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    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-2 के मुकाबले चंद्रयान-3 की सफलता सुनिश्चित करने के लिए हुए ये बदलाव
    चंद्रयान-3 की सफलता सुनिश्चित करने के लिए इसमें चंद्रयान-2 के मुकाबले कई बदलाव किए गए हैं (तस्वीर: issdc.gov.in)

    #NewsBytesExplainer: चंद्रयान-2 के मुकाबले चंद्रयान-3 की सफलता सुनिश्चित करने के लिए हुए ये बदलाव

    लेखन रजनीश
    Jul 11, 2023
    10:53 am

    क्या है खबर?

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) अगले चांद मिशन चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च करेगा। इससे पहले ISRO ने 22 जुलाई, 2019 को भारत का दूसरा चांद मिशन चंद्रयान-2 लॉन्च किया था।

    लैंडर का कंट्रोल रूम से संपर्क टूटने की वजह से चंद्रयान-2 मिशन फेल हो गया था।

    चंद्रयान-2 की विफलता से सीख लेते हुए वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को सफल बनाने के लिए इसमें कई बदलाव किए हैं।

    जान लेते हैं चंद्रयान-2 के मुकाबले चंद्रयान-3 में क्या बदला है।

    संपर्क

    चंद्रयान-2 का IDNS से टूट गया था संपर्क

    चंद्रयान-2 के संपर्क टूटने की वजह किसी तकनीकी खराबी या रोवर को मिलने वाली ऊर्जा में दिक्कत को माना गया।

    यह भी माना गया कि अगर रोवर तय स्पीड से ज्यादा तेजी से चांद की सतह पर उतरा होगा तो ऐसे में उसकी हार्ड लैंडिंग हुई होगी और यह क्रैश हो गया होगा और इस वजह से इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDNS) से इसका संपर्क टूट गया होगा।

    दरअसल, चांद की सतह पर उतरने के लिए सॉफ्ट लैंडिंग जरूरी है।

    बदलाव

    चंद्रयान-3 में इन बातों का रखा गया है ध्यान

    चंद्रयान-3 में कोई दिक्कत न हो, इसके लिए इस मिशन में लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराने पर काफी ज्यादा जोर है।

    ISRO के चेयरमैन एस सोमनाथ ने कुछ समय पहले कहा था कि मिशन को सफल बनाने के लिए चंद्रयान-3 के हार्डवेयर, डिजाइन, सॉफ्टवेयर, एल्गोरिथम और सेंसर में सुधार किया गया है।

    उनके मुताबिक, चंद्रयान-3 के लैंडिंग पैरों को मजबूत किया गया है और ऊर्जा से जुड़ी कोई कमी न हो इसके लिए बड़े सौर पैनल लगाए गए हैं।

    लैंडिंग

    दूसरी लैंडिंग साइट पर जाने में सक्षम है चंद्रयान-3

    सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 में समस्या की स्थिति में वैकल्पिक लैंडिंग साइट पर जाने की उन्नत क्षमताएं हैं।

    चंद्रयान-3 की लैंडिंग की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ISRO ने चंद्रमा पर लैंडिंग के क्षेत्र को 4X2.5 किमी तक बढ़ा दिया है।

    सोमनाथ के मुताबिक, यान को दक्षिणी ध्रुव के पास उतारने का लक्ष्य है, लेकिन अगर किसी कारण से ऐसा संभव नहीं होता तो यह उस क्षेत्र के भीतर कहीं भी उतर सकता है।

    लैंडिंग

    क्यों जरूरी है सॉफ्ट लैंडिंग?

    सॉफ्ट लैंडिग को ऐसे समझिए कि चांद की सतह पर बहुत सारे गड्ढे, चट्टान मौजूद हैं और अगर लैंडर तेजी से गिरता है तो उसमें और उसके भीतर रखे रोवर में खराबी आ सकती है।

    जब ये उपकरण काम नहीं करेंगे तो वैज्ञानिकों को चांद से जुड़ी जानकारी ही नहीं मिल पाएगी और मिशन फेल हो जाएगा।

    इसलिए लैंडर का चांद की सतह पर नियंत्रित गति में उतरना जरूरी हो जाता है ताकि उसमें लगे उपकरणों को नुकसान न पहुंचे।

    ऑर्बिटर

    चंद्रयान-3 में इस्तेमाल होगा चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर

    चंद्रयान-2 मिशन फेल हो गया, लेकिन उसका ऑर्बिटर चांद की कक्षा में अभी भी काम कर रहा है, जिसकी अवधि 7 वर्ष है। चंद्रयान-3 में चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर को ही इस्तेमाल किया जाएगा।

    ऑर्बिटर न भेजने से चंद्रयान-3 मिशन में अधिक वैज्ञानिक उपकरण भेजे जा सकेंगे। साथ ही इसी कारण चंद्रयान-3 में प्रोपल्शन मॉड्यूल भेजा जाएगा, जो कम्युनिकेशन सैटेलाइट की तरह काम करेगा।

    यह लैंडर को चांद के पास छोड़कर सिर्फ धरती और लैंडर के बीच कम्यूनिकेशन में मदद करेगा।

    लागत

    चंद्रयान-2 से कम है चंद्रयान-3 की लागत

    चंद्रयान-3 मिशन की लागत 615 करोड़ रुपये है और चंद्रयान-2 मिशन की लागत 978 करोड़ रुपये थी।

    एक रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-3 के लिए नया ऑर्बिटर न बनाए जाने से भी इस मिशन की लागत कम हुई है।

    चांद तक पहुंचने के लिए चंद्रयान-3 लगभग 30,844 लाख किलोमीटर की यात्रा करेगा।

    चंद्रयान-2 का लैंडर जब चांद की सतह पर लैंड करने से 2.1 किलोमीटर बचा था, तब उसने भी 48 दिन में 30,844 लाख किलोमीटर की यात्रा की थी।

    लक्ष्य

    चंद्रयान-3 से पूरे किए जाएंगे चंद्रयान-2 के लक्ष्य

    चंद्रयान-2 के जरिए ISRO ने चांद की सतह के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की योजना बनाई थी।

    इस मिशन का उद्देश्य चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग, चांद की सतह पर चलने-घूमने की क्षमता के साथ महत्वपूर्ण टेक्नोलॉजी विकसित करना था।

    चंद्रयान-2 से चांद की भौगोलिक स्थिति, खनिज, रासायनिक संरचना आदि की जानकारी बढ़ानी थी। अब उन लक्ष्यों को चंद्रयान-3 से पूरा किया जाएगा, जिनमें चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग, चांद की सतह पर घूमना और वैज्ञानिक प्रयोग शामिल है।

    ध्रुव

    क्या है दक्षिणी ध्रुव?

    चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कई बड़े हिस्सों पर मौजूद क्रेटर (गड्ढे) अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी से अछूते हैं। वहां एक तरह की स्थायी छाया है।

    दक्षिणी ध्रुव के क्रेटर्स की रचना अनूठी है। वहां सौरमंडल के जन्म से सम्बंधित प्रमाण के साथ मानव जीवन के अनुकूल माहौल मिल सकता है। यही विशेषताएं दक्षिणी ध्रुव को महत्वपूर्ण बनाती हैं।

    अन्य देश भी दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी जानकारी के लिए प्रयासरत हैं।

    जानकारी

    महत्वपूर्ण है चंद्रयान-3 की सफलता

    चंद्रयान-2 लगभग 3,877 किलोग्राम का इंटीग्रेटेड अंतरिक्ष यान था। चंद्रयान-3 मिशन लगभग 8,000 किलोग्राम पेलोड ले जाएगा। चंद्रयान-3 की सफलता से अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा ऐसा देश बन जाएगा, जो चांद की सतह पर लैंडिंग और रोविंग में सफल होगा।

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