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    ISRO का नया रॉकेट हुआ फेल; जानिए क्या हैं इसके मायने
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    टेक्नोलॉजी 1 मिनट में पढ़ें

    ISRO का नया रॉकेट हुआ फेल; जानिए क्या हैं इसके मायने

    लेखन प्राणेश तिवारी
    Aug 07, 2022
    06:20 pm
    ISRO का नया रॉकेट हुआ फेल; जानिए क्या हैं इसके मायने
    SSLV-D1 मिशन की असफलता ISRO के लिए बड़ा झटका है।

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को रविवार सुबह तब बड़ा झटका लगा, जब उसका नया रॉकेट सैटेलाइट्स को उनकी कक्षा में स्थापित करने में असफल रहा। यह अभियान ISRO के लिए छोटे सैटेलाइट्स और कॉमर्शियल लॉन्च की नींव रखता और इसकी सफलता के बाद सैटेलाइट लॉन्च पर आने वाला खर्च भी कम हो जाता। साफ है कि पहले SSLV मिशन की असफलता ISRO के लिए बड़ा झटका है, लेकिन बड़ा सवाल भविष्य के अभियानों पर इसके असर से जुड़ा है।

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    आखिरी चरण में डाटा लॉस के बाद असफलता

    7 अगस्त की सुबह श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से SSLV-D1 ने करीब नौ बजकर 18 मिनट पर उड़ान भरी। ISRO चेयरमैन एस. सोमनाथ की मानें तो इसने सभी चरणों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन किया, लेकिन आखिरी चरण में डाटा लॉस की बात सामने आई। बाद में पता चला कि रॉकेट अपने साथ ले गए दो छोटे सैटेलाइट्स को उनकी सही कक्षा में स्थापित नहीं कर सका है, यानी कि इन सैटेलाइट्स को इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।

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    लंबे वक्त से इस रॉकेट पर काम कर रही थी ISRO

    भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी लंबे वक्त से स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च वीइकल (SSLV) पर काम कर रही थी। माना जा रहा था कि यह भारतीय अंतरिक्ष अभियानों और उनके भविष्य को पूरी तरह बदल देगा। इस अभियान के सफल रहने की स्थिति में ISRO अपने नए रॉकेट पर भरोसा कर पाती और अगले अभियान की तैयारी में जुटती। फिलहाल, सारा ध्यान यह अभियान असफल रहने की वजह तलाशने और इसे सुधारने पर होगा।

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    छोटे सैटेलाइट्स भेजने के लिए भेजने होते हैं बड़े रॉकेट

    ISRO के पास कई सैटेलाइट लॉन्च वीइकल्स हैं, जिनकी रेंज में SLV, ASLV, PSLV और GSLV शामिल हैं। हालांकि, ये सभी बड़े रॉकेट्स हैं और बड़ा पेलोड अंतरिक्ष तक ले जाने में सक्षम हैं। यही वजह है कि ISRO को अक्सर रॉकेट लॉन्च के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है और वह कई सैटेलाइट्स एकसाथ भेजती है। नया मिशन सफल रहने पर छोटे सैटेलाइट्स भेजना आसान हो जाता और इनके लॉन्च के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता।

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    न्यूजबाइट्स प्लस

    करीब 34 मीटर ऊंचे और 120 टन वजन वाले नए SSLV में सुधार के बाद इसकी सफलता तय की जाएगी। इसकी मदद से माइक्रो और नैनो-सैटेलाइट्स लो-अर्थ ऑर्बिट में भेजे जाएंगे। इसी तरह PSLV पोलर सिंक्रनस ऑर्बिट और GSLV जियो सिंक्रनस ऑर्बिट तक जाते हैं।

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    सीमित बजट में अभियान पूरा करने की चुनौती

    ISRO के पास NASA या बाकी अंतरिक्ष एजेंसियों की तरह ढेर सारे संसाधन और बहुत बड़ा बजट नहीं है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि ISRO का सालाना बजट NASA के सालाना बजट के 10 प्रतिशत से भी कम है। यही वजह है कि इसके सामने सीमित बजट में अंतरिक्ष अभियान पूरे करने की चुनौती रहती है। एक असफल अभियान इसके अंतरिक्ष अनुसंधान की रफ्तार धीमी कर देता है और ऐसा पहले भी देखने को मिला है।

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    कॉमर्शियल लॉन्च के साथ मिलेगी मदद

    पिछले सात-आठ साल में कई प्राइवेट कंपनियां भी सैटेलाइट लॉन्च और अंतरिक्ष अभियानों का हिस्सा बनी हैं। इसके चलते अंतरिक्ष अभियानों से जुड़ी होड़ तेज हो गई है और ISRO बाकियों को टक्कर देना चाहती है। कॉमर्शियल लॉन्च के साथ ISRO दूसरी एजेंसियों और देशों के सैटेलाइट लॉन्च कर कमाई कर सकती है और यह कमाई दूसरे अभियानों पर लगाई जा सकेगी। ISRO अंतरिक्ष पर्यटन की दिशा में कदम बढ़ाने की कोशिश भी करने वाली है।

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    गगनयान अभियान के साथ अंतरिक्ष यात्री भेजने की तैयारी

    किसी अभियान का असफल होना पहले से निर्धारित अन्य अभियानों का भविष्य निर्धारित नहीं करता, हालांकि इनकी रफ्तार जरूर धीमी हो सकती है। अपने गगनयान अभियान के साथ ISRO इस दशक के आखिर तक अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रही है। इस अभियान के लिए पहला अबॉर्ट डेमोनस्ट्रेशन इसी साल के आखिर में किया जाएगा। मिशन पर 10,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है और इसमें अंतरिक्ष यात्री लो-अर्थ ऑर्बिट में भेजे जाएंगे।

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    कम बजट में हासिल कीं कई उपलब्धियां

    कम बजट के बावजूद ISRO ने कई असाधारण सफलाएं और उपलब्धियां हासिल की हैं। PSLV-C37 और मंगलयान इसके दो सबसे सफल लॉन्च रहे हैं। 2017 में हुए PSLV-C37 लॉन्च में एकसाथ 104 सैटलाइट भेजे गए थे और आज भी इसके नाम सिंगल रॉकेट के साथ सबसे ज्यादा सैटलाइट्स भेजना का रिकॉर्ड है। वहीं, इससे पहले 2013 में मंगलयान मिशन में भारत सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंचने वाला चौथा देश बना और चीन से भी पहले यह उपलब्धि हासिल की।

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