नासा का 'मेगा मून रॉकेट' क्रू मिशन के लिए तैयार, परफॉरमेंस के सभी टेस्ट किए पास
नासा के विशाल स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) ने अपना पहला टेस्ट पास कर लिया है। रॉकेट और ओरियन कैप्सूल अपने अगले मिशन में जाने के लिए तैयार हैं। इसका इस्तेमाल आर्टिमिस-II में होगा, जो क्रू को लूनर ऑर्बिट में जाएगा। अब उन लोगों की भी चिंता खत्म हो गई जो इसमें लंबे समय से हो रही देरी और इसकी लागत बढ़ने से चिंतित थे कि SLS कभी उड़ान नहीं भरेगा। मेगा मून राकेट का ही उपनाम स्पेस लॉन्च सिस्टम है।
SLS प्रोग्राम मैनेजर ने कही ये बात
प्रोग्राम मैनेजर जॉन हनीकट ने बताया कि नासा के SLS रॉकेट ने अंतरिक्ष में आर्टिमिस जनरेशन और स्पेसफ्लाइट के भविष्य की नींव रखी है। उन्होंने कहा कि रॉकेट को सफलतापूर्वक बनाने और लॉन्च करने के लिए इंजीनियरिंग और डाटा के विश्लेषण की आवश्यकता होती है। नासा ने लिखा, 'लॉन्च के बाद पोस्ट-फ्लाइट डाटा का मूल्यांकन ये इंगित करता है कि सभी SSL सिस्टम शानदार प्रदर्शन करते हैं और डिजाइन आर्टिमिस-II पर क्रू फ्लाइट का सपोर्ट करने के लिए तैयार है।'
आर्टिमिस I से मिली ये सीख
प्रोग्राम मैनेजर जॉन हनीकट के मुताबिक, बूस्टर सेपरेशन जैसी घटनाओं के दौरान रॉकेट ने कैसा प्रदर्शन किया, इससे जुड़ा वास्तविक डाटा हासिल करने का एकमात्र तरीका आर्टिमिस-I का उड़ान परीक्षण था। उनका कहना है कि रॉकेट को सफलतापूर्वक बनाना और लॉन्च करना इंजीनियरिंग और कला है। SLS रॉकेट की उद्घाटन उड़ान नासा और उसके भागीदारों को आर्टिमिस-II और उससे आगे के मिशनों के लिए अच्छी स्थिति में रखता है।
चंद्रमा पर इंसानों के भेजने के लिए आर्टिमिस-I का डाटा सहायक
दबाव, तापमान और अन्य सभी चीजें पूर्वानुमानों के 2 प्रतिशत के भीतर थे। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं कि टीम अब भी उस डेल्टा को कम करने पर काम कर रही है। स्पेस लॉन्च सिस्टम के चीफ इंजीनियर जॉन बिल्विन्स ने बताया, "हमें आर्टिमिस I से जो डाटा मिला है, वह इस रॉकेट से इंसानों को वापस चंद्रमा पर भेजने के लिए विश्वास पैदा करने में बहुत सहायक है।"
मंगल मिशन के बाद नासा का सबसे महत्वपूर्ण मिशन
आर्टिमिस-I को पिछले साल 16 नवंबर को लांच किया गया था। उसमें लगे कैमरे और सेंसर के जरिए टीमों को यह पता लगाने में मदद मिली कि अंतरिक्ष सफर के दौरान रॉकेट का प्रदर्शन कैसा रहा। आर्टिमिस मिशन, नासा के मंगल मिशन के बाद सबसे महत्वपूर्ण मिशन है। 50 साल पहले US अपोलो मिशन के बाद पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतारने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।