#NewsBytesExplainer: शेख हसीना की जीत के बांग्लादेश के लिए क्या मायने और उनके सामने क्या चुनौतियां?
क्या है खबर?
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और आवामी लीग प्रमुख शेख हसीना ने संसदीय चुनाव में लगातार चौथी बार जीत दर्ज की है। इस जीत के साथ उनका पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा है।
इस चुनाव का मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने बहिष्कार किया था और इसी कारण हसीना की जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी।
आइए जानते हैं कि चुनाव में बड़ी जीत के बावजूद हसीना की आगे राह मुश्किल क्यों है।
चुनाव
सबसे पहले जानें क्या रहे चुनाव के नतीजे
आवामी लीग ने 300 में से 299 सीटों पर हुए चुनाव में 216 सीटें जीती हैं। उसकी सहयोगी पार्टी ने 11 सीटें जीती हैं, जबकि 52 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई है।
हसीना ने गोपालगंज-3 संसदीय सीट पर शानदार जीत दर्ज की है और उनके प्रतिद्वंदी को 1,000 से कम वोट मिले।
बांग्लादेश के चुनाव आयोग के अनुसार, इस बार लगभग 40 प्रतिशत मतदान हुआ । 2018 में 80 प्रतिशत मतदान हुआ था।
बहिष्कार
क्यों मुख्य विपक्षी पार्टी चुनाव से दूर क्यों रही?
विपक्षी BNP का कहना है कि प्रधानमंत्री हसीना के पद पर रहते हुए बांग्लादेश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं हो सकता। उसका आरोप है कि विपक्षी नेताओं और उनके समर्थकों को जबरन गिरफ्तार किया गया है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल अक्टूबर में विपक्ष की रैली के दौरान करीब 10,000 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी और इस दौरान हिंसक झड़पों में 16 लोगों की मौत हुई, जबकि कई हजार लोग घायल हुए थे।
आरोप
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया भी नजरबंद
पूर्व प्रधानमंत्री और BNP की नेता खालिदा जिया भी भ्रष्टाचार के आरोपों में नजरबंद हैं।
उनके बेटे तारिक रहमान को 2004 में हसीना पर हुए ग्रेनेड हमले की साजिश रचने के मामले में दोषी ठहराया गया था। वह 2008 से लंदन में रह रहे हैं और बांग्लादेश की राजनीति में सक्रिय हैं।
उनका आरोप है कि हसीना सरकार ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का झूठे मामलों में फंसाया है। इस वजह से बांग्लादेश में एक राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।
दवाब
बाकी देशों का आरोपों पर क्या कहना?
पिछले साल अमेरिका ने मानवाधिकार उल्लंघन और लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए हसीना सरकार के अधिकारियों पर वीजा पाबंदी लगानी शुरू की थी।
संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों ने भी इस बारे में बांग्लादेश सरकार को आगाह किया था और बांग्लादेश में 2009 के बाद हिरासत में हत्या और अपहरण के सैकड़ों मामले देखे गए हैं।
स्थानीय पत्रकारों ने डर के कारण सरकार के खिलाफ बोलना बंद कर दिया है।
डर
विपक्ष विहीन चुनाव के बाद क्या डर है?
आवामी लीग की विपक्ष विहीन विवादित जीत के बाद आशंका है कि यहां एक पार्टी के शासन वाली व्यवस्था स्थापित हो सकती है, जिससे तानाशाही और निरकुंशता अधिक बढ़ेगी।
2009 में पूर्ण बहुमत पाने के बाद हसीना ने सत्ता पर अपना नियंत्रण कड़ा किया है और सेना के साथ भी उसकी सहमति है।
तब से लेकर अब तक बांग्लादेश में राजनीतिक विरोधियों को एक-एक करके ठिकाने लगाया गया।
ऐसे में देश का एक पार्टी राष्ट्र बनने का खतरा वास्तविक है।
चुनौती
हसीना के सामने क्या चुनौतियां?
कोरोना वायरस महामारी के बाद से 2022 से बांग्लादेश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। यहां महंगाई दर तेजी से बढ़ी है और आर्थिक संकट से निपटने के लिए हसीना सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से काफी कर्जा लिया है।
चुनावी जीत के बाद हसीना सरकार के लिए आर्थिक सकंट से निपटना और बढ़ती महंगाई पर काबू पाना जरूरी है क्योंकि इससे सरकार के खिलाफ लोगों में असंतोष की भावना बढ़ती जा रही है।
बांग्लादेश
हसीना सरकार पश्चिमी देशों को क्यों नहीं देती तवज्जो?
बांग्लादेश की वर्तमान हसीना सरकार के साथ भारत और चीन हमेशा मजबूती के साथ खड़ा नजर आए हैं। दोनों ही देशों से उनके संबंध अच्छे हैं।
इस वजह से प्रधानमंत्री हसीना पश्चिमी देशों के किसी भी प्रतिबंध की परवाह नहीं करती हैं। चीन के बाद बांग्लादेश दुनिया का सबसे बड़ा कपड़ों का निर्यातक है, जिसकी वजह से विकसित देश भी उससे थोड़ा नरमी से पेश आते हैं।
बांग्लादेश दुनिया की सबसे तेज वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
28 सितंबर, 1947 को जन्मीं हसीना बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। वह बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान जेल में भी रही हैं।
मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद से ही हसीना अवामी लीग का नेतृत्व कर रही हैं। वह 1996 से 2001 और 2009 से अभी तक बांग्लादेश के प्रधानमंत्री का जिम्मा संभाल रही हैं और ये उनका पांचवां कार्यकाल होगा।
2018 में टाइम मैगजीन ने हसीना को 100 प्रभावशाली शख्सियतों की सूची में जगह दी थी।