नील आर्मस्ट्रांग ने 54 साल पहले चांद पर रखा था ये टूल, अभी भी है चालू
आज से ठीक 54 साल पहले 20 जुलाई, 1969 को अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और उनके सहयोगी बज एल्ड्रिन ने चांद की सतह पर कदम रखा था। आर्मस्ट्रांग को चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान की पहचान मिली। इन दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने उस समय चांद पर एक उपकरण रखा था। वह उपकरण आज भी काम कर रहा है। जान लेते हैं उस उपकरण का नाम और काम।
लेजर रेंजिंग रेट्रोरिफ्लेक्टर है उपकरण का नाम
दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद पर लेजर रेंजिंग रेट्रोरिफ्लेक्टर (LRRR) नाम का उपकरण रखा था। इससे पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का पता लगाते हैं। पृथ्वी से भेजी गई लेजर रेंजिग किरणें LRRR से टकराकर वापस आ जाती हैं और इसी के जरिए वैज्ञानिक पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी मापते हैं। जर्नल साइंस के एक लेख के अनुसार, इसकी माप इतनी सटीक होती है कि वास्तविक आंकड़े से अधिकतम 6 इंच का अंतर होता है।
रूस ने भी रखे थे रेट्रोरिफ्लेक्टर
LRRR को फ्यूज्ड सिलिका के टुकड़ों से बनाया गया था और चंद्रमा पर रखा गया था। 4 अन्य रेट्रोरिफ्लेक्टर भी पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक सैटेलाइट यानी चांद पर रखे गए थे। इनमें से 3 को अमेरिका के अपोलो मिशन द्वारा रखा गया था और 2 को सोवियत संघ के लूना मिशन द्वारा रखा गया था। हाल ही में भारत ने अपना चांद मिशन चंद्रयान-3 लॉन्च किया है। इसके साथ नासा का लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे भेजा गया है।
40 वर्षों तक गायब रहा एक रेट्रोरिफ्लेक्टर
स्पेस डॉट कॉम के अनुसार 17 नवंबर, 1970 को सोवियत संघ द्वारा चंद्रमा पर रखा गया पहला रेट्रोरिफ्लेक्टर लूनोखोद 1 लगभग 40 वर्षों तक गायब रहा। 14 सितंबर, 1971 के बाद इसकी कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन 2010 में वैज्ञानिकों ने इसे फिर से खोज निकाला। लूनोखोद और अन्य सभी रेट्रोरिफ्लेक्टर अभी भी चालू हैं। इजराइल के नेतृत्व वाले बेरेशीट मिशन और भारत के चंद्रयान-2 मिशन के जरिए भी चांद पर रेट्रोरिफ्लेक्टर लगाना था।
4 दिन में चांद पर पहुंच गया था अपोलो 11 मिशन
नासा के अपोलो 11 मिशन में उस समय आज के हिसाब से करीब 2 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अपोलो 11 मिशन उस समय मात्र 4 दिन में चांद पर पहुंच गया था। दरअसल, इसे पृथ्वी की कक्षा के बाद सीधे चांद की कक्षा में पहुंचा दिया गया था। इस मिशन को लॉन्च करने के लिए सैटर्न 5 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था। इसे अब तक का सबसे बड़ा और ताकतवर रॉकेट कहा जाता है।