लोकसभा में पेश हुआ 'एक देश एक चुनाव' विधेयक, इसके पक्ष और विरोध में कौन-कौन?
केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में मंगलवार को 'एक देश एक चुनाव' से संबंधित दो अहम विधेयक पेश किए किए गए। दोपहर में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयकों को सदन में रखा। इन विधेयकों में एक संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और दूसरा केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 शामिल रहा। हालांकि, विपक्ष ने इस दौरान काफी हंगामा भी किया, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सांसदों ने इसका समर्थन किया।
कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने किया विधेयक का विरोध
कानून मंत्री के विधेयक पेश करने के साथ ही कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने इसका जोरदार विरोध किया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, "एक देश एक चुनाव विधेयक इस सदन की विधायी क्षमता से परे है। इस पर विचार किया जा रहा है। सरकार से इसे वापस लेने का आग्रह किया जाता है।" समाजवादी पार्टी सांसद धर्मेंद्र यादव ने इसका विरोध करते हुए किहा, "यह विधेयक भाजपा द्वारा देश में तानाशाही लाने का प्रयास मात्र है।"
कानून मंत्री ने की विधेयक को JPC को भेजने की सिफारिश
केंद्रीय मंत्री मेघवाल ने विधेयक पेश करने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इन्हें व्यापक विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) में भेजने की सिफारिश भी की। JPC का गठन विभिन्न दलों के सांसदों की संख्या को देखते हुए आनुपातिक आधार पर किया जाएगा, जिसमें विधेयक को लेकर चर्चा होगी। बता दें कि पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय कैबिनेट ने 'एक देश एक चुनाव' विधेयक के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
इलेक्ट्रॉनिक मत डिविजन के बाद लोकसभा में स्वीकार हुआ विधेयक
विधेयक पर विपक्षी सांसदों के विरोध जताने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने इस पर इलेक्ट्रॉनिक मत डिविजन (ई-वोटिंग) कराया गया। इसमें 269 सांसदों ने विधेयक के समर्थन में वोट किया, जबकि 198 सांसदों ने इसका विरोध किया। यह लोकसभा के इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसी विधेयक को लेकर इलेक्ट्रॉनिक मशीन के जरिए मतदान कराया गया है। इसके साथ ही विधेयक को लोकसभा में स्वीकार भी कर लिया गया। अब इसे JPC के समक्ष भेजा जाएगा।
क्या है विधेयकों का उद्देश्य?
प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन का उद्देश्य स्थानीय निकाय चुनावों को छोड़कर राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को एकसाथ करना है। यह विधेयक एकसाथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 83, 172 और 327 में संशोधन करता है तथा एक नया अनुच्छेद 82(A) जोड़ता है। विधेयक में कहा गया है कि एकसाथ चुनाव 2034 तक शुरू नहीं होंगे और अगर, विधानमंडल समय से पहले भंग हो जाता है तो मध्यावधि चुनाव का प्रावधान किया जा सकता है।
विधेयक के पक्ष में हैं भाजपा सहित ये दल
भाजपा लंबे समय से 'एक देश एक चुनाव' की समर्थक रही है। दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी इसे देश हित में बताया है। भाजपा के साथ जनता दल यूनाइटेड (JDU), जनता दल (सेक्युलर), SAD, नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल (BJD) और शिंदे गुट वाली शिवसेना सहित भाजपा के अन्य सहयोगी दर्ज इसके समर्थन में हैं। लोकसभा में भी विधेयक पेश किए जाने के दौरान इन सभी दलों के सदस्यों ने उसका समर्थन किया है।
विधेयक के पक्ष में क्या हैं तर्क?
इस विधेयक के पक्ष में मुख्य तर्क यह है कि मौजूदा व्यवस्था देश को लगातार चुनावी माहौल में रखती है। कुछ राज्यों में सालाना 200-300 दिन तो पंचायत, निकाय, विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराने में ही बीत जाते हैं। यह चुनाव चक्र सार्वजनिक चर्चा पर हावी रहता है, जिससे अक्सर ध्रुवीकरण के मुद्दे, अभद्र भाषा और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता पैदा होती है। इसी तरह लंबे समय तक आदर्श आचार संहिता लागू रहने से भी सरकारी कामकाज रुक जाते हैं।
चुनाव में अधिक खर्च बनता है भ्रष्टाचार का कारण
एक अन्य तर्क है कि लगातार चुनाव होने से निर्वाचित नेता दीर्घकालिक योजना नहीं बना पाते हैं और सरकारी अधिकारी सहित पुलिस नियमित कार्याें पर ध्यान नहीं दे पाती है। इसी तरह चुनावों पर अधिक खर्च व्यापक भ्रष्टाचार का कारण बनता है।
विधेयक के विरोध में कौन हैं?
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस शुरू से इस विधेयक के खिलाफ है। लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुआई वाली समिति से इस्तीफा भी दे दिया था क्योंकि वह इस विधेयक के पक्ष में सुझाव नहीं देना चाहते थे। कांग्रेस के अलावा, तृणमूल कांग्रेस (TMC), DMK, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसे कई अन्य विपक्षी दल ने भी इस विधेयक का जोरदार विरोध करते हुए इसे 'लोकतंत्र विरोधी' करार दिया है।
विधेयक के विरोध में क्या हैं प्रमुख तर्क?
इस विधेयक के खिलाफ मुख्य तर्क यह है कि इससे क्षेत्रीय और स्थानीय सरोकार हाशिए पर चले जाएंगे। एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दे बड़े राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों के सामने दब जाएंगे और उनका समय पर समाधान नहीं हो पाएगा। इसके अलावा, इस विधेयक से राजनीतिक विचार-विमर्श में एकरूपता आ जाएगी और राज्यों में पंजीकृत क्षेत्रीय या छोटी पार्टियों के साथ राज्यों के लिए अपने विचार देश के सामने रखना काफी मुश्किल काम हो जाएगा।