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    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा क्यों बनी हुई है पुरानी पेंशन योजना?

    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा क्यों बनी हुई है पुरानी पेंशन योजना?
    लेखन भारत शर्मा
    Nov 08, 2022, 07:56 pm 1 मिनट में पढ़ें
    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा क्यों बनी हुई है पुरानी पेंशन योजना?
    हिमाचल प्रदेश में क्यों हो रही है पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग?

    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही राज्य में पुरानी पेंशन योजना (OPS) की मांग तेज हो गई है। राज्य के सरकारी कर्मचारी इसकी मांग को लेकर लामबंद हैं और जमकर इस मुद्दे को उठा रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) ने सत्ता में आने पर OPS लागू करने का वादा किया है, जबकि भाजपा इससे बच रही है। आइए जानते हैं क्या है OPS और यह प्रमुख मुद्दा क्यों बनी हुई है।

    आखिर क्या है OPS?

    OPS को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दिसंबर 2003 में खत्म कर दिया था। इस योजना में कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद आखिरी वेतन की 50 प्रतिशत राशि पेंशन के रूप में मिलती थी और उन्हें 10 महीने का पूरा वेतन दिया जाता है। इस पूरी राशि का भुगतान सरकार करती थी। इस पेंशन योजना का लाभ उठाने के लिए कर्मचारियों का 10 साल की सेवा करना आवश्यक होता था।

    OPS में मिलते हैं ये अन्य लाभ

    OPS में पेंशनर्स को हर साल उसकी पेंशन के आधार पर महंगाई भत्ता (DA), क्रमिक वेतन आयोगों के साथ पेंशन में संशोधन, एक निश्चित आयु के बाद अतिरिक्त पेंशन और मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को पारिवारिक पेंशन का भी लाभ मिलता है।

    क्या है NPS और यह कब लागू हुई?

    OPS को खत्म करने के बाद केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल, 2004 से नई पेंशन योजना (NPS) या अंशदायी पेंशन योजना को लागू किया था। इसमें पेंशन के लिए कर्मचारियों के वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा काटा जाता है और राज्य सरकार 14 प्रतिशत राशि का भुगतान करती है। इसके बाद यह राशि पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) के पास जमा की जाती है और वह इस राशि का निवेश कर सरकार को मुनाफा कमाकर देता है।

    NPS में शामिल कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर क्या मिलता है?

    NPS में शामिल कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर जमा कराई गई पेंशन राशि का 60 प्रतिशत हिस्सा एकमुश्त निकालने की छूट होती है। शेष राशि से नियमित आय के लिए एन्युटी खरीदी जाती है। यह एन्युटी एक इंश्‍योरेंस प्रोडक्‍ट है। इसमें एकमुश्‍त निवेश करना होता है। इससे भविष्‍य में मासिक, तिमाही या वार्षिक तौर पर भुगतान किया जाता है। इसमें कर्मचारी को जिंदा रहने तक पैसा मिलता है और मौत के बाद बकाया राशि नॉमिनी को मिलती है।

    कैसे शुरू हुआ NPS का विरोध?

    हाल ही में ग्रुप B और C के अधिकारियों वाले विभिन्न सरकारी यूनियनों के शीर्ष निकाय संयुक्त सलाहकार मशीनरी (JCM) ने कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर OPS वापस लाने की मांग की थी। उन्होंने पत्र में NPS को कर्मचारियों के लिए आपदा बताया था। महासंघ ने पत्र में कहा था कि उनके सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अभी तक NPS में स्वीकृत राशि का 15 प्रतिशत हिस्सा ही मिला है। ऐसे में NPS सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बुढ़ापे के लिए बड़ी आपदा है।

    हिमाचल प्रदेश में क्यों हो रहा है NPS का विरोध?

    दरअसल, विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और AAP ने सत्ता में आने पर OPS लागू करने का वादा किया है। सत्ताधारी भाजपा ने ऐसा वादा करने की जगह मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा गठित पैनल की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय करने की बात कही है। ऐसे में कर्मचारियों ने चुनाव के समय ही इस मुद्दे को तेजी से उठाने का निर्णय किया है। उनका मानना है कि चुनाव के जरिए वह अपनी मांग मनवा सकते हैं।

    हिमाचल में क्या है सरकारी कर्मचारियों की स्थिति?

    हिमाचल में वर्तमान में करीब ढाई लाख सरकारी कर्मचारी हैं। इसी तरह 1.90 लाख कर्मचारी सेवानिवृत्त होकर पेंशन ले रहे हैं। राज्य के 55 लाख मतदाताओं में से अधिकतर सरकारी कर्मचारी और पेंशनर्स के आश्रितों में आते हैं। ऐसे में ये किसी भी पार्टी की किस्मत का फैसला करने में सक्षम हैं। अब NPS कर्मचारी संघ ने OPS की मांग को लेकर लोगों को लामबंद किया है और सोशल मीडिया के माध्यम से भी मुद्दा उठा रहे हैं।

    हिमाचल में OPS क्यों है चुनावी मुद्दा?

    हिमाचल NPS कर्मचारी संघ के महासचिव भरत शर्मा ने बताया कि OPS पहाड़ी राज्य में बड़ा चुनावी मुद्दा है। राज्य में इसे 2006 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने लागू किया था। उन्होंने बताया कि राज्य में 1 अप्रैल, 2004 के बाद भर्ती हुए कर्मचारी अब सेवानिवृत्त होने लगे हैं, लेकिन उन्हें पुराने पेंशनर्स की तुलना में मामूली यानी दसवां हिस्सा पेंशन मिल रही है। इसी तरह बच्चों की बेरोजगारी कोढ़ में खाज का काम कर रही है।

    चाय की दुकान चलाने को मजबूर हैं पेंशनर्स- शर्मा

    शर्मा ने बताया कि हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हरिदास ठाकुर को महज 1,301 रुपये पेंशन मिल रही है, जबकि OPS में यह 13,000 रुपये बनती। परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें चाय की दुकान खोलनी पड़ी है। यह पेंशनर्स की दुदर्शा है।

    OPS लागू करने से क्यों बच रही है भाजपा?

    मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हिमाचल प्रदेश पर करीब 7,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में अगर OPS लागू की जाती है तो राज्य पर 600 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इसी तरह भाजपा यहां इसे लागू करती है तो भाजपा शासित अन्य राज्यों में भी इसकी मांग उठ सकती है और यह वहां की सरकारों के लिए वित्तीय भार वाला कदम होगा। राज्य के भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि यह केंद्र द्वारा किया जाने वाला निर्णय है।

    किन राज्यों में लागू है OPS?

    NPS को लागू करने के दौरान पश्चिम बंगाल ने इसे लागू नहीं किया था। उसके बाद छत्तीसगढ़ ने सबसे पहले OPS लागू करने का निर्णय किया था। अब पंजाब, झारखंड और राजस्थान भी OPS को फिर लागू करने की घोषणा कर चुकी हैं।

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