#NewsBytesExplainer: शिवसेना मामले में सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ, फैसले के क्या मायने और आगे क्या?
पिछले करीब एक साल से महाराष्ट्र में शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच चल रहे विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने उद्धव को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने से इनकार कर दिया, वहीं शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता पर बाद में फैसला लिया जाएगा। शिंदे और उद्धव, दोनों ने इसे अपनी-अपनी जीत करार दिया है। आइए इस फैसले के अहम बिंदु और इसके मायने जानते हैं।
सबसे पहले पूरा मामला समझिए
पिछले साल शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 16 विधायकों ने उद्धव के खिलाफ बगावत कर दी थी। इसके बाद बागी विधायकों के खिलाफ डिप्टी स्पीकर (उद्धव खेमे से) ने अयोग्यता की कार्रवाई शुरू की, जिसके खिलाफ विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए। इसी बीच शिंदे गुट के विधायकों की अपील के बाद राज्यपाल ने उद्धव को बहुमत साबित करने को कहा। बहुमत की कमी के कारण उद्धव ने इससे पहले ही इस्तीफा दे दिया और शिंदे मुख्यमंत्री बन गए।
उद्धव सुप्रीम कोर्ट क्यों गए?
उद्धव राज्यपाल औऱ स्पीकर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 17 फरवरी को कोर्ट ने उद्धव और शिंदे गुट की दलीलों पर सुनवाई की। लगातार 9 दिन तक चली सुनवाई के बाद 16 मार्च को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसी बीच शिवसेना पर अधिकार का मामला चुनाव आयोग पहुंचा, जिसने शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चिह्न 'धनुष-बाण' दे दिया। उद्धव ने कोर्ट में इस फैसले पर भी सवाल उठाए थे।
उद्धव ने अपनी याचिका में क्या कहा था?
उद्धव ने अपनी याचिका में कहा कि शिंदे की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 164 (1-बी) का उल्लंघन करती है। याचिका में मांग की गई थी कि शिवसेना के 16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द की जाए और राज्यपाल के उस आदेश को रद्द किया जाए, जिसमें उन्होंने उद्धव से विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था। उद्धव ने दोबारा महाविकास अघाणी (MVA) सरकार बहाल करने की मांग भी की थी।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्यपाल और स्पीकर को गलत बताया। उसने कहा कि राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई ठोस वजह नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि विश्वास मत पर वोटिंग के दौरान शिंदे खेमे के भारत गोगावाले को शिवसेना का चीफ व्हिप बनाने का स्पीकर का फैसला भी अवैध था। हालांकि, कोर्ट ने उद्धव की MVA सरकार को बहाल करने से इनकार कर दिया क्योंकि उद्धव ने खुद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था।
कोर्ट के फैसले के दोनों पक्षों के लिए क्या मायने?
कोर्ट के फैसले से शिंदे सरकार को बड़ी राहत मिली है। शिंदे मुख्यमंत्री बने रहेंगे और उनकी सरकार पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है। उद्धव की भी इस मामले में एक तरह से नैतिक जीत हुई है क्योंकि राज्यपाल और स्पीकर के फैसले को कोर्ट ने गलत बताया है। हालांकि, उनकी सरकार बहाल नहीं होगी। इस तरह से दोनों ही पक्ष इसे जनता के सामने अपनी जीत की तरह पेश कर सकते हैं।
मामले में आगे क्या?
अब आगे 7 जजों की संवैधानिक पीठ राज्यपाल और स्पीकर की शक्तियों के निर्धारण पर फैसला सुनाएगी। पीठ ये भी तय करेगी कि बागी विधायकों को अयोग्य ठहराना चाहिए या नहीं और चीफ व्हिप कौन होगा, इसका निर्णय कैसे लिया जा सकता है। इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजना ये दर्शाता है कि कोर्ट इस तरह के मामलों के लिए एक ठोस फैसला लेना चाहती है, जो दूसरे राज्यों में नजीर की तरह पेश आ सकें।
न्यूजबाइट्स प्लस
2019 में महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा ने सबसे ज्यादा 106 सीटें जीती थीं। शिवसेना के 56, कांग्रेस के 44 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के 54 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। सरकार को लेकर शिवसेना और भाजपा में बात नहीं बनी तो शिवसेना ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली। माना जा रहा था कि शिंदे ही मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उद्धव ने उन्हें विधायक दल का नेता बना दिया।