
काबुल में मिले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीनी विदेश मंत्री, बैठक पर क्यों हैं भारत की नजरें?
क्या है खबर?
चीन के विदेश मंत्री वांग यी अपनी भारत यात्रा के बाद अब अफगानिस्तान पहुंच गए हैं। वहां उन्होंने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के साथ वार्ता में हिस्सा लिया। तीनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच ये इस तरह की छठी वार्ता है। बैठक में आतंकवाद-रोधी प्रयासों, चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना में अफगानिस्तान को शामिल करने और कई अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। वांग यी अफगानिस्तान से ही पाकिस्तान दौरे पर रवाना होंगे।
मुद्दे
अफगानिस्तान और चीन के बीच किन मुद्दों पर हुई बात?
अफगान तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन ने अफगानिस्तान को बताया कि वो अफगानिस्तान में खनिजों की खोज और खनन के लिए उत्सुक है। चीन चाहता है कि काबुल औपचारिक रूप से उसके बेल्ट एंड रोड पहल में शामिल हो। बयान के अनुसार, वांग ने कहा कि दोनों देश कृषि उत्पादों के व्यापार में आने वाली बाधाओं को दूर करने और अफगानिस्तान से चीन को निर्यात बढ़ाने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
त्रिपक्षीय मुद्दे
त्रिपक्षीय बैठक में क्या हुई चर्चा?
जियो न्यूज के अनुसार, बैठक में आतंकवाद-विरोधी प्रयासों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। अफगानिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हाफिज जिया अहमद ने सोशल मीडिया पर लिखा, 'त्रिपक्षीय बैठक के दौरान राजनीतिक, क्षेत्रीय और आर्थिक सहयोग सहित कई राजनयिक विषयों पर व्यापक चर्चा हुई।' पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि बैठक में व्यापार बढ़ाने, क्षेत्रीय संपर्क में सुधार लाने और आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयासों को मजबूत करने पर चर्चा हुई।
भारत
बैठक पर भारत की भी नजरें
बैठक को लेकर भारत भी सतर्क है, क्योंकि CPEC का भारत विरोध करता रहा है। ये पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत को कड़ी आपत्ति है। अगर अफगानिस्तान भी इसमें शामिल होता है तो पाकिस्तान कब्जे वाले क्षेत्र पर अपना दावा मजबूत कर सकता है। भारत ने अफगानिस्तान में कई अहम परियोजनाओं में निवेश कर रखा है, इससे भी भारत चिंतित है। पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ को देखते हुए भी ये बैठक अहम है।
मान्यता
चीन और पाकिस्तान ने नहीं दी है तालिबान शासन को मान्यता
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से केवल रूस ने ही मान्यता दी है। चीन और पाकिस्तान ने ये कदम नहीं उठाया है, लेकिन दोनों देशों ने हालिया सालों में अफगानिस्तान के साथ संबंध बढ़ाए हैं। चीन पहला देश था, जिसने तालिबानी शासन में अपना राजदूत नियुक्त किया था। बताया जाता है कि अफगानिस्तान के लिथियम, लोहे और तांबे के भंडारों पर चीन की नजरें हैं।