क्या हैं भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने बताया मजबूत?
गुरूवार को देशभर के अर्थशास्त्रियों के साथ दो घंटे की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय अर्थव्यवस्था के मंदी से उबरने को लेकर आश्वस्त नजर आए। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव झेलने की ताकत अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्वों की मजबूती और उसके फिर से पटरी पर लौटने की क्षमता को दर्शाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के ये बुनियादी तत्व आखिर क्या हैं और अभी इनकी हालत कैसी है, आइए आपको इसके बारे में बताते हैं।
क्या होते हैं अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व?
किसी भी अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व वो आंकड़े होते हैं जो उसकी अर्थव्यवस्था की असली स्थिति की जानकारी देते हैं। इनमें GDP विकास दर, बेरोजगारी दर, राजकोषीय घाटे का स्तर, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले संबंधित देश की मुद्रा की कीमत, बचत और निवेश दरें, मंहगाई दर और व्यापार संतुलन जैसी चीजें शामिल होती हैं। इन चीजों के आंकड़ों के जरिए अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करने पर पक्के तरीके से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सब ठीक है या नहीं।
लगातार गिर रही है विकास दर
अगर भारतीय अर्थव्यवस्था के इन बुनियादी तत्वों पर गौर करें तो ये सभी अच्छी स्थिति में नहीं हैं जो दर्शाता है कि देश की अर्थव्यवस्था अच्छे दौर से नहीं गुजर रही। देश की GDP विकास दर लगातार गिरती जा रही है और जुलाई-सितंबर तिमाही में ये मात्र 4.5 प्रतिशत रही थी। सरकार ने खुद 2019-20 वित्त वर्ष में विकास दर 5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है जो उम्मीद से बेहद कम है।
मंहगाई दर की स्थिति भी ठीक नहीं
अगर मंहगाई दर की बात करें तो अभी भारत की मंहगाई दर 4.62 प्रतिशत है। ये भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित किए गए 4 प्रतिशत के लक्ष्य से अधिक है। मंहगाई दर में ये वृद्धि मुख्यतौर पर स्थाई कारणों से है। अगर अमेरिका और ईरान में संघर्ष बढ़ता है या ऐसी कोई भी घटना होती है तो इसका मंहगाई दर पर बड़ा असर पड़ सकता है और स्थिति और खराब हो सकती है।
बेरोजगारी सात दशक में सबसे अधिक
देश में बेरोजगारी की क्या हालत है, ये बात शायद ही किसी से छिपी हो। युवाओं में बेरोजगारी का ये आलम है कि ये पिछले सात दशक में सबसे अधिक है। नवंबर 2019 में देश की बेरोजगारी दर 7.48 प्रतिशत रही।
राजकोषीय घाटे के आधिकारिक सरकारी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल
अगर राजकोषीय घाटे की बात करें तो पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में ये GDP का 3.39 प्रतिशत रहा और सरकार ने इस साल इसे 3.3 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, कुछ अर्थशास्त्रियों ने इसके 3.8 प्रतिशत तक जाने का अनुमान लगाया है। आंकड़ों में भले ही राजकोषीय घाटा ठीक-ठाक हो, लेकिन इन आंकड़ों पर सवाल उठते रहते हैं। CAG सहित कई विशेषज्ञ कह चुके हैं कि असल राजकोषीय घाटा आधिकारिक आंकड़ों से कई अधिक है।
निवेश वृद्धि दर पिछले 15 साल में सबसे कम
देश में निवेश भी एक प्रतिशत से कम की दर से बढ़ रहा है जो 2004-05 के बाद पिछले 15 सालों में सबसे कम है। 2008-09 की वैश्विक आर्थिक मंदी के समय भी निवेश इससे अधिक तेजी से बढ़ रहा था। इसके अलावा भारतीय रुपया भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कम बना हुआ है। इस समय एक अमेरिकी डॉलर की कीमत लगभग 71 रुपये हैं और पिछले काफी समय से ये 70 के ऊपर बना हुआ है।