शरद यादव: मंडल आयोग लागू कराने से लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाने तक, ऐसा रहा सफर
क्या है खबर?
बिहार और मंडल राजनीति के दिग्गज नेता शरद यादव का गुरुवार को 75 साल की उम्र में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार थे और गुरुवार रात को उन्हें बेहोशी की हालत में गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल लाया गया था।
हालांकि, डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके और रात 10:19 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
आइए जानते हैं कि शरद यादव का जीवन और राजनीतिक सफर कैसा रहा और उन्होंने देश की राजनीति पर क्या प्रभाव छोड़ा।
शुरूआती जीवन
सामान्य परिवार में हुआ था शरद यादव का जन्म
शरद यादव का जन्म 1 जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव में एक किसान परिवार में हुआ था।
उन्होंने जबलपुर के रॉबर्टसन मॉडल साइंस कॉलेज से विज्ञान में और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की।
यादव पढ़ने में काफी तेज थे और वह जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में गोल्ड मेडलिस्ट रहे।
उनकी स्कूल-कॉलेज से ही राजनीति में काफी दिलचस्पी थी और वह समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रभावित थे।
राजनीतिक शुरूआत
छात्र आंदोलन के दौरान जाना पड़ा था जेल, जेल से ही जीते चुनाव
शरद यादव कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति में भी सक्रिय थे और जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे।
छात्र राजनीति के दौरान वह दिग्गज समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए और उनके नेतृत्व में चल रहे छात्र आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
आंदोलन के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। कैद के दौरान ही 1974 में जयप्रकाश नारायण ने उन्हें जबलपुर से लोकसभा उपचुनाव में उतार दिया, जिसमें उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की पहली जीत दर्ज की।
आपातकाल
आपातकाल के खिलाफ भी सक्रिय रहे थे यादव
शरद यादव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाए गए आपातकाल के खिलाफ भी खासे सक्रिय रहे थे।
आपातकाल के दौरान जब 1976 में इंदिरा ने अपनी सरकार का कार्यकाल पांच साल से बढ़ाकर छह साल किया था, तब जिन दो सांसदों ने इसके विरोध में इस्तीफा दिया था, उनमें से एक शरद यादव भी थे।
1977 में आपातकाल हटने के बाद वह जबलपुर से चुनाव जीतकर एक बार फिर लोकसभा पहुंचे।
करीबी
चौधरी चरण सिंह के करीबी थे यादव
यादव चौधरी चरण सिंह के बेहद करीबी थे और जब 1979 में जनता पार्टी टूटी तो उन्होंने चरण सिंह के खेमे का साथ दिया।
कहा जाता है कि जब चरण सिंह प्रधानंमत्री बनने जा रहे थे, तब उनकी कार में उनके साथ शरद यादव बैठे हुए थे।
चरण सिंह की सरकार गिरने के बाद जब 1980 में फिर से चुनाव हुए तो जनता पार्टी में फूट के कारण यादव को जबलपुर से हार का सामना करना पड़ा।
किस्सा
जब अमेठी में राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतरे थे यादव
संजय गांधी की मौत के बाद जब 1981 में उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर लोकसभा उपचुनाव हुआ तो चरण सिंह ने शरद यादव को राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतार दिया। हालांकि, इसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
इसके बाद 1984 लोकसभा चुनाव में भी उन्हें उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट से हार का सामना करना पड़ा।
इसके बाद वह 1986 में राज्यसभा सांसद बने और इस कार्यकाल के दौरान चौधरी देवीलाल के नजदीक आ गए।
मंडय आयोग
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कराने में रही अहम भूमिका
शरद यादव ने 1988 में वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल के गठन में अहम भूमिका निभाई।
जब 1989 में सिंह प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार में बदायूं से लोकसभा चुनाव जीतकर आए यादव को कपड़ा मंत्री बनाया गया और उन्होंने पहली बार मंत्री पद संभाला।
इसी दौरान उन्होंने राम विलास पासवान के साथ मिलकर वीपी सिंह को मंडल आयोग की सिफारिशें तत्काल लागू करने के लिए मनाया, जिसने भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया।
अहम किस्सा
शरद यादव न होते तो 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनते लालू
ये बात शायद कम ही लोगों को पता होगी कि अगर शरद यादव नहीं होते तो लालू प्रसाद यादव 1990 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बनते।
दरअसल, विधानसभा चुनाव में जनता दल की जीत के बाद रामसुंदर दास मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह, केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और अजित सिंह का समर्थन था।
हालांकि, यादव ने उपप्रधानमंत्री देवीलाल और चंद्रशेखर के साथ मिलकर ऐसा खेल खेला कि लालू मुख्यमंत्री बन गए।
बिहार
मंडल आयोग के बाद यादव ने बिहार को बनाया अपनी कर्मभूमि
मंडल आयोग लागू कराने और लालू को मुख्यमंत्री बनाने के बाद बिहार में शरद यादव का कद काफी बढ़ गया और वह 1991 और 1996 में यहां की मधेपुरा सीट से लोकसभा चुनाव जीते।
हालांकि, कुछ समय बाद ही जनता दल के अध्यक्ष पद को लेकर वह और लालू आमने-सामने आ गए और 1997 में लालू ने अपनी अलग पार्टी बना ली।
इसके बाद यादव ने भाजपा के नेतृत्व वाले NDA के साथ आकर 1999 लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता।
नीतीश का साथ
लालू के बाद नीतीश के साथ आए यादव, JDU के अध्यक्ष रहे
लालू से दूर होने के बाद शरद यादव नीतीश कुमार के करीब आए और 2003 में नीतीश ने अपनी समता पार्टी का जनता दल में विलय कर दिया, जिससे इसका नाम जनता दल यूनाइटेड (JDU) हो गया।
यादव 2003 से 2016 तक JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्हें 2004 में मधेपुरा सीट से लालू के हाथों हार का सामना करना पड़ा, वहीं 2009 चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की।
उन्होंने अटल सरकार में कई अहम मंत्री पद संभाले।
अंतिम वर्ष
मोदी के कट्टर विरोधी थी यादव, नीतीश ने भी पार्टी से निकाला
शरद यादव मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी थे और जब 2013 में मोदी को भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान की कमान सौंपी गई तो उन्होंने NDA के संयोजक के पद से इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद 2017 में नीतीश ने भी उन्हें "पार्टी विरोधी गतिविधियों" के लिए JDU से निकाल दिया। यादव ने 2018 में अपनी नई पार्टी का गठन किया और 2022 में इसका लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में विलय कर दिया।
जानकारी
अपने अंतिम समय में हाशिये पर रहे शरद यादव
2014 के बाद से ही शरद यादव का राजनीतिक कद घटता गया और पिछले कुछ वर्षों में वह हाशिये पर ही रहे। अभी वह भाजपा के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू करने वाले थे, लेकिन इससे पहले ही उनका निधन हो गया।