
भारतीय सेना को जल्द मिलेगा पहला स्वदेशी लाइट टैंक, चीन को देगा कड़ी टक्कर
क्या है खबर?
भारत में निर्मित और विकसित पहले स्वदेशी लाइट टैंक का इस महीने के अंत में परीक्षण शुरू हो सकता है। इस टैंक को उच्च ऊंचाई वाले इलाकों में भारतीय सेना की आवश्कताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया है।
ये पहला स्वदेशी लाइट टैंक चीन से लगी सीमा पर भारत की मोर्चाबंदी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के निर्देशन में बनाया गया है।
आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
रिपोर्ट
दिसंबर से शुरू होगा स्वदेशी टैंक का ट्रायल
द इकनॉमिक टाइम्स के अनुसार, भारत में ये टैंक रिकॉर्ड समय में तैयार हुआ है, जिसका दिसंबर से कई चरणों में ट्रायल शुरू होगा। इस टैंक के प्रोटोटाइप से संबंधित काम लगभग पूरा हो गया है।
इस 25 टन वजनी टैंक को भारत में विकसित करने का निर्णय 2020 में पूर्वी लद्दाख में बढ़े तनाव और चीन द्वारा ऊंचाई वाले स्थानों पर हल्के बख्तरबंद वाहनों की तैनाती करने के बाद लिया गया था।
टैंक
प्रोटोटाइप स्वदेशी टैंक को 'जोरावर' दिया गया है नाम
अप्रैल, 2022 में भारत में पहला स्वदेशी लाइट टैंक को बनाने की मंजूरी मिली थी। इस प्रोजेक्ट को DRDO ने लार्सन एंड टूब्रो (L&T) कंपनी के साथ मिलकर तैयार किया है।
इस लाइट टैंक को स्थायी रूप से 'जोरावर' नाम दिया गया है। इस 'जोरावर' टैंक में 105 मिलीमीटर की तोप लगी है।
गतिशीलता और मारक क्षमता के मामले में स्वदेशी टैंक की लद्दाख सीमा पर तैनात चीनी टाइप 15 टैंकों से बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है।
खासियत
DRDO ने नए डिजाइन से स्वदेशी टैंक को किया है तैयार
रिपोर्ट के अनुसार, DRDO का निर्मित इस पहले स्वदेशी लाइट टैंक का डिजाइन पूरी तरह से नया है। इसमें स्वदेशी चेसिस लगाया गया है, जिसे पहले डिजाइन में शामिल नहीं किया गया था।
ये भारत में पहले से ही उत्पादन में मौजूद K9 वज्र स्व-चालित बंदूक चेसिस पर आधारित होगा। इससे टैंक का वजन कम होगा और वह दुर्गम इलाकों में बेहतर काम कर सकेगा।
इस टैंक में लगी तोप जॉन कॉकेरिल ने बनाई है।
टैंक
'जोरावर' से भारतीय सेना की बढ़ेगी ताकत
'जोरवार' टैंक का परीक्षण सफल होने के बाद इसे बड़े पैमाने में बनाया जा सकता है। हल्के वजट के कारण इन टैंकों को सैन्य हवाई जहाजों से उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों से दुर्गम इलाकों में उतारा जा सकता है।
हाल में भारतीय सेना ने अपने बेड़े में T-72 और T-90 टैंकों को शामिल किया था। ये टैंक मुख्य रूप से मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में कारगर हैं, लेकिन ये पहाड़ी दुर्मम इलाकों में सफल नहीं हैं।