जानिए कैसे एयर स्ट्राइक ने पलट कर रख दिए लोकसभा चुनाव के सारे समीकरण
पुलवामा हमले और उसके बाद हुई एयर स्ट्राइक ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक परिदृश्य को पलट कर रख दिया है। जहां पहले केंद्र शासित भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष में कांटे की लड़ाई नजर आ रही थी, वहीं अब समीकरण बदल चुके हैं। यूं तो सरकार के इस फैसले से भारतीय राजनीति पर दूरगामी असर भी होंगे, लेकिन अभी हम इसके लोकसभा चुनाव पर पड़ने वाले असर के बारे में जानते हैं।
चुनाव और युद्ध का संबंध
1947 में आजादी के कश्मीर को लेकर हुए संघर्ष के बाद भारत-पाकिस्तान युद्ध के मैदान में तीन बार 1965, 1971 और 1999 में आमने-सामने आ चुके हैं। इनमें से केवल 1999 में करगिल युद्ध के समय ही युद्ध के ठीक बाद चुनाव हुए थे।
भाजपा के हिसाब से सेट हुआ चुनाव का माहौल
निसंदेह यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में घुस कर आतंकी कैंपों पर हमला करने का प्रधानमंत्री मोदी का फैसला एक साहसी फैसला था। इतना बड़ा फैसला लेते समय उनके मन में लोकसभा चुनाव पर इसके प्रभाव की बात अवश्य रही होगी। कश्मीर और देशभर में आतंकवाद पर लगाम लगाने में यह कितना कारगर सिद्ध होगा, यह विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन इसने चुनावी माहौल को भाजपा के हिसाब से सेट कर दिया है।
राष्ट्रवाद की पिच पर होगा लोकसभा चुनाव
देशभक्ति के माहौल के बीच तय है कि लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद की पिच पर खेला जाएगा। भाजपा राष्ट्रवाद की राजनीति की सबसे बड़ी खिलाड़ी है और अहम चुनाव से पहले राष्ट्रवादी माहौल होने से बेहतर उसके लिए कुछ और नहीं हो सकता। पिछले 5 साल में उसने राष्ट्रवाद के पौधे को खाद-पानी देकर बड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब इस 'राष्ट्रवादी पौधे' से फल तोड़ने का वक्त आ चुका है और भाजपा इसके लिए पूरी तरह तैयार है।
एयर स्ट्राइक पर फंसा विपक्ष
एयर स्ट्राइक के फैसले का असर इतना है कि इसे मास्टरस्ट्रोक कहा जाए तो गलत नहीं होगा। इस एक फैसले ने पूरे विपक्ष को फंसा कर रख दिया है। जहां भाजपा एयर स्ट्राइक का श्रेय लेने और इसका लाभ उठाने के लिए जमकर राजनीति कर रही है, वहीं विपक्ष सवाल पूछने में भी डर रहा है। खुद से पूछे गए हर सवाल को भाजपा सेना पर सवाल के तौर पर पेश कर रही है और उन्हें देशविरोधी बता रही है।
विपक्ष के लिए एक तरफ कुंआ, एक तरफ खाई
मौजूदा स्थिति में विपक्ष ना तो सरकार से सवाल कर सकता है और ना ही चुनाव से पहले चुप बैठने का खतरा ले सकता है। इस मामले में एयर स्ट्राइक का निशाना ठीक जगह लगा है। उसने विपक्ष की हालत ऐसी कर दी है कि उसके लिए एक तरफ कुंआ तो एक तरफ खाई है। एयर स्ट्राइक के माया'जाल' से कैसे निकलना है, यह उसे समझ नहीं आ रहा। इसमें जनता के बीच उसकी कम विश्वसनीयता एक अहम कारण है।
एयर स्ट्राइक से चमका 'ब्रांड मोदी'
एयर स्ट्राइक ने कथनी और करनी के स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी को विश्वसनीयता दिलाने का काम किया है और 'ब्रांड मोदी' चमका है। अब एक बार फिर से उनकी रैलियों का एक बड़ा असर होगा, जो पिछले कुछ सालों में सरकार के कामकाज को लेकर उठे सवालों के बाद गायब होता नजर आ रहा था। एयर स्ट्राइक सहयोगियों के साथ राजनीतिक सौदेबाजी में भाजपा को मजबूत स्थिति में खड़ा करने में मदद करेगा।
विपक्ष के सारे मुद्दे बेअसर
एयर स्ट्राइक ने फिलहाल के लिए विपक्ष के राफेल, कृषि संकट, नोटबंदी समेत सारे मुद्दों को बेअसर कर दिया है। राफेल मुद्दे पर ही पुलवामा हमले से पहले सरकार बुरी तरह घिरी हुई थी। अब जब तक यह मुद्दे फिर से लय पकड़ेंगे, चुनाव निकल चुके होंगे। यही कारण है कि विपक्ष फिर से महागठबंधन की राह पर निकलने की सोच रहा है ताकि जातिगत और तमाम अन्य समीकरणों को साध कर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया जा सके।
करगिल युद्ध का वाजपेयी को नहीं हुआ था खास फायदा
करगिल युद्ध के बाद हुए चुनावों में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने 182 सीटें जीती थीं, जो कि 1998 में हुए पिछले चुनावों के बराबर ही थी। वहीं, उनका वोट 1.84 प्रतिशत कम हुआ था। लेकिन देश के अंदर तब और अब की परिस्थितियों में खासा अंतर है। भाजपा ने पूरे 5 साल देश में राष्ट्रवाद को हवा देने में खपाए हैं और इसलिए माना जा रहा है कि एयर स्ट्राइक का चुनाव पर बड़ा असर होगा।