बदलते मौसम में किन-किन बीमारियों का खतरा बढ़ा और इनसे कैसे बचें? जानें विशेषज्ञ की राय
मौसम में बदलाव भले ही सुहावना लगता है, लेकिन यह अपने साथ कई बीमारियां लाता है। इस समय थोड़ी-सी लापरवाही हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकती है। वर्तमान में कभी ठंड, तो कभी गर्मी महसूस होती है। इसी के साथ बॉडी का मेटाबॉलिज्म भी बदलता है। यह शरीर की इम्युनिटी को प्रभावित करती है। इसके परिणामस्वरूप सर्दी, खांसी और सीजनल फ्लू जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। आइए जानते हैं विशेषज्ञ से बचाव के उपाय।
किन लक्षणों के दिखने पर सावधान हो जाना चाहिए?
इस बारे में हमने डॉक्टर रविकांत चतुर्वेदी (एमडी-न्यूक्लियर मेडिसिन, AIIMS, रांची) से बात की। डॉ रविकांत ने न्यूजबाइट्स को बताया कि बदलते मौसम में शरीर का संतुलन बिगड़ जाता है। शरीर के असंतुलित होने से बॉडी प्रतिक्रिया देती है। इससे बुखार, सर्दी और खांसी हो सकती है। ये परेशानियां एक से दूसरे में जल्दी फैलती हैं। इसे ही सीजनल फ्लू कहा जाता है। नाक बहना, गले में खराश, बुखार, शरीर में दर्द और ठंड लगना इसके सामान्य लक्षण हैं।
सीजनल फ्लू में गले का संक्रमण है सबसे कॉमन
सीजनल फ्लू लोगों के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है। गले का संक्रमण इसमें सबसे कॉमन है। इससे गले में जलन और दर्द होने लगता है। बुखार भी आ सकता है। ऐसी स्थिति में भोजन और पानी निगलने में भी दर्द होता है। मौसम के परिवर्तन के साथ पहले ही हमारी इम्युनिटी कमजोर हो जाती है। जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए गले का संक्रमण होने पर शरीर को आराम दें।
गले का संक्रमण होने पर क्या करें?
अमेरिका में जो कॉन्सेप्ट है कि सामान्य गले का संक्रमण होने पर वे तुरंत एंटीबॉयोटिक्स नहीं देते हैं। गले का संक्रमण होने पर आमतौर पर दोनों साइड की टॉन्सिल बढ़ जाती है। डॉक्टर के अनुसार जितना आपका मुंह बर्दाश्त कर सके, उसी के अनुसार आधा गिलास गर्म पानी लें और इसमें आधा चम्मच नमक मिलाएं। इसे ही हाइपर टॉनिक सॉल्यूशन बोलते हैं। इसका कंसंट्रेशन ज्यादा होता है, जिससे बैक्टीरिया अपने आप खत्म हो जाते हैं। हर घंटे गार्गल करें।
बुजुर्गों और छोटे बच्चों को क्यों बरतनी चाहिए सावधानी?
डॉक्टर रविकांत कहते हैं, "सीजनल फ्लू से बुजुर्गों और छोटे बच्चों को सावधानी बरतनी चाहिए। उनकी इम्युनिटी कमजोर होती है, इसलिए उन्हें अलर्ट हो जाना चाहिए।" उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में तेज बुखार आ सकता है। तेज सिरदर्द हो सकता है, जो दिमाग को सोचने की स्थिति में नहीं रहने देता। कमर और रीढ़ में दर्द हो सकता है। कुछ भी काम करने का मन नहीं करता। ऐसी स्थिति में कई बार सिर्फ सोए रहने का मन करता है।
डेंगू के जोखिम को कैसे करें कम?
इस मौसम में डेंगू का खतरा भी बढ़ गया है। बरसात के समय में किसी चीजों में पानी जमा रह जाता है। इससे मच्छर का लारवा जमा हो जाता है और डेंगू का प्रकोप बढ़ता है। घर के कूलर और गंदी नाली में जमे पानी को साफ कर देना चाहिए। यदि आप इन चीजों से पानी नहीं निकाल पाए हैं, तो हमें थोड़ा केरोसिन डाल देना चाहिए। इससे पानी के नीचे ऑक्सीजन नहीं जाएगा और मच्छर का लारवा मर जाएगा।
डेंगू होने पर झोलाछाप डॉक्टर के पास क्यों ना जाएं?
डेंगू से बचाव के लिए मच्छरदानी का इस्तेमाल करें। डेंगू में यदि बुखार आता है, तो अधिकांश मरीज झोलाछाप डॉक्टर के पास जाते हैं और उन्हें एंटीबॉयोटिक्स दिया जाता है। पहले से ही मरीज की प्लेटलेट्स कम होती है और उन्हें एंटीबॉयोटिक्स देने पर ब्रेन हेमरेज और हृदय की गति रूकने का खतरा बढ़ जाता है। इससे मरीज की जान भी जा सकती है। इसलिए सबसे पहले नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर डेंगू की जांच कराएं और दवाइयां लें।
यदि नॉर्मल खांसी और सर्दी हो तो क्या करें?
डॉक्टर के अनुसार, यदि इस मौसम में नॉर्मल खांसी और सर्दी हो तो गर्म पानी पीएं। गुनगुने पानी से गार्गल करें। काढ़ा का सेवन फायदेमंद हो सकता है। सर्दी या खांसी होने पर खान-पान पर भी विशेष ध्यान दें। गर्म और ताजा भोजन का सेवन करें। यदि एक-दो दिनों के बाद भी सर्दी-खांसी से राहत नहीं मिल रही है, तो डॉक्टर से परामर्श लें। डॉक्टर आपको एंटीबॉयोटिक्स देंगे। साथ ही विशेषज्ञ आपको सिरप लेने की सलाह देंगे।
क्या बदलते मौसम में एलर्जी है जानलेवा?
बदलते मौसम में एलर्जी का जोखिम बढ़ जाता है। नाक से पानी बहने लगना, खुजलाहट होना और धूल पड़ने के बाद खांसी होना एलर्जी के लक्षण हैं। इसमें किसी खास चीज के कारण हमें समस्याएं होने लगती हैं। कई मामलों में एलर्जी जानलेवा होती है। इसमें इम्युन सिस्टम और शरीर के टी-सेल्स व बी-सेल्स कई चीजों की रोकथाम करने की कोशिश करती है। इस कोशिश के दौरान जो फाइट होता है, उसे बॉडी बर्दाश्त नहीं कर पाती है।
फूलों के परागण के कारण हो सकती है एलर्जी
इम्युन सिस्टम और शरीर के टी-सेल्स व बी-सेल्स के बीच हुई फाइट के कारण कुछ रासायनिक तत्वों का स्राव होता है, जिससे कई अंग काम करना बंद कर देते हैं। फूलों के परागण के कारण खतरनाक एलर्जी होती है, जो जानलेवा साबित हो सकती है।
थायराइड के मरीज क्यों रखें अपना विषेश ध्यान?
बदलते मौसम के साथ थायराइड हार्मोन के लेवल में बदलाव आता है। जो थायराइड डिसऑर्डर से ग्रसित हैं, उन्हें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अगर उन्हें अत्यधिक ठंड लग रही है या अधिक पसीना आ रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। इससे गले का संक्रमण और सूजन बढ़ जाता है। थायराइड लेवल असंतुलित होने के कारण यह सेरोटोनिन हार्मोन को स्लो डाउन कर देता है, जिससे दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। इससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
कैसे करें अपना बचाव?
डॉ रविकांत ने बताया कि इस समय अपनी दिनचर्चा और लाइफस्टाइल में नियमित बदलाव करें। संतुलित भोजन करें और पर्याप्त नींद लें। अपने शरीर के साथ जबरदस्ती ना करें। थकावट महसूस हो, तो आराम करें। तनाव को अपने ऊपर हावी ना होने दें। नियमित व्यायाम करें, जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहेगी। डिहाइड्रेशन से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं। शरीर में विटामिन डी लेवल की चांज कराएं। विटामिन डी से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।