#NewsBytesExplainer: रेडियोएक्टिव पानी क्या है और इससे किस तरह के नुकसान का डर?
जापान ने अपने फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट के रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में छोड़ना शुरू कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 133 करोड़ लीटर पानी अगले 30 साल तक समुद्र में बहाया जाता रहेगा। जापान के मछुआरों सहित चीन, दक्षिण कोरिया और हांगकांग इसका विरोध कर रहे हैं और समुद्री जीवों से लेकर आम लोगों पर इसके बड़े दुष्प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है। आइये रेडियोएक्टिव पानी और इसके डर के बारे में जानते हैं।
रोजाना छोड़ा जाएगा लगभग 5 लाख लीटर पानी
जापान लंबे समय से इस रेडियोएक्टिव पानी को प्रशांत महासागर में छोड़ने की योजना में था, लेकिन पड़ोसी देशों के विरोध से रुका हुआ था। अब 24 अगस्त, 2023 को इसकी शुरुआत की गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 5 लाख लीटर रेडियोएक्टिव पानी प्रतिदिन समुद्र में छोड़ा जाएगा। इस कदम को यूनाइटेड नेशंस (UN) की अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की अनुमति मिली गई है, जिसके बाद जापान ने पानी छोड़ना शुरू किया है।
न्यूक्लियर रिएक्टर्स को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया गया था पानी
वर्ष 2011 में जापान में भारी भूकंप आया था और इससे वहां सुनामी आ गई। इससे फुकुशिमा में समुद्र किनारे बने न्यूक्लियर प्लांट में पानी घुस गया। रिएक्टर की कूलिंग के लिए रखे गए जनरेटर बंद होने से न्यूक्लियर प्लांट का रिएक्टर पिघलने लगा। इससे न्यूक्लियर पावर प्लांट में भयानक विस्फोट होने लगे। न्यूक्लियर रिएक्टर्स में चेन रिएक्शन होने से रोकने के लिए उसे ठंडा रखने के लिए 133 करोड़ लीटर पानी का इस्तेमाल किया गया।
पानी में घुल गए रेडियोएक्टिव तत्व
इससे 133 करोड़ लीटर पानी में कार्बन-14, आयोडीन-131, सीजियम-137, स्ट्रोनटियम-90, कोबाल्ट, हाइड्रोजन-3 और ट्राइटियम सहित लगभग 60 से ज्यादा तरह के रेडियोएक्टिव तत्व घुल गए। कई रेडियोएक्टिव तत्वों की उम्र कम होती है, लेकिन कार्बन-14 जैसे कुछ तत्व हैं, जिनका असर कम होने में लगभग 5,000 साल लगते हैं। हालांकि, UN की एटॉमिक एजेंसी ने कहा कि इस रेडियोएक्टिव पानी की इतनी सफाई हो चुकी है कि यह इंटरनेशनल मानकों पर खरा उतर रहा है।
कैंसर होने का डर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जापान ने रेडियोएक्टिव पानी को समुद्र में छोड़ने से पहले इसका ट्रीटमेंट (जहरीले तत्वों को कम करने की प्रकिया) किया है, जिससे उसमें केवल ट्राइटियम बाकी है। कई अध्ययनों में कहा गया है कि ट्राइटियम के संपर्क में आने पर कैंसर होने का डर रहता है। कुछ जानकारों का कहना है कि ट्राइटियम के दुष्प्रभाव जल्द ही देखने को मिलेंगे, लेकिन तब तक बात इतनी आगे पहुंच जाएगी कि उसे सुधारा नहीं जा सकेगा।
समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचने का डर
दरअसल, पानी या मिट्टी में रेडियोएक्टिव तत्व घुल जाने पर उनमें वर्षों तक उसका जहर बना रहता है। समुद्र में इस पानी को छोड़ने से मछली आदि समुद्री जीवों को नुकसान पहुंचने का डर है। मछली और क्रैब आदि के जरिए जहर इंसानों के भीतर पहुंचने का डर है। इसी डर की वजह से हांगकांग ने जापान से सी-फूड खरीदने पर पाबंदी लगा दी है। चीन और दक्षिण कोरिया भी ऐसा ही कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं।
समुद्र में पानी छोड़ने का था ये विकल्प
एक रिपोर्ट के मुताबिक, पानी को समुद्र में छोड़ने की जगह जापान उसे भाप बनाकर भी उड़ा सकता था। जापान ने इस प्रक्रिया पर काम भी शुरू किया, लेकिन ये पानी को समुद्र में छोड़ने के मुकाबले लगभग 10 गुना अधिक खर्चीला था।
वर्षों बाद भी रेडियोएक्टिव तत्वों का असर
अमेरिका ने वर्ष 1946 से 1958 तक प्रशांत महासागर के मार्शल आइलैंड में कई न्यूक्लियर परीक्षण किए थे। वर्ष 2012 की UN की एक रिपोर्ट के मुताबिक, परीक्षणों का असर वहां अब भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां की मिट्टी में शामिल हुए रेडियोएक्टिव तत्वों के चलते लोग कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं। जापान के हिरोशिमा में किए गए परमाणु हमले का असर अब भी है। परमाणु बम में भी रेडियोएक्टिव तत्व होते हैं।
रोजाना इस्तेमाल वाली इन चीजों से निकलती हैं रेडियोएक्टिव किरणें
स्मार्टफोन, एक्सरे मशीन और माइक्रोवेव आदि से भी रेडियोएक्टिव किरणें निकलती हैं। हालांकि, इनका रेडिएशन लेवल इंसान के सहने की क्षमता के बराबर बताया जाता है। इनके संपर्क में ज्यादा रहने पर ये भी नुकसानदायक हैं। रेडियोएक्टिव तत्वों से हार्ट फेल होने, बोन मैरो खत्म होने, आंत से जुड़ी समस्या होने, उल्टी, थकान, बालों का झड़ना, महिलाओं और पुरुषों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होने, ब्लड कैंसर, भूख न लगने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।