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    #NewsBytesExplainer: मंगल तक जल्दी पहुंचा सकते हैं न्यूक्लियर रॉकेट, ये कैसे काम करते हैं? 
    नासा मंगल ग्रह की यात्रा में लगने वाले समय को कम करने के लिए न्यूक्लियर रॉकेट से जुड़े प्रोग्राम पर काम कर रही है (तस्वीर: नासा)

    #NewsBytesExplainer: मंगल तक जल्दी पहुंचा सकते हैं न्यूक्लियर रॉकेट, ये कैसे काम करते हैं? 

    लेखन रजनीश
    Aug 12, 2023
    10:22 am

    क्या है खबर?

    पृथ्वी से मंगल ग्रह तक पहुंचने में जितना समय अभी लगता है वह घटकर आधा हो सकता है।

    इसके लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजक्ट्स एजेंसी (DARPA) तेज स्पीड वाले न्यूक्लियर रॉकेट (परमाणु रॉकेट) प्रोग्राम पर काम कर रही हैं।

    एजेंसियों ने हाल ही में अपने न्यूक्लियर रॉकेट के प्रोपल्सन सिस्टम के निर्माण और डिजाइन के साथ ही इसके इंजन में परमाणु विखंडन रिएक्टर के निर्माण से जुड़ा अपडेट दिया था।

    अंतरिक्ष

    पृथ्वी और मंगल के करीब होने पर भी लंबी होती है यात्रा

    मंगल ग्रह और पृथ्वी हर 26 महीने में एक बार काफी करीब होते हैं। इनके करीब होने के पर भी पृथ्वी से मंगल की यात्रा में 7 से 9 महीने लग जाते हैं। दरअसल, अधिकतर समय अंतरिक्ष यान के अंतरिक्ष के सफर में ही बीत जाते हैं।

    ऐसे में यदि अंतरिक्ष यान अपनी यात्रा के पहले हिस्से में तेज स्पीड से यात्रा करे और फिर धीमी गति से चले तो यात्रा का समय काफी कम किया जा सकता है।

    स्पीड

    रॉकेट की स्पीड पर निर्भर है अंतरिक्ष यात्रा का समय

    अंतरिक्ष यान की स्पीड रॉकेट पर निर्भर करती है।

    वर्तमान में रॉकेट इंजन आमतौर पर ऑक्सीजन के साथ हाइड्रोजन या मीथेन जैसे ईंधन के दहन पर निर्भर होते हैं।

    दूसरी तरफ अंतरिक्ष यानों में अधिक प्रोपलैंट या ईंधन ले जाने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं होती, लेकिन यूरेनियम परमाणुओं के विभाजन से ऊर्जा उत्पन्न करने वाली परमाणु प्रतिक्रियाएं अधिक कुशल होती हैं। ऐसे में ये अंतरिक्ष यात्रा की स्पीड को तेज कर सकते हैं।

    यात्रा

    DRACO के जरिए अंतरिक्ष यात्रा के समय को घटाएगी नासा

    अंतरिक्ष यात्रा में लगने वाले समय को कम करने के लिए नासा DARPA के सहयोग से लंबे समय से एक परमाणु प्रणोदन प्रणाली की खोज में थी, जो मंगल ग्रह की यात्रा के समय को आधा कर सके।

    इस महत्त्वाकांक्षी पहल को डिमॉन्स्ट्रेशन रॉकेट फॉर एजाइल सिस्लुनर ऑपरेशंस (DRACO) के रूप में जाना जाता है। इसे 2027 तक में लॉन्च किया जा सकता है।

    नासा और DARPA के इस न्यूक्लियर रॉकेट प्रोग्राम DRACO की लागत लगभग 4,000 करोड़ रुपये है।

    इंजन

    समय घटने से अंतरिक्ष यात्रियों को होगी सुविधा 

    DRACO इंजन में एक परमाणु रिएक्टर होगा, जो हाइड्रोजन को माइनस 420 डिग्री फॉरेनहाइट से लेकर 4,400 डिग्री तक गर्म करेगा, जिसमें थ्रस्ट उत्पन्न करने के लिए नोजल से गर्म गैस की शूटिंग होगी।

    इसकी अधिक ईंधन दक्षता मंगल ग्रह की यात्रा की स्पीड को बढ़ा सकती है। ईंधन दक्ष होने के चलते मिशनों की लागत में भी कमी आएगी।

    इससे अंतरिक्ष यात्रियों के गहरे अंतरिक्ष के खतरनाक वातावरण में रहने में लगने वाले समय में कमी आएगी।

    महत्व

    पारंपरिक रॉकेट की तुलना में ज्यादा कुशल होते हैं न्यूक्लियर रॉकेट

    अंतरिक्ष यात्रा के समय को कम करना मंगल ग्रह पर मानव मिशन के लिए महत्वपूर्ण कार्य है।

    दरअसल, अंतरिक्ष यात्रा लंबी होने पर अधिक आपूर्ति और अधिक मजबूत सिस्टम की जरूरत होती है। अधिक बेहतरीन परिवहन तकनीक नासा को चांद से मंगल तक के लक्ष्यों को पूरा करने में भी मददगार होगी।

    न्यूक्लियर ईंधन वाले रॉकेट में काफी ज्यादा ऊर्जा स्टोरी हो सकती है और ये पारंपरिक रॉकेट की तुलना में लगभग दोगुने कुशल होते हैं।

    लॉन्चिंग

    पृथ्वी से लॉन्चिंग के लिए नहीं डिजाइन किए जाते न्यूक्लियर रॉकेट

    एक रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूक्लियर रॉकेट का इस्तेमाल पृथ्वी से रॉकेट की लॉन्चिंग के वक्त नहीं किया जाएगा।

    पृथ्वी से इसे अभी की तरह ही लॉन्च किया जाएगा और न्यूक्लियर ईंधन वाले रॉकेट को अंतरिक्ष में चालू किया जाएगा।

    न्यूक्लियर रॉकेट को पृथ्वी से की सतह छोड़ने के लिए जरूरी थ्रस्ट पैदा करन के लिए डिजाइन नहीं किया जाता है।

    माना जा रहा है कि ये रॉकेट मंगल ग्रह की यात्रा को लगभग आधा कम कर सकते हैं।

    न्यूक्लियर

    नया विचार नहीं है न्यूक्लियर प्रोपल्शन

    अंतरिक्ष के लिए न्यूक्लियर प्रोपल्सन कोई नया विचार नहीं है। 1950 और 1960 के दशक में नासा और एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी द्वारा वित्तपोषित प्रोजेक्ट ओरियन ने अंतरिक्ष यान की गति बढ़ाने के लिए परमाणु बमों के विस्फोटो का उपयोग करने पर विचार किया था।

    इसके साथ ही नासा और अन्य एजेंसियों ने प्रोजेक्ट रोवर और प्रोजेक्ट NERVA भी शुरू किया था। इनका उद्देश्य परमाणु थर्मल इंजन विकसित करना था।

    अब इन्हें DRACO प्रोग्राम द्वारा अंजाम दिया जा रहा है।

    कार्यक्रम

    कम क्षमता वाले यूरेनियम का उपयोग करता है DRACO 

    वर्ष 1973 में इस कार्यक्रम के अंत तक नासा ने बृहस्पति, शनि और उससे आगे तक अंतरिक्ष जांच को आगे बढ़ाने के साथ चांद के आधार पर बिजली प्रदान करने के लिए परमाणु रिएक्टरों का उपयोग करने पर विचार किया था।

    NERVA और DRACO के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि NERVA ने अपने रिएक्टरों के लिए हथियार ग्रेड यूरेनियम का उपयोग किया है, जबकि DRACO कम क्षमता वाले यूरेनियम का उपयोग करेगा।

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