
#NewsBytesExplainer: अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा क्या है और इससे कैसे मिलेगी बिना प्रदूषण वाली बिजली?
क्या है खबर?
दुनियाभर में ग्रीन एनर्जी के ठोस उपाय खोजे जा रहे हैं। इसके लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इस बीच 1960 के दशक के विचार अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा (SBSP) से बिजली उत्पादन पर फिर से विचार किया जा रहा है।
इसमें सोलर पैनल के जरिए बिजली उत्पादन की जगह सीधे अंतरिक्ष में सैटेलाइट लगाकर सूर्य की ऊर्जा से बिजली प्राप्त की जाएगी।
आइये जानते हैं कि SBSP क्या है और इससे कैसे बिजली बनेगी?
अंतरिक्ष
SBSP क्या है?
अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा में अंतरिक्ष की सौर ऊर्जा को वायरलेस पावर ट्रांसमिशन के जरिए जमीन पर क्लेशन प्वाइंट तक पहुंचाया जाता है।
इसमें सैटेलाइट द्वारा भेजी गई माइक्रोवेव किरण को ग्राउंड स्टेशन की तरफ केंद्रित किया जाएगा, जहां एंटीना विद्युत चुंबकीय तरंगों को बिजली में परिवर्तित करेंगे।
इसमें माइक्रोवेव का उपयोग करके वातावरण में होने वाले ऊर्जा के नुकसान को कम किया जाता है और इससे आसमान में बादल छाए रहने पर भी ऊर्जा उत्पादन संभव होता है।
बिजली
वर्ष 1968 में आई SBSP से बिजली उत्पादन की पहली अवधारणा
वर्ष 1968 में पीटर ग्लेसर द्वारा SBSP से बिजली उत्पादन की पहली अवधारणा के बाद से कई डिजाइन प्रस्तावित किए गए हैं।
CASSIOPeiA नामक एक हालिया अवधारणा में 2 किलोमीटर चौड़े रिफ्लेक्टर शामिल हैं। ये सूर्य के प्रकाश को सौर पैनलों की एक सीरीज में प्रतिबिंबित करते हैं।
लगभग 1,700 मीटर व्यास वाले इन पावर ट्रांसमीटरों को ग्राउंड स्टेशन पर केंद्रित किया जा सकता है।
इस काम के लिए इस्तेमाल होने वाले सैटेलाइट का वजन 2,000 टन हो सकता है।
तकनीक
SBSP पर आधारित एक अन्य आर्किटेक्चर
अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा से जुड़ा एक अन्य आर्किटेक्चर SPS-ALPHA की बात करें तो यह CASSIOPeiA से इस मामले में अलग है कि इसमें सौर ऊर्जा इकट्ठा करने वाले हिस्से को बड़ी संख्या में छोटे और मॉड्यूलर रिफ्लेक्टरों द्वारा बनाया जाता है, जिन्हें हेलियोस्टैट्स कहा जाता है।
इनमें से प्रत्येक को स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित किया जा सकता है। लागत कम करने के लिए इनका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।
जानकारी
कैलटेक वैज्ञानिकों ने किया सैटेलाइट प्रयोग
वर्ष 2023 में कैलटेक के वैज्ञानिकों ने मैपल लॉन्च किया, जो एक छोटे पैमाने का सैटेलाइट प्रयोग था। इसमें थोड़ी मात्रा में ऊर्जा को बीम किया गया। मैपल ने साबित किया कि टेक्नोलॉजी का उपयोग पृथ्वी पर बिजली पहुंचाने के लिए किया जा सकता है।
प्रक्रिया
कई चरणों में तैयार होगी बिजली
सौर या पवन ऊर्जा की तुलना में SBSP के जरिए समान मात्रा में बिजली उत्पादन के लिए इसमें कम जगह की जरूरत है।
SBSP में ऊर्जा को कई बार परिवर्तित करना पड़ता है। पहले प्रकाश को बिजली, बिजली को माइक्रोवेव और फिर माइक्रोवेव को बिजली में बदलना पड़ता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा का कुछ हिस्सा गर्मी के रूप में नष्ट हो जाता है।
2 गीगावॉट बिजली के लिए सैटेलाइट द्वारा लगभग 10 गीगावॉट बिजली एकत्र करने की जरूरत होगी।
अध्ययन
सुरक्षित और स्थिर ऊर्जा आपूर्ति करता है SBSP
एक स्वतंत्र अध्ययन में पाया गया कि SBSP 2050 तक ब्रिटेन की मौजूदा बिजली की मांग का एक-चौथाई यानी 10 गीगावॉट तक बिजली पैदा कर सकता है।
कहा गया कि SBSP एक सुरक्षित और स्थिर ऊर्जा सप्लाई करता है।
यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी वर्तमान में अपनी सोलारिस पहल के साथ SBSP की क्षमता और कुशलता का मूल्यांकन कर रही है।
कुछ अन्य देशों ने भी हाल ही में 2025 तक पृथ्वी पर बिजली पहुंचाने के इरादे की घोषणा की है।
चुनौती
अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियां
SBSP मिशन चुनौतीपूर्ण होगा और इससे जुड़े जोखिमों का अभी पूरी तरह से आकलन करने की भी जरूरत है।
SBSP सैटेलाइट्स को लो अर्थ ऑर्बिट (पृथ्वी की निचली कक्षा) में स्थापित करने के लिए सैकड़ों लॉन्च की आवश्यकता होगी।
इसके जरिए मिलने वाली बिजली भले ही ग्रीन एनर्जी हो, लेकिन सैकड़ों लॉन्च से प्रदूषण होगा।
SBSP में इस्तेमाल होने वाले फोटोवोल्टिक सौर पैनल की दक्षता समय के साथ प्रति वर्ष 1 से 10 प्रतिशत तक कम हो जाएगी।
जानकारी
तकनीकी रूप से संभव है SBSP
अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा में जमीन तक पहुंचने वाली माइक्रोवेव बीम रास्ते में आने वाली किसी भी चीज को नुकसान पहुंचा सकती है। अंतरिक्ष में इस तरह के प्लेटफॉर्म बनाना कठिन चुनौती लग सकती है, लेकिन अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा तकनीकी रूप से संभव है।
सूर्य
इस वजह से लोकप्रिय नहीं हो सका SBSP
SBSP का विचार 1960 के दशक के अंत से ही चलन में होने के बाद भी बहुत लोकप्रिय नहीं हुआ, जबकि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल काफी देखने को मिला।
दरअसल, अंतरिक्ष आधारित ऊर्जा उत्पादन की विशाल क्षमता के बावजूद भारी लागत और तकनीकी कमियों के कारण यह अवधारणा लोकप्रिय नहीं हो सकी।
इसकी लागत और तकनीकी कमियां कम होने से SBSP दुनिया को जीवाश्म ईंधन से ग्रीन एनर्जी की तरफ ले जाने में महत्वपूर्ण साबित होगा।