नीतीश कुमार के भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने का राज्यसभा पर क्या असर पड़ेगा?
बिहार में नीतीश कुमार ने एक बार फिर से पाला बदल लिया है और भाजपा से गठबंधन तोड़ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ सरकार बना ली है। बिहार में हुए इस घटनाक्रम का राज्यसभा पर भी असर पड़ा है और सदन में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) का संख्याबल कम हो गया है। इससे अन्य तटस्थ पार्टियों पर उसकी निर्भरता बढ़ जाएगी। आइए आपको विस्तार से राज्यसभा की मौजूदा स्थिति बताते हैं।
गठबंधन टूटने से पहले क्या स्थिति थी?
नीतीश के भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने से पहले राज्यसभा में पांच मनोनीत और एक निर्दलीय समेत NDA के कुल 115 सांसद थे। इनमें से पांच सांसद नीतीश की जनता दल यूनाइटेड (JDU) के थे। यही नहीं, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश भी JDU से ही आते हैं। राज्यसभा का मौजूदा संख्याबल 237 है और बहुमत का आंकड़ा 119 है। इसका मतलब नीतीश के गठबंधन तोड़ने से पहले भी NDA के पास राज्यसभा में पूर्ण बहुमत नहीं था।
अभी क्या स्थिति है?
JDU के गठबंधन तोड़ने के बाद अब राज्यसभा में NDA सांसदों की संख्या 110 रह गई है, जो बहुमत से नौ कम है। हालांकि यह आंकड़ा थोड़ा बढ़ सकता है और सरकार के पास शीतकालीन सत्र से पहले तीन सांसद मनोनीत करने का मौका होगा, वहीं भाजपा त्रिपुरा की एक राज्यसभा सीट भी जीत सकती है। इस तरह NDA सांसदों की कुल संख्या 114 हो जाएगी, लेकिन तब भी उसे विधेयक पारित कराने के लिए तटस्थ पार्टियों की जरूरत पड़ेगी।
बाहर से कौन-कौन सी पार्टियां करती हैं NDA का समर्थन?
NDA का समर्थन करने वाली तटस्थ पार्टियों की बात करें तो बीजू जनता दल (BJD) और वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) ज्यादातर मुद्दों पर सरकार का समर्थन करती रही हैं और भविष्य में भी इसकी उम्मीद की जा सकती है। इन दोनों पार्टियों के राज्यसभा में नौ-नौ सांसद हैं। इसके अलावा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में सरकार को शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी जैसी पार्टियों का भी समर्थन मिला। ये पार्टियां आगे भी सरकार का समर्थन कर सकती हैं।
तीन साल में तीन सहयोगी छोड़ चुके हैं भाजपा का साथ
बता दें कि पिछले तीन साल में JDU तीसरी ऐसी सहयोगी पार्टी है जिसने भाजपा से गठबंधन तोड़ा है। उससे पहले शिवसेना और अकाली दल भी भाजपा से गठबंधन तोड़ चुकी हैं। शिवसेना ने 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा का साथ छोड़ा था, वहीं अकाली दल ने किसान आंदोलन के दौरान भाजपा से गठबंधन तोड़ा। इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव से पहले तेलुगू देशम पार्टी (TDP) भी NDA से बाहर हो गई थी।