दवा कंपनियों की मार्केटिंग प्रैक्टिस की होगी समीक्षा, 90 दिन में रिपोर्ट देगा पैनल
क्या है खबर?
दवा कंपनियों की तरफ से डॉक्टरों को रिश्वत और दूसरे लालच देने से रोकने के लिए सरकार गंभीर हो गई है।
केंद्र सरकार ने दवा कंपनियों की मार्केटिंग प्रैक्टिस की समीक्षा की समीक्षा के लिए एक पैनल का गठन किया है।
समीक्षा के साथ-साथ यह पैनल यह भी देखेगा कि क्या इन मेडिकल प्रैक्टिस के नियंत्रण के लिए किसी कानूनी ढांचे की जरूरत है।
इस पैनल को तीन महीनों के भीतर अपनी सिफारिशें सौंपनी होगी।
पैनल
डॉ वीके पॉल करेंगे नेतृत्व
न्यूज18 के अनुसार, कोरोना टास्क फोर्स का नेतृत्व कर रहे नीति आयोग (स्वास्थ्य) के सदस्य डॉ वीके पॉल को इस पैनल की कमान सौंपी गई है।
उनके अलावा फार्मास्यूटिकल विभाग की सचिव एस अपर्णा, स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के प्रमुख नितिन गुप्ता और फार्मा विभाग (पॉलिसी) के एक संयुक्त सचिव को इस पैनल में शामिल किया गया है।
12 सितंबर को इसके लिए मेमोरेंडम जारी किया जा चुका है।
जानकारी
किन चीजों की समीक्षा करेगा पैनल?
यह पैनल मौजूदा कोड ऑफ कंडक्ट और 2015 में लाए गए यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (UCPMP) की समीक्षा करेगा।
मेमोरेंडम में लिखा गया है कि मौजूदा नियमों के तहत शिकायत और जांच का प्रावधान है, लेकिन ये सरकार के किसी भी नियमों के तहत नहीं आते। मार्केटिंग प्रैक्टिसेस को नियंत्रित करने के एक कानूनी ढांचे की जरूरत के मुद्दे पर सभी हितधारकों के विचार लेने और उनकी समीक्षा के लिए यह पैनल बनाया गया है।
जानकारी
सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है मामला
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में अपनी दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को उपहार देने के संबंध में दवा कंपनियों को जवाबदेह ठहराने की मांग की गई थी।
याचिका में एक उदाहरण दिया गया है कि बुखार की दवा डोलो-650 लिखने के लिए इसकी निर्माता कंपनी ने डॉक्टरों को 1,000 करोड़ रुपये के उपहार दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मामला बताते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।
नुकसान
याचिकाकर्ता ने गिनाए ये नुकसान
याचिकाकर्ता का कहना था कि इस तरह के कामों से न सिर्फ जरूरत से ज्यादा दवा दी जाती है बल्कि यह मरीज की सेहत को भी नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे भ्रष्टाचार के कारण महंगी और गैर-जरूरी दवाएं बाजार में आ रही हैं।
याचिका में कहा गया था कि मौजूदा नियमों के चलते फार्मा कंपनियों की ऐसी गतिविधियां बढ़ रही हैं और इन पर रोक और निगरानी के लिए नए नियमों की जरूरत है।
जानकारी
29 सितम्बर को होगी सुनवाई
सुनवाई के दौरान एक वकील ने फार्मा कंपनियों की तरफ से हस्तक्षेप याचिका दायर करने की मंजूरी मांगी थी। इसे स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मुद्दे पर फार्मा कंपनियों का पक्ष भी सुनना चाहेगा। 29 सितम्बर को अगली सुनवाई होगी।