बंगाल: क्यों आठ चरणों में हो रहा चुनाव और राजनीतिक पार्टियों के लिए इसके क्या मायने?
क्या है खबर?
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है और चुनाव आयोग ने राज्य की 294 सीटों पर अप्रत्याशित आठ चरणों में चुनाव कराने का फैसला लिया है।
हालांकि आयोग का यह फैसला तृणमूल कांग्रेस (TMC) समेत तमाम राजनीतिक पार्टियों के गले नहीं उतरा है और उन्होंने आयोग पर भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला चुनावी कार्यक्रम बनाने का आरोप लगाया है।
आइए आपको इन आरोपों की वजह और चुनाव आयोग के पक्ष के बारे में बताते हैं।
कार्यक्रम
सबसे पहले जानें बंगाल विधानसभा चुनाव का कार्यक्रम
चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से लेकर 29 अप्रैल तक आठ चरणों में विधानसभा चुनाव होंगे।
राज्य में 27 मार्च को पहले चरण, 1 अप्रैल को दूसरे चरण, 6 अप्रैल को तीसरे, 10 अप्रैल को चौथे, 17 अप्रैल को पांचवें, 22 अप्रैल को छठे, 26 अप्रैल को सातवें और 29 अप्रैल को आठवें और आखिरी चरण की वोटिंग होगी।
कुछ जिलों में भी कई चरणों में वोटिंग होगी। नतीजे 2 मई को आएंगे।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने लंबा कार्यक्रम घोषित करने के क्या कारण दिए?
चुनाव आयोग ने आठ चरणों में चुनाव कराने के अपने इस फैसले के लिए त्योहारों, कोरोना वायरस महामारी के कारण बढ़ाई गई मतदान केंद्रों की संख्या और सुरक्षा इंतजामों को जिम्मेदार बताया है।
बंगाल में इस बार 1,01916 मतदान केंद्रों पर वोटिंग होगी जो 2016 विधानसभा चुनाव के 77,413 के मुकाबले लगभग 32 प्रतिशत अधिक हैं। 2016 में भी सात चरणों में वोटिंग हुई थी।
इसके अलावा ज्यादा चरणों के कारण सुरक्षा बलों का भी अच्छे से बंटवारा हो सकेगा।
जिला
जिलों में दो-तीन चरणों में चुनाव कराने के लिए आयोग की क्या दलील?
वहीं कई जिलों में एक से अधिक चरणों में वोटिंग कराने पर चुनाव आयोग ने कहा है कि ऐसा संवेदनशील इलाकों पर विशेष ध्यान देने के लिए किया गया और केवल उन ही जिलों में दो-तीन चरणों में वोटिंग हो रही है, जहां चुनाव के दौरान सबसे अधिक हिंसा होती है।
उदाहरण के लिए, दक्षिण 24 परगना जिले में तीन चरणों में वोटिंग होगी क्योंकि यह वही जिला है जहां भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमला हुआ था।
प्रभाव
ममता बनर्जी की TMC के लिए लंबे कार्यक्रम के क्या मायने?
माना जा रहा है कि लंबे चुनाव कार्यक्रम से सत्तारूढ़ TMC को नुकसान हो सकता है।
कार्यक्रम के तहत उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल में एक साथ चुनाव होने हैं और चूंकि पार्टी अपने प्रचार के लिए मुख्य तौर पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निर्भर करती है, इसलिए उसके और ममता के लिए दोनों हिस्सों पर समान ध्यान दे पाना बहुत मुश्किल होगा।
प्रभाव कम करने के लिए पार्टी को अपने प्रचार की योजना को नए सिरे से बनाना होगा।
अन्य नुकसान
जिलों में कई चरणों में वोटिंग से भी TMC को नुकसान
इसके अलावा जिन जिलों में एक से अधिक चरणों में वोटिंग कराने का फैसला लिया गया है, उनमें से अधिकांश TMC के गढ़ माने जाते हैं और यहां कई चरणों में वोटिंग कराना उसके खिलाफ जा सकता है।
TMC का आरोप है कि ऐसा मुख्य तौर पर दक्षिण बंगाल के कई जिलों में किया गया है क्योंकि जहां भाजपा का संगठन कमजोर है और कई चरणों में वोटिंग से उसे फायदा होगा।
भाजपा
भाजपा को कैसे हो सकता है लंबे चुनावी कार्यक्रम से फायदा?
TMC के विपरीत आठ चरणों में चुनाव से भाजपा को फायदा होने की उम्मीद जताई जा रही है क्योंकि इससे पार्टी के नेताओं को प्रचार करने के लिए अधिक समय मिलेगा।
अन्य राज्यों में तीन चरणों में ही वोटिंग खत्म हो जाएगी और इसके बाद भाजपा के सभी नेता बंगाल पर अपना ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। रोचक बात यह है कि पहले तीन चरणों में उन इलाकों में वोटिंग होनी है जहां भाजपा मजबूत मानी जाती है।