सीटों के बंटवारे पर खत्म हुई भाजपा और शिवसेना की लड़ाई, जानें कौन होगा 'बड़ा भाई'
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के बीच समझौता हो गया है। भाजपा 162 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि शिवसेना को 126 सीटें दी गई हैं। भाजपा शुरू से इसी फॉर्मूले पर अडिग थी और अंत में शिवसेना ने बराबर सीटों की अपनी जिद छोड़ते हुए इस फॉर्मूले पर सहमति जता दी। बता देें कि महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को परिणाम आएगा।
अन्य सहयोगियों को अपने हिस्से से सीटें देगी भाजपा
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा अपने हिस्से की सीटों से रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (RPI), राष्ट्रीय समाज पक्ष और अन्य सहयोगियों को सीट देगी। उन्हें भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ाया जा सकता है।
सीटों के बंटवारे पर अमित शाह ने की थी नौ घंटे की मैराथन बैठक
बता दें कि गुरुवार को सीटों के बंटवारे को लेकर गृह मंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ दिल्ली में नौ घंटे की मैराथन बैठक की थी। इसमें शाह ने राज्य की एक-एक सीट पर चर्चा की थी। बैठक के बाद फडणवीस को शाह के फैसले के बारे में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को सूचित करने की जिम्मेदारी दी गई थी, जिसके बाद अब सीटों के बंटवारे पर अंतिम समझौता हुआ है।
भाजपा के बराबर सीटें चाहती थी शिवसेना
शिवसेना पहले अपने लिए भाजपा के बराबर 135 सीट चाहती थी, वहीं भाजपा उसे 120 से ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं थी। इसके बाद शिवसेना ने साफ कर दिया कि वह 126 से कम सीट पर लड़ने को तैयार नहीं होगी। दोनों पार्टियां अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रहीं थीं। अब शिवसेना को जो सीटें दी गईं हैं उनमें मुंबादेवी, मालेगांव, भिवांडी और औरंगाबाद सेंट्रल जैसी सीटें भी हैं, जिन पर उसका जीतना बेहद कठिन है।
आदित्य ठाकरे को उपमुख्यमंत्री बनाने को तैयार है भाजपा
दोनों पार्टियों में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी मतभेद था, जिसे अब सुलझा लिया गया है। शिवसेना को अपने कैंप में रखने के लिए भाजपा उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को उपमुख्यमंत्री पद देने को तैयार है।
इसलिए नहीं जारी की जा रही उम्मीदवारों की सूची
भाजपा और शिवसेना के बीच सीटों पर भले ही समझौता हो गया है, लेकिन उम्मीदवारों की सूची अभी जारी नहीं की गई है। सूत्रों के मुताबिक, फडणवसी जानबूझ कर इसमें देरी कर रहे हैं ताकि बागियों को अपने मंसूबों को अंजाम देने का समय न मिले। भाजपा और शिवसेना को डर है कि उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा करने पर कुछ नेता बागी हो सकते हैं और पार्टी छोड़ कर भी जा सकते हैं।
अपने दम पर बहुमत हासिल करना चाहती है भाजपा
बता दें कि अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा का मकसद अकेले अपने दम पर बहुमत हासिल करने का है। पार्टी खुद बहुमत हासिल करके शिवसेना जैसे सहयोगियों से पीछा छुड़ाना चाहती है जो आए दिन उसकी आलोचना करती रहती है। भाजपा नेताओं को भरोसा था कि अगर अकेले भी चुनाव लड़ना पड़ा तो भारी संसाधनों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बलबूते पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल कर सकती है।
2014 से पहले 'बड़े भाई' की भूमिका में रहती थी शिवसेना
मोदी के राष्ट्रीय पटल पर उदय से पहले महाराष्ट्र में शिवसेना 'बड़े भाई' की भूमिका में रहती थी। लेकिन 2014 विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति बिल्कुल उलटी हो गई। इस चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनी और दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद दोनों ने गठबंधन में सरकार बनाई, लेकिन शिवसेना से ज्यादा सीटें हासिल कर भाजपा ने साबित कर दिया कि अब वो 'बड़े भाई' की भूमिका में है।
विरोधियों की तरह व्यवहार करती रही है शिवसेना
भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बनाने के बावजूद शिवसेना लगातार विपक्षी पार्टी की तरह व्यवहार करती रही और पिछले पांच साल में कई बार भाजपा और केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की। संबंध इतने खराब हो गए थे कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन टूटने की कगार पर आ गया। लेकिन अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से निजी तौर पर मिलकर सारे गिले-शिकवे मिटाए और लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे पर समझौता हुआ।