#NewsBytesExplainer: चांद पर लैंडिंग की हैं मुश्किलें, जानें चंद्रयान-3 के लिए क्यों जरूरी है 'सॉफ्ट लैंडिंग'
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 13 जुलाई को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-3 मिशन को लॉन्च करने के करीब है। हालांकि, ISRO के चेयरमैन एस सोमनाथन के एक हालिया बयान के मुताबिक, इसकी लॉन्चिंग 19 जुलाई तक खिंच सकती है।
चांद मिशन की सफलता के लिए सबसे ज्यादा कठिन कार्यों में से एक चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग है। सफल सॉफ्ट लैंडिंग में कई तरह की मुश्किलें आती हैं।
जान लेते हैं क्या हैं इसकी चुनौतियां।
लैंडिंग
सॉफ्ट लैंडिग न होने के चलते फेल हो गया था चंद्रयान-2
मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग के साथ ही अंतरिक्ष यान लगभग 2 महीने लंबी चांद की यात्रा पर निकल जाएगा और अंत में वह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करेगा।
ISRO ने पूर्व में सफल चांद मिशन लॉन्च किए हैं, लेकिन चांद पर उतरने का मामला अलग है।
वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 मिशन में सॉफ्ट लैंडिंग न हो पाने के चलते ही लैंडर और रोवर चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे और मिशन असफल हो गया था।
चुनौती
सही समय और सही स्पीड है जरूरी
चांद पर उतरने के लिए कई हाई-टेक सिस्टम के एक साथ और सही ढंग से काम करने की जरूरत होती है। इसके लिए पिनपॉइंट नेविगेशन गाइडेंस, फ्लाइट की सटीक गति, स्पष्ट तस्वीर, सही समय पर थ्रस्टर फायरिंग और अंत में सही लैंडिंग स्थान पर पहुंचने के लिए सही समय और सही स्पीड की जरूरत होती है।
इनमें से किसी एक भी सिस्टम के गलत या सही तरीके से काम नहीं करने पर मिशन फेल हो सकता है।
लैंडर
लैंडर की गिरने और कंपन की गति को करना होता है कंट्रोल
इंडिया टुडे की रिपोर्ट में चंद्रयान-2 का हिस्सा रहे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के हवाले से बताया गया कि चांद की तरफ जाने वाला लैंडर जब प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होकर चांद की सतह पर उतरता है तो उसके चांद की सतह पर गिरने और उसके कंपन की गति दोनों को सावधानी पूर्वक नियंत्रित करना होता है।
सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की गति को ऑटोमैटिक 3 मीटर प्रति सेकंड तक कम करने की आवश्यकता है। इसे थ्रस्टर कम करता है।
जापान
सॉफ्ट लैंडिंग में कमी के चलते फेल हुए ये अभियान
इस साल की शुरुआत में जापान के आईस्पेस को चांद पर उतरने के दौरान एक समस्या का सामना करना पड़ा। जापान का हकुतो-आर लैंडर ऊंचाई की गलत गणना के कारण समय पर धीमा होने में विफल रहा और नतीजन अभियान फेल हो गया।
भारत के चंद्रयान-2 में सॉफ्टवेयर गड़बड़ी के चलते ऐसी ही खराबी आई थी। चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर उतरने के दौरान हार्ड लैंडिंग हुई थी, जिससे लैंडर में खराबी आ गई।
गुरुत्वाकर्षण
गुरुत्वाकर्ण भी है चुनौती
चंद्रमा में वायुमंडल नहीं है, फिर भी इसमें गुरुत्वाकर्षण है, जो पृथ्वी का लगभग एक छठा भाग यानी पृथ्वी के मुकाबले काफी कम है। अभियानों को सफल बनाने के लिए चांद गुरुत्वाकर्षण को समझना जरूरी है।
दरअसल, गुरुत्वाकर्षण बल की कमी के कारण किसी भी उपकरण पर अधिक सटीक नियंत्रण की आवश्यकता होती है। गुरुत्वाकर्षण की कमी से लैंडिंग का बोझ लैंडर के थ्रस्टर्स पर पड़ता है, जिसे सही समय और सही बल के साथ फायर करना होगा।
क्रेटर
चांद के क्रेटर और रेजोलिथ बढ़ाते हैं मुश्किल
सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडिंग क्षेत्र महत्वपूर्ण है, लेकिन चांद की सतह पर बड़े क्रेटर (गड्ढे) और रेजोलिथ (मिट्टी और चट्टान) हैं। ये लैंडिंग को और चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।
इनकी वजह से लैंडिंग लोकेशन पहले से ही चुनना पड़ता है। इनमें प्राइमरी, वैकल्पिक और सेकेंडरी लैंडिंग लोकेशन या लैंडिंग साइट्स का चुनाव करना होता है।
चंद्रयान-3 के लैंडर में इन खतरों का पता लगाने वाले 2 हजार्ड डिटेक्शन और कैमरे हैं। अंतिम निर्णय के लिए इनके इनपुट का इस्तेमाल होगा।
जानकारी
इनपुट पहुंचने में देरी भी लैंडिंग को बनाता है कठिन
अंतिम निर्णय लेने वाला डाटा मिशन कंट्रोल को भेजा जाएगा, लेकिन पृथ्वी से अंतरिक्ष यान को इनपुट भेजने में देरी होने के कारण वास्तविक निर्णय लैंडर द्वारा ही लिया जाएगा और यही वह चीज है जो चांद की लैंडिंग को इतना कठिन बना देती है।