सरकार के लिए 'एक देश एक चुनाव' विधेयक पास कराना है बड़ी चुनौती, जानिए पूरा गणित
केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में आखिरकार 'एक देश एक चुनाव' संबंधित 2 विधेयक पेश कर दिए। कानून मंत्री अर्जन राम मेघवाल ने इन्हें सदन के पटल पर रखा। इस दौरान कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने इसका पुरजोर विरोध भी किया। अब जब सरकार ने इन विधेयकों को पेश कर दिया है तो इन्हें संसद में पास कराना उसके लिए बड़ी चुनौती भी साबित होने वाला है। आइए यहां इन विधेयकों को पास कराने का पूरा गणित समझते हैं।
NDA के पास नहीं है दो तिहाई बहुमत
किसी भी सरकार के लिए संविधान संशोधन के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। ऐसे में दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या का का दो-तिहाई बहुमत होना चाहिए और मतदान में 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिलना जरूरी है। वर्तमान में संसद में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है। NDA की बड़ी मुश्किल ये है कि INDIA गठबंधन के सभी इस विधेयक के पूरी तरह खिलाफ नजर आ रहे हैं।
क्या हैं 'एक देश एक चुनाव' संबंधी विधेयक?
लोकसभा में पेश किए गए 'एक देश एक चुनाव' संबंधी विधेयकों में एक संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और दूसरा केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 शामिल है। इनका उद्देश्य स्थानीय निकाय चुनावों को छोड़कर लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एकसाथ करना है। यह विधेयक एकसाथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 83, 172 और 327 में संशोधन करता है तथा एक नया अनुच्छेद 82(A) जोड़ता है। इसके केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल चुकी है।
सरकार के लिए विधेयक पास कराने में क्या है परेशानी?
लोकसभा की 543 सीटों में से NDA के पास अभी 292 सीटें हैं, जबकि दो तिहाई बहुमत के लिए 362 सीटों का आंकड़ा जरूरी है। राज्यसभा की कुल 245 सीटों में NDA के पास अभी 112 सीटें हैं और 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन हासिल हैं। इसके उलट विपक्ष के पास 85 सीटें हैं और विधेयक पास कराने के लिए आवश्यक दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटों की आवश्यकता है। यह सरकार की बड़ी परेशानी है।
विधेयक को पास कराने के लिए क्या है सरकार की योजना?
केंद्र सरकार अब विधेयक (बिल) पर आम सहमति बनाना चाहती है। इसके लिए कानून मंत्री ने विधेयक पेश करने के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इसे विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की अपील की है। अब सवाल यह है कि JPC में भी इस पर आम सहमति बनने के आसार बहुत कम नजर आ रहे हैं। इसका कारण है कि कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्षी दल शुरु से इन विधेयकों के खिलाफ हैं।
विधेयक के विरोध में हैं 15 राजनीतिक दल
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर में एक साथ चुनाव कराने संबंधी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। इस समिति की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कर रहे थे। उस समिति को 47 दलों ने अपनी राय दी थी, जिसमें से 32 ने समर्थन किया था और 15 दलों ने विरोध जताया था। विरोध करने वालों दलों की लोकसभा सांसदों की संख्या 205 है। यानी बिना INDIA गठबंधन के समर्थन के संविधान संशोधन बिल पारित होना मुश्किल है।