CBSE और ICSE के छात्र पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, टर्म-1 परीक्षाओं के ऑनलाइन आयोजन की मांग
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (ICSE) की कक्षा 10वीं और 12वीं की टर्म-1 बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं और इनकी तैयारियां भी पूरी हो चुकी हैं। इस बीच छात्रों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में इन बोर्ड परीक्षाओं को लेकर याचिका दायर की है। छह छात्रों के इस समूह ने सुप्रीम कोर्ट से टर्म-1 की परीक्षाओं को ऑनलाइन मोड में आयोजित करने की मांग की है।
इसी महीने शुरू हो रही हैं टर्म-1 की परीक्षाएं
CBSE की परीक्षाएं 16 नवंबर से शुरू होंगी, जबकि ICSE की परीक्षा 22 नवंबर से शुरू होंगी। वर्तमान में दोनों राष्ट्रीय बोर्ड ने ऑफलाइन मोड में टर्म-1 की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्णय किया है। ICSE ने पहले छात्रों को ऑफलाइन या ऑनलाइन मोड में टर्म-1 बोर्ड परीक्षा देने का विकल्प दिया था, लेकिन बाद में यू-टर्न लेते हुए कहा कि वह केवल ऑफलाइन मोड में परीक्षा आयोजित करेगा।
याचिका में ऑनलाइन परीक्षा कराने का क्या कारण बताया गया?
छात्रों के समूह द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि ऑफलाइन परीक्षा से कोविड-19 के संक्रमण का खतरा तेजी से बढ़ जाएगा और यह स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में आगे कहा गया है कि बिना विकल्प दिए सहमति प्राप्त करना मनमाना और अवैध है, इसलिए हाइब्रिड मोड समय की मांग है। छात्रों का कहना है कि यह तरीका सोशल डिस्टेंसिंग को बेहतर बनाता है और लॉजिस्टिक बाधाओं पर निर्भरता कम करता है।
बोर्ड परीक्षाएं हाइब्रिड मोड में कराने से क्या होगा फायदा?
याचिका में कहा गया है कि आगामी परीक्षाएं हाइब्रिड मोड में आयोजित की जाएं जिसमें ऑफलाइन और ऑनलाइन परीक्षा के बीच चयन करने का विकल्प हो। इसमें लिखा है, "सहमति महत्वपूर्ण है क्योंकि परीक्षा सीधे याचिकाकर्ताओं के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित है। निष्पक्ष मूल्यांकन सुनिश्चित करने के लिए अनुकूल और स्वैच्छिक माहौल की आवश्यकता होती है। यह सामान्य ज्ञान है कि कोविड महामारी की तीसरी लहर की भविष्यवाणी की गई है।''
बोर्ड परीक्षाओं के सुपर स्प्रेडर बनने की आशंका- याचिका
छात्रों का दावा है कि ऑफलाइन परीक्षाओं के माध्यम से संपर्क से COVID-19 संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। परीक्षार्थियों को डर है कि परीक्षा कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज से एक "सुपर स्प्रेडर" घटना हो सकती हैं। याचिकाकर्ता ने आगे कहा है कि बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की आयु 18 वर्ष से कम है और इसलिए उन्हें कोरोना की वैक्सीन नहीं लगी है।