चार दिन महाराष्ट्र में फैला रहा "रायता", अब कौन लेगा पूरी उथल-पुथल की जिम्मेदारी?

महाराष्ट्र में शनिवार सुबह-सुबह खड़ा हुआ सियासी बवंडर आज शांत हो गया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को तोड़कर सरकार बनाने का भाजपा का प्रयास असफल साबित हुआ और देवेंद्र फडणवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए इस्तीफा दे दिया। फडणवीस के इस्तीफे के बाद अब सबसे अहम सवाल ये उठता है कि महाराष्ट्र में चार दिन तक चले इस सियासी नाटक की जिम्मेदारी कौन लेगा। क्योंकि पूरे घटनाक्रम में राज्यपाल से लेकर भाजपा शीर्ष नेतृत्व तक पर गंभीर सवाल उठते हैं।
सबसे पहला सवाल महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने को लेकर खड़ा होता है। शनिवार सुबह फडणवीस के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था। लेकिन इस राष्ट्रपति शासन को सुबह 5:30 बजे के आसपास हटा दिया गया। राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलोकेशन ऑफ बिजनस रूल्स 1961 के नियम 12 के तहत उन्हें प्राप्त विशेष अधिकारों का प्रयोग किया है।
दरअसल, नियमों के अनुसार किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने या हटाने के लिए राष्ट्रपति को केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश की जरूरत होती है। लेकिन नियम 12 का प्रयोग करते हुए प्रधानमंत्री किसी 'आपातकालीन और अप्रत्याशित आकस्मिकता' की स्थिति में बिना कैबिनेट की मंजूरी के राष्ट्रपति शासन हटाने का फैसला ले सकते हैं। प्रधानमंत्री को अपनी सिफारिश में उन असाधारण परिस्थितियों के बारे में बताना होता है जिसके कारण इस नियम का प्रयोग किया।
फडणवीस के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री मोदी के आपातकालीन नियम 12 के प्रयोग पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। उनसे ये पूछा जाना चाहिए कि ऐसी क्या असाधारण परिस्थितियां थी जो उन्हें सुबह-सुबह नियम 12 के प्रयोग की जरूरत पड़ी।
इस पूरे प्रकरण में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर भी सवाल खड़े होते हैं। उनकी भूमिका के बचाव में केवल एक तर्क दिया जा सकता है कि अजित पवार ने उन्हें NCP के 54 विधायकों का समर्थन पत्र दिया था। लेकिन इसके विपरीत ये सवाल खड़ा होता है कि जब एक दिन पहले ही शिवसेना, कांग्रेस और NCP ने साथ सरकार बनाने की घोषणा की थी, तब क्या राज्यपाल को मामले में थोड़ा इंतजार नहीं करना चाहिए था।
इससे भी गंभीर सवाल ये खड़ा होता है कि राज्यपाल कोश्यारी ने फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ तो सुबह 07:45 बजे दिला दी, लेकिन बहुमत साबित करने के लिए उन्हें कितना समय दिया गया है इसकी घोषणा नहीं की। आमतौर पर राज्यपाल मुख्यमंत्री के शपथ लेने के बाद ही बहुमत परीक्षण की तारीख सार्वजनिक कर देते हैं, लेकिन कोश्यारी ने ऐसा कुछ नहीं किया और मामले पर कोई भी आधिकारिक घोषणा नहीं की गई।
आखिर में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान सामने आया कि राज्यपाल ने भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए 14 दिन का समय दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि जब फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ इतनी जल्दबाजी में दिलाई गई तो उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 14 दिन का समय देने का क्या आधार बनता है। जाहिर है राज्यपाल अपने विवेक का अच्छे से इस्तेमाल कर सकते थे।
पूरे प्रकरण में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व पर भी सवाल खड़े होते हैं। फडणवीस के लगभग "रात के अंधेरे" में शपथ लेने के कुछ देर बाद ही प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने की बधाई दे दी। इससे साफ होता है कि NCP में तोड़फोड़ करके सरकार बनाने के इस प्रयास को उनका पूरा आशीर्वाद था और अब इसके असफल होने पर पूरी उथल-पुथल की जिम्मेदारी उन पर भी आती है।