100 दिन से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध का दुनिया और भारत पर क्या असर पड़ा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध को आज (3 जून) 100 दिन पूरे हो गए। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 72 घंटे में युद्ध के खात्मे की उम्मीद के साथ इसका आगाज किया था, लेकिन वर्तमान स्थिति बदल चुकी है। इस युद्ध से रूस और यूक्रेन को तो भारी नुकसान हो ही रहा है, साथ ही भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है। आइये जानते हैं कि 100 दिन से जारी युद्ध का दुनिया और भारत का क्या असर पड़ा।
24 फरवरी को हुआ था युद्ध का आगाज
24 फरवरी को रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन में सैन्य अभियान चलाने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि यूक्रेन का विसैन्यीकरण और नागरिकों की सुरक्षा करना इस अभियान का मकसद होगा। उसके बाद सुबह करीब 5 बजे रूसी सेना के विमान बेलारूस और क्रीमिया के रास्ते यूक्रेन में घुसे गए थे और दोनेत्स्क में क्रामातोर्स्क इलाके में स्थिति पांच सैन्य ठिकानों पर मिसाइल से हमला करना शुरू कर दिया था।
युद्ध के कारण पूरी तरह बर्बाद हुआ यूक्रेन
युद्ध का सबसे बुरा प्रभाव यूक्रेन पर पड़ा है। एक समय खूबसूरत दिखने वाले यूक्रेन के शहर अब खंडहर में तब्दील हो गए हैं। इसी तरह 10,000 से अधिक आम नागरिकों की मौत हो चुकी है। यूक्रेन के 68 लाख लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है, जो उसकी आबादी का 15 प्रतिशत हिस्सा है। UNHRC की रिपोर्ट के मुताबिक, पलायन करने वाले 68 लाख लोगों में से 36 लाख लोग तो अकेले पोलैंड में पहुंचे हैं।
युद्ध के कारण दुनियाभर में बढ़ी महंगाई
युद्ध के कारण रूस और यूक्रेन से होने वाला खाद्य पदार्थ और तेल का निर्यात थम गया है। इससे भारत सहित दुनियाभर में महंगाई आसमान छूने लगी है। काला सागर से होने वाला व्यापार पूरी तरह ठप हो गया है। गेहूं, तेल और कच्चे तेल सहित तमाम चीजों की आपूर्ति रुकने से दुनियाभर में जरूरी सामानों की किल्लत मची हुई है और मानवीय संकट पैदा हो गया है। वर्तमान में 45 से अधिक देश खाद्य संकट से जूझ रहे हैं।
दुनिया में इस तरह से बढ़ी महंगाई दर
रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में महंगाई को कई गुना बढ़ा दिया है। यही कारण है कि अप्रैल में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति आठ साल के उच्चतम स्तर यानी 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह अप्रैल 2021 में 4.23 प्रतिशत और मार्च 2022 में 6.97 प्रतिशत थी। इसी तरह ब्रिटेन में खुदरा मुद्रास्फीति की दर सबसे अधिक नौ प्रतिशत, अमेरिका में 8.30 प्रतिशत, यूरोपियन यूनीयन के देशों में 8.1 प्रतिशत और चीन-जापान में 2.1 प्रतिशत पर है।
नियमित उपयोग की चीजों की कीमतों में उछाल
युद्ध के कारण भारत में नियमित उपयोग की चीजों की कीमतों में भी उछाल आया है। युद्ध शुरू होने से पहले वनस्पति तेल की कीमत 130 रुपये प्रति लीटर थी जो अब 26.6 प्रतिशत के इजाफे के साथ 165 रुपये पर पहुंच गई। इसी तरह गेहूं 26 रुपये किलो से बढ़कर 30 रुपये, मसूर दाल 87 रुपये से बढ़कर 97 रुपये, सरसों तेल 165 रुपये लीटर से बढ़कर 184 रुपये और चीनी 40 से बढ़कर 42 रुपये किलो हो गई।
डॉलर के मुकाबले रुपये में भी आई बड़ी गिरावट
युद्ध के कारण भारतीय रुपये में भी बड़ी गिरावट आई है। युद्ध शुरू होने से पहले यानी एक फरवरी को रुपया एक डॉलर के मुकाबले 74.1 के आस-पास था, लेकिन 24 फरवरी को यह 75.3 पर पहुंच गया। इसी तरह 28 फरवरी को 76.8 रुपये, एक मई को 76.4 रुपये और 31 मई को अब तक के सबसे ऊंचे स्तर यानी 77.7 रुपये पर लुढ़क गया है। इसका सीधा असर विदेशी आयात पर देखने को मिल रहा है।
युद्ध के बाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं कच्चे तेल के दाम
युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में भी भारी इजाफा हुआ है। 1 फरवरी को कच्चे तेल की कीमत 92 डॉलर प्रति बैरल थी, जो 24 फरवरी को 99.8 डॉलर पर पहुंच गई। इसके बाद 28 फरवरी को इसकी कीमत अब तक के उच्चतम स्तर 130 डॉलर प्रति बैरल, 1 मई को 110 डॉलर और 31 मई को फिर से बढ़ते हुए 122 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। इससे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें काफी बढ़ गई है।
विदेशी निवेशकों ने तीन महीने में भारत से निकाले एक लाख करोड़ रुपये
युद्ध का विदेशी निवेशकों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। जंग शुरू होने के बाद तीन महीने के भीतर ही विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से एक लाख करोड़ रुपये निकाल लिए, जबकि इससे पहले पिछले नौ महीने में कुल 50,000 करोड़ रुपये ही निकाले गए थे। भारत सहित दुनिया भर के सभी उभरते हुए बाजारों को महंगाई की वजह से मौद्रिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यह युद्ध का बड़ा दुष्परिणाम नजर आ रहा है।