#NewsBytesExplainer: अनाज संकट को लेकर मोदी सरकार चिंतित क्यों और इसे लेकर क्या कदम उठा रही?
भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतों में व्यापक वृद्धि के कारण जुलाई में महंगाई दर 15 महीने के अपने उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई। पिछले कुछ महीनों में सब्जियों की कीमतों में बेहताशा बढ़ोतरी के कारण महंगाई में हुई वृद्धि ने पहले ही लोगों पर काफी दबाव डाला हुआ है और अब देश के सामने गेहूं और चावल का संकट भी आ खड़ा हुआ है। आइए जानते हैं कि यह अनाज संकट क्या है।
क्या है अनाज संकट?
देश में गेहूं की कीमतें 6 महीने के अपने उच्चतम स्तर पर हैं। केंद्र सरकार गेहूं की आपूर्ति बढ़ाने और कीमतें कम करने के लिए संघर्ष कर रही है। इस साल गेहूं का उत्पादन भी 11.27 करोड़ मीट्रिक टन के अनुमान से कम हुआ। सरकार ने पिछले साल भी गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। उस वक्त रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर गेहूं की मांग बढ़ी थी। हालांकि, प्रतिबंध के बावजूद भी गेहूं की कीमतें बढ़ती रहीं।
चावल की कीमतों में भी वृद्धि
पिछले कुछ महीनों में सिर्फ गेहूं ही नहीं, उत्पादन में कमी के कारण चावल की कीमतें भी बढ़ रही हैं। इसके चलते सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे वैश्विक स्तर पर चावल का संकट खड़ा हो गया। भारत सरकार के इस कदम से दुनियाभर के प्रमुख गेहूं और चावल आयातक देश परेशानी में पड़ गए, लेकिन सरकार की प्राथमिकता अभी घरेलू स्तर पर खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने की है।
क्या आने वाले दिनों में मिलेगी राहत?
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को आशंका है कि मौसम की स्थिति और फसलों के कम उत्पादन से पड़ने वाले प्रभाव के कारण अगले कुछ महीने भी महंगाई दर ऊंची बनी रहेगी। सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाली NDA सरकार के लिए खिलाफ आगामी लोकसभा चुनाव में बढ़ती महंगाई बड़ा मुद्दा बन सकती है। इसके अलावा इसी साल के अंत तक कुछ प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में मोदी सरकार नहीं चाहेगी कि महंगाई कोई चुनावी मुद्दा बने।
क्यों चिंतित है मोदी सरकार?
भारतीय राजनीति और चुनाव में महंगाई एक बड़ा मुद्दा रही है, जिसनें कई सरकारों को सत्ता से बाहर कर दिया। खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें आम नागरिक को सीधे प्रभावित करती हैं और चुनाव में इसका असर भी देखा गया है। 2014 के चुनाव में सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं, बल्कि महंगाई भी एक बड़ा मुद्दा थी, जिसके कारण कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार सत्ता से बाहर हुई और NDA सरकार के सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
सरकार ने क्या कदम उठाए?
आगामी चुनाव को देखते हुए सरकार चावल और गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए तेजी से काम कर रही है। केंद्र सरकार ने लोगों को महंगाई से राहत देने के लिए सहकारी समितियों से माध्यम से सब्सिडी में टमाटर उपलब्ध करवाए। सरकार अब अनाज संकट को टालने के लिए गेहूं और चावल की कीमतों को नियंत्रित करने के बारे में अधिक चिंतित है, जो देश की एक बड़ी आबादी का प्रमुख भोजन हैं।
सरकार के पास कितना है स्टॉक?
सरकार ने अप्रैल, 2020 में कोरोना महामारी के चरम के दौरान लाखों लोगों को मुफ्त गेहूं और चावल उपलब्ध कराना शुरू किया था। इससे सरकार के खाद्य भंडार को झटका लगा और 2022 और 2023 में कम उत्पादन से यह अनाज संकट और बढ़ गया। 1 अगस्त, 2023 तक सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 2.83 करोड़ मीट्रिक टन था, जो पिछले साल के 2.66 करोड़ से अधिक है, लेकिन 10 साल के औसत 3.53 करोड़ टन से कम है।
क्या भारत को आयात करना पड़ेगा गेहूं?
देश में गेहूं की मौजूदा कमी और बढ़ती कीमतों के बीच सरकार ने हाल ही में आटा मिलों और बिस्किट निर्माताओं जैसे थोक उपभोक्ताओं को 50 लाख मीट्रिक टन गेहूं देने की पेशकश की है। इससे सरकारी गोदामों में स्टॉक और कम हो जाएगा। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार को गेंहू की कमी को पूरी करने के लिए कम से कम 30 से 40 लाख मीट्रिक टन गेहूं आयात करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार आटा मिलों की मदद के लिए गेहूं पर 40 प्रतिशत आयात कर को हटाने या कम करने पर विचार कर सकती है। इसके अलावा सरकार के पास रूस जैसे शीर्ष उत्पादकों से गेहूं आयात करने का विकल्प भी खुला है। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर सरकार कीमतों को कम करने के लिए कुछ कठोर कदम उठाती है, खासकर तब जब अगले साल आम चुनाव होने हैं।