे रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कई कदम उठाने का दावा करती हैं, लेकिन अभी तक स्थिति में खास बदलाव नजर नहीं आ रहा। 2015 में IIT कानपुर के अध्ययन में सामने आया कि सर्दियों में दिल्ली की हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर में से 17-26 प्रतिशत बायोमास जलाने के कारण आए हैं।

    पराली के अलावा अन्य कारक भी जिम्मेदार

    पिछले साल, जब पराली जलाने की घटनाएं चरम स्तर पर पहुंच गई थी तब दिल्ली की हवा में बायोमास की वजह से आने वाले पार्टिकुलेट मैटर का योगदान 40 फीसदी तक पहुंच गया था। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से यह 2-4 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में कमी आने की पीछे केवल पराली का धुआं ही जिम्मेदार नहीं है। इसके और भी कारण है।

    धूल और वाहनों का धुआं भी बनाता है हवा को जहरीली

    धूल और वाहनों से होने वाला धुआं सर्दियों में दिल्ली की हवा को जहरीली बनाने के दो मुख्य कारण हैं। अक्टूबर से जून के बीच इलाके में बहुत कम बारिश होती है, जिस कारण यह धूल हवा में टिकी रहती है। IIT के अध्ययन में पता चला कि PM 10 में धूल से होने वाला प्रदूषण 56 प्रतिशत योगदान देता है। इसी तरह PM 2.5 में सर्वाधिक 38 फीसदी योगदान वाहनों से होने वाले प्रदूषण का होता है।

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