
ISRO के PSLV-C44 का सफल प्रक्षेपण, जानें क्यों आधी रात को हुआ लॉन्च
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गुरुवार रात को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान PSLV-C44 का सफल प्रक्षेपण किया।
PSLV-C44 के जरिए ISRO ने दो उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में छोड़े। इसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) का इमेजिंग सैटेलाइट माइक्रोसैट-आर और छात्रों का सैटेलाइट कलामसैट शामिल है।
PSLV-C44 को रात के 11:37 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ा गया।
आइए जानते हैं कि इसकी लॉन्चिंग के लिए रात का वक्त क्यों चुना गया।
DRDO
DRDO का उपग्रह है अहम कारण
PSLV-C44 के लॉन्चिंग का समय निर्धारित करने में DRDO के उपग्रह माइक्रोसैट-आर ने अहम भूमिका निभाई।
740 किलो वजनी इस इमैजिंग उपग्रह की प्रोग्रामिंग इस तरीके से की गई है कि यह धरती को दो बराबर हिस्सों में बांटने वाली भूमध्य रेखा के ऊपर से भारतीय समयानुसार दोपहर 12 बजे के आसपास गुजरे।
इस समय सूरज का प्रकाश भारत पर होता है।
PSLV-C44 को रात के समय लॉन्च करने में यह सबसे अहम कारण रहा।
ISRO प्रमुख
'उपग्रह की जरूरत के हिसाब से तय होता है समय'
ISRO प्रमुख के. सिवन ने इसे समझाते हुए बताया कि लॉन्चिंग का समय उपग्रह की जरूरत के हिसाब से तय होता है। यहां सूरज की रोशनी के कारण वह चाहते थे कि उपग्रह भूमध्य रेखा को दक्षिण से उत्तर, दोपहर के समय पार करे।"
उन्होंने कहा, "हमारा लॉन्चर भूमध्य रेखा के उत्तर से दक्षिण जाता है। इसलिए हमें रात को लॉन्चिंग समय रखना पड़ा।"
उन्होंने कहा कि उपग्रह टीम यह तय करती है कि वह तस्वीर कब लेना चाहते हैं।
अन्य कारण
अन्य कारण भी प्रभावित करते हैं समय
ISRO प्रमुख ने आगे कहा कि तस्वीर लेने का समय सर्वाधिक सूरज की रोशनी से लेकर न्यूनतम बादल की स्थिति तक हो सकता है, लॉन्च का समय इसी पर निर्भर करता है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा रॉकेट के प्रकार, ऊंचाई की सीमा और उपग्रह के रास्ते आदि पर भी लॉन्चिंग समय निर्भर करता है।
उनके मुताबिक, इस चीज का भी ध्यान रखा जाता हैं कि उपग्रह के निकलने के बाद ऊर्जा के लिए सूरज एक खास कोण पर हो।
कलामसैट
लॉन्च हुए उपग्रहों की जानकारी
DRDO का उपग्रह माइक्रोसैट-आर रक्षा अनुसंधान के लिए अहम है। इसका इस्तेमाल पृथ्वी की हाई क्वालिटी तस्वीर लेने के लिए किया जाएगा।
1.2 वजनी दूसरा उपग्रह कलामसैट भारत का सबसे छोटा और हल्का उपग्रह है, जिसका जीवनकाल दो महीने है।
इस उपग्रह को 12 लाख रुपए में चैन्नई स्थित 'स्पेस किड्ज इंडिया' के कुछ छात्रों ने तमिलनाडु के 18 वर्षीय रिफथ शरूक के नेतृत्व में बनाया है।
इसका नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है।