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    बांग्लादेश के पहले हिंदू मुख्य न्यायाधीश एसके सिन्हा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, जानें पूरी कहानी

    बांग्लादेश के पहले हिंदू मुख्य न्यायाधीश एसके सिन्हा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट, जानें पूरी कहानी

    लेखन भारत शर्मा
    Jan 06, 2020
    05:33 pm

    क्या है खबर?

    कहते हैं कि जो सरकार के खिलाफ जाता है वो कहीं का नहीं रहता है। ऐसा ही कुछ हुआ है बांग्लादेश के पहले हिंदू मुख्य न्यायाधीश सुरेन्द्र कुमार सिन्हा के साथ।

    बांग्लादेश सरकार के 16वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देने वाले सिन्हा के खिलाफ अब वहां की एक अदालत ने चार करोड़ टका के गबन के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।

    सिन्हा फिलहाल अमेरिका में हैं। उन्हें भ्रष्टाचार रोधी आयोग ने भगोड़ा घोषित किया है।

    मामला

    संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देने पर बिगड़ा मामला

    सिन्हा को जनवरी 2015 में 21वां मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। वह पहले हिन्दू मुख्य न्यायाधीश थे।

    वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को हटाने के लिए 16वां संंविधान संशोधन कर यह अधिकार संसद को दे दिया था, लेकिन सिन्हा ने उसे असंवैधानिक करार दे दिया था।

    मामले में सरकार से ठनने के बाद उन्हें जबरन छुट्टी पर भेजा गया और बाद में उन सहित 11 लोगों पर मनी लॉड्रिंग का केस दर्ज किया।

    बचाव

    सरकार ने किया था बचाव

    सरकार की ओर से किए गए 16वें संविधान संशोधन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक करार दिए जाने के बाद जब मुख्य न्यायाधीश सिन्हा को छ़ट्टी पर भेजा गया तो देश में इसका पुरजोर विरोध हुआ था।

    मामले में सरकार के खिलाफ कई बयान चल रहे थे। सरकार की किरकिरी होते देख बांग्लादेश के क़ानून मंत्री अनिसुल हक ने दावों को खारिज कर दिया था।

    उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि सिन्हा अपनी बीमारी के कारण छुट्टी पर गए हैं।

    फैसले

    सिन्हा ने दिए थे कई अहम फैसले

    मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले सिन्हा ने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए थे।

    उनमें शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के मामले में 12 दोषियों को फांसी की सजा, 5वें, 7वें और 13वें संशोधन की वैधता, 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के लिए एक शीर्ष इस्लामवादी नेता की मौत की सजा को बरकरार रखने जैसे कई महत्वपूर्ण फैसले शामिल हैं।

    16वें संविधान संशाोधन के खिलाफ दिए गए उनके निर्णय ने देश में राजनीतिक तूफान ला दिया था।

    खुलासा

    आत्मकथा में किया था बड़ा खुलासा

    सरकार से ठनने के बाद उन्हें जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया था। वह ऑस्ट्रेलिया चले गए थे, लेकिन सरकार लगातार उन पर इस्तीफे का दबाव बना रही थी।

    ऐसे में नवंबर ने उन्होंने अपने कार्यकाल से तीन महीने पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

    इसके बाद सिन्हा ने अपनी आत्मकथा 'ए ब्रोकेन ड्रीम: रूल आफ लॉ, ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी' में लिखा था कि 2017 में धमकियों के बाद उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था।

    अपील

    भारत से की थी लोकतंत्र के शासन का समर्थन करने की अपील

    सिन्हा ने सरकार की ओर से बढ़ते दबाव के बाद जब अपने पद से इस्तीफा दिया तो वह बुरी तरह से टूट गए थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में सरकार पर कई आरोप लगाने के साथ भारत से भी बड़ी अपील की थी।

    अपनी आत्मकथा की लॉन्चिंग के दौरान उन्होंने भारत से बांग्लादेश में कानून और लोकतंत्र के शासन का समर्थन करने की अपील की थी।

    उन्होंने आवामी लीग सरकार को बेहद "निरंकुश" करार दिया था।

    पृष्ठभूमि

    ऐसा रहा सिन्हा का करियर

    सिन्हा का जन्म 1 फरवरी, 1951 को बांग्लादेश के सिलहट में हुआ था। कानून की पढ़ाई के बाद वर्ष 1974 में अधिवक्ता के तौर पर अपनी वकालत शुरू की थी।

    1978 में उन्होंने हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय न्यायालय में कार्य शुरू किया था। उन्होंने अधिवक्ता एसआर पाल के जूनियर के रूप में भी कार्य किया था।

    24 अक्तूबर, 1999 को वह हाई कोर्ट और 2009 को सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय न्यायालय में जज बने थे।

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