आखिर यूक्रेन की मदद के लिए अमेरिका और NATO क्यों नहीं भेज रहे अपनी सेना?
क्या है खबर?
रूस और यूक्रेन के बीच नौ दिनों से लगातार युद्ध जारी है। रूसी सेना के हमलों से यूक्रेन के कई शहर तबाह हो चुके हैं और हजारों लोगों की मौत हो चुकी है।
इस बीच अमेरिका और नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) ने रूस पर कई कड़े प्रतिबंधों का तो ऐलान कर दिया, लेकिन यूक्रेन की मदद के लिए अपने सेना भेजने से इनकार कर दिया।
आइए जानते हैं आखिर अमेरिका और NATO क्यों नहीं भेज रहे अपनी सेना।
प्रतिबंध
अमेरिका ने रूस पर लगाए कड़े प्रतिबंध
रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका ने राष्ट्रपति वोलोडिमीर जेलेंस्की की अपील पर यूक्रेन को अपने भंडार से 35 करोड़ डॉलर के हथियार भेजने का फैसला लिया है।
इसके अलावा अमेरिका ने रूस के सबसे बड़े बैंक समेत कई बैंकों पर प्रतिबंध लगाया है।
एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की संपत्ति वाले ये बैंक अब अमेरिकी डॉलर में लेनदेन नहीं कर सकते और अमेरिका स्थित उनकी सारी संपत्ति फ्रीज कर दी गई है।
अन्य
अमेरिका ने रूसी बैंकों को SWIFT से बाहर कर दिया बड़ा झटका
अमेरिका ने 27 देशों वाले यूरोपीय संघ (EU) के साथ मिलकर रूस के कई बड़े बैंकों को अंतरराष्ट्रीय पेमेंट सिस्टम SWIFT (सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन) से भी बाहर निकाल दिया है।
इससे अब रूस के बैंक अन्य अंतरराष्ट्रीय बैंकों से लेनदेन नहीं कर पाएंगे।
इसी तरह अमेरिका ने रूस के लिए अपने एयरस्पेस बंद करने के साथ वहां तैनात सभी रूसी राजनयिकों को देश से निकलने के आदेश दिया है।
इनकार
अमेरिका ने क्यों किया सेना भेजने से इनकार?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भले ही रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं, लेकिन रूस के खिलाफ अपनी सेना भेजने से इनकार कर दिया है। ऐसे में यूक्रेन अकेला पड़ गया।
इस मामले को लेकर राष्ट्रपति बाइडन ने स्पष्ट किया है कि यदि वह रूस के खिलाफ अपनी सेना भेजेंगे तो विश्वयुद्ध हो जाएगा।
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अमेरिका जैसे ही रूस के खिलाफ यूक्रेन में अपनी सेना भेजेगा तो यह जंग वैश्विक युद्ध में तब्दील हो जाएगी।
अन्य
अमेरिका के सेना नहीं भेजने के पीछे कूटनीतिक कारण भी है जिम्मेदार
अमेरिका के सेना नहीं भेजने के पीछे कूटनीतिक कारण भी है। यूक्रेन अमेरिका का पड़ोसी देश नहीं है और न ही उसका कोई सैन्य अड्डा अमेरिका में है।
इसी तरह सेना भेजने से उसका भविष्य में रूस के साथ तेल व्यापार भी प्रभावित हो सकता है।
दूसरा, अमेरिका अभी कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहा है। यदि वह सेना भेजता है तो रूस पर उस भी हमला कर सकता है, जिससे हालात और खराब हो जाएंगे।
NATO
NATO ने भी यूक्रेन में सेना भेजने से किया इनकार
अमेरिका और उसके सहयोगियों के सैन्य गठबंधन NATO ने भी यूक्रेन को आर्थिक और हथियारों की मदद का तो ऐलान किया है, लेकिन वहां अपनी सेना भेजने से इनकार कर दिया। हालांकि, उसने अपने सदस्य देशों में सैनिकों की तैनाती को बढ़ा दिया है।
दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 अप्रैल, 1949 को एक संधि के जरिए NATO का गठन किया गया था।
वर्तमान में अमेरिका, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम (UK) समेत कुल 30 देश इसके सदस्य हैं।
जानकारी
क्या है NATO गठबंधन का सबसे बड़ा प्रावधान?
NATO गठबंधन का सबसे प्रमुख प्रावधान ये है कि अगर कोई भी देश इसके सदस्य देशों में से किसी एक पर भी हमला करता है तो इसे सभी देशों पर हमला माना जाएगा और सभी देश मिलकर प्रभावित देश की मदद के लिए उतरेंगे।
कारण
NATO ने क्यों किया सेना भेजने से इनकार?
बता दें कि NATO ने अनुच्छेद-5 के उल्लंघन के कारण यूक्रेन में अपनी सेना भेजने से इनकार किया है।
दरअसल, अनुच्छेद-5 NATO सदस्यों की सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने एक समझौता है। इसके तहत NATO का कोई भी देश दूसरे देश पर तब ही हमला कर सकता है, जबकि उसने उसके सदस्य देशों में से किसी एक पर हमला किया हो।
इसको लेकर NATO ने 24 फरवरी को स्पष्ट किया था कि अनुच्छेद-5 के प्रति प्रतिबद्धता लोहे की कवच जैसी है।
परिणाम
यूक्रेन के सदस्य नहीं होने के कारण सेना नहीं भेज पा रहा NATO
बता दें कि वर्तमान में यूक्रेन NATO का सदस्य नहीं है और यही कारण है कि उसके लिए NATO अनुच्छेद-5 लागू नहीं कर सकता है।
कई विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन ने NATO में शामिल होने की इच्छा जताई थी और उसी को लेकर रूस ने उस पर हमला किया है। ऐसे में NATO को उसकी मदद करनी चाहिए, लेकिन अनुच्छेद-5 के प्रावधानों के तहत उसके सदस्य नहीं होने के कारण वहां सेना नहीं भेजी जा सकती है।
इस्तेमाल
NATO ने कब लागू किया गया था अनुच्छेद-5
NATO के गठन से लेकर अब तक केवल एक बार ही अनुच्छेद-5 को लागू किया गया है। साल 2001 में अमेरिका पर 9/11 के हमलों के बाद अनुच्छेद-5 का उपयोग किया गया था। यह हमला अलकायदा के आतंकवादियों ने किया था।
आतंकवादियो को इसका जवाब देने और अमेरिका के साथ एकजुटता दिखाने के लिए NATO ने इस अनुच्छेद को लागू करते हुए आतंकियों के सफाए के लिए अपनी सेनाओं को उतार दिया था।