समलैंगिक विवाह: केंद्र की सुप्रीम कोर्ट से अपील, मामला संसद पर छोड़ने पर करे विचार
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। बुधवार को केंद्र सरकार ने कोर्ट से अनुरोध किया कि इन याचिकाओं में उठाए गए सवालों को संसद पर छोड़ने पर विचार किया जाए।
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि कोर्ट समलैंगिकता जैसे एक बहुत जटिल विषय से निपट रही है, जिसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
सुनवाई
सरकार ने कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र सरकार की ओर से मेहता ने कोर्ट में कहा, "असल मुद्दा ये है कि शादी किससे और किसके बीच होगी, इस पर फैसला कौन करेगा। कोर्ट फैसला करेगा या सरकार इस पर कोई निर्णय लेगी, लेकिन इस पर नए सिरे से परिभाषा लिखने के लिए सरकार को मजबूर नहीं किया जा सकता और इसका अन्य कानूनों पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।"
उन्होंने कहा कि कानूनों में बदलाव के लिए देश की विभिन्न विधानसभाओं में भी बहस की आवश्यकता होगी।
दलील
मान्यता न मिलने से समलैंगिक जोड़ों के बच्चे परवरिश से वंचित- याचिकाकर्ता
कोर्ट में आज याचिकाकर्ता की ओर से वकील अरुंधति काटजू ने दलील दी कि केंद्र का कहना है कि समलैंंगिक विवाह को मान्यता देना व्यक्तिगत कानूनों के साथ खिलवाड़ होगा, लेकिन समलैंगिक भी समाज का हिस्सा हैं और उन्हें भी अन्य शादीशुदा जोड़ों की तरह जीने का हक है।
वकील ने कहा कि जिन LGBTQ जोड़ों के बच्चे हैं, उनकी शादी को मान्यता न देकर सरकार उनके बच्चों को माता-पिता की परवरिश से वंचित कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता बोले- मान्यता मिलने से रुकेगी जबरन शादी
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वकील जयदीप गुप्ता ने कहा कि ये कहना गलत है कि भारतीय जिन पारिवारिक मूल्यों को संजोते हैं, उन पर असर पड़ेगा क्योंकि पारिवारिक मूल्य ही वजह हैं, जिनके कारण समलैंगिक शादी करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि अभी समाज में समलैंगिकों को विपरीत लिंग से शादी के लिए मजबूर किया जा रहा है, जबकि समलैंगिक विवाह को मान्यता इस बात को सुनिश्चित करेगी कि वे जबरन शादी और कन्वर्जन थेरेपी से बचें।
सुनवाई
5 जजों की संवैधानिक पीठ कर रही है मामले पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ पिछले हफ्ते से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली शामिल हैं।
केंद्र सरकार सामाजिक परंपराओं का हवाला देते हुए समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध कर रही है।
कानून
समलैंगिक संबंधों पर क्या कहता है मौजूदा कानून?
भारत में कुछ साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे। 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इससे संबंधित धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था।
इस फैसले से समलैंगिक संबंधों को तो कानूनी मान्यता मिली, लेकिन समलैंगिक विवाह को लेकर कोई बात नहीं की गई। इसी वजह से फिलहाल देश में समलैंगिक विवाह की स्थिति अधर में लटकी हुई है।