
बचपन की शिक्षा में सरकार की कंजूसी, GDP का 0.1 प्रतिशत ही कर रही खर्च- रिपोर्ट
क्या है खबर?
भारत में तीन साल से छह साल के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन शिक्षा (ECE) के खर्च में सरकार कंजूसी बरत रही है।
हालात यह है कि इस उम्र के बच्चों की शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मात्र 0.1 प्रतिशत हिस्सा ही खर्च किया जा रहा है, जबकि बेहतर शिक्षा के लिए 1.2 से 2.2 प्रतिशत तक खर्च किया जाना चाहिए।
गैर सरकारी संगठन (NGO) सेव द चिल्ड्रन की ओर से जारी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
खर्च
ECE पर कितना खर्च किया जाना चाहिए?
NGO की ओर से जारी ECE की भारत की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार बचपन की शिक्षा पर GDP का महज 0.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च कर रही है, जबकि इस पर 1.2 से 2.2 प्रतिशत तक खर्च हाेना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, प्री स्कूलों और डे केयर सेंटर में 1.6 से 2.5 प्रतिशत, आंगनबाड़ी केंद्रों में 1.5 से दो प्रतिशत और प्राइमरी स्कूलों के प्री प्राइमरी सेक्शन में 2.1 से 2.2 प्रतिशत तक खर्च किया जाना चाहिए।
सवाल
रिपोर्ट में उठाया गया है गंभीर सवाल
रिपोर्ट के अनुसार, बेहतर ECE के लिए प्रति बच्चा प्रति वर्ष औसत 32,531 से 56,327 रुपये तक खर्च किया जाना चाहिए, लेकिन देश में एक चौथाई यानी 8,297 रुपये ही खर्च किए जा रहे हैं। यह बहुत चिंतनीय विषय है।
रिपोर्ट में सवाल किया है कि इस तरह भारत में नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के आधार पर 2030 तक कैसे बच्चों को जरूरी प्राथमिक शिक्षा दी जा सकती है? सरकार की रवैये से ऐसा होना मुमकिन नहीं लग रहा।
अंतर
आवंटन में भी है भारी अंतर
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ECE के लिए सार्वजनिक प्रावधान 25,000 करोड़ रुपये का था। इस हिसाब से प्रति बच्चा आवंटन 8,297 रुपये आता है, लेकिन आवंटन राज्यों में भी अलग-अलग है।
मेघालय में सबसे कम 3,792 और हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक 34,758 रुपये आवंटित किए गए हैं।
इसी तरह देश में मौजूद तीन-छह वर्ष के 31.4 मिलियन बच्चों में से केवल 32 प्रतिशत ही ECE सेवाएं प्राप्त कर पा रहे हैं।
तुलना
अन्य देशों में कितना हो रहा है ECE पर खर्च?
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जहां ECE पर GDP का 0.01 प्रतिशत बजट खर्च किया जा रहा है, वहीं यूनाइडेट किंगडम में यह 0.22 प्रतिशत है।
इसी तरह अमेरिका में 0.33 प्रतिशत, जर्मनी 0.49 प्रतिशत और फिनलैंड 0.71 प्रतिशत खर्च किया जा रहा है।
हालांकि, 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में तीन से छह वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की आबादी अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक थी। ऐसे में खर्च में कमी दिखाई दे रही है।
बयान
ECE के मुद्दे पर होने लगी है चर्चा- गौड़
NGO के शिक्षा प्रभारी कमल गौड़ ने कहा कि ECE एक प्रक्रिया से गुजरता है। यह आसान कार्य नहीं है। यह अच्छी बात है कि इस पर अब चर्चा होने लगी है। वह इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहते हैं और राज्य तथा केंद्र सरकार से भी बातचीत करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि छोटे उम्र के बच्चों में बौद्धिक विकास के लिए ECE का महत्व जरूरी है। इनके लिए GDP में निर्धारित फंड खर्च होना ही चाहिए।