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    #NewsBytesExplainer: जातिगत जनगणना क्या है और विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को क्यों उठा रही हैं?
    विपक्षी पार्टियां लगातार जातिगत जनगणना की मांग उठा रही हैं

    #NewsBytesExplainer: जातिगत जनगणना क्या है और विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को क्यों उठा रही हैं?

    लेखन नवीन
    Apr 18, 2023
    07:54 pm

    क्या है खबर?

    कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार को जातिगत जनगणना कराने के चुनौती दी है, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

    इससे पहले अन्य विपक्षी पार्टियां भी केंद्र सरकार से जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना की मांग करती आई हैं।

    जातिगत जनगणना आखिर क्या होती है और क्यों विपक्षी पार्टियां 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इसकी मांग कर रही हैं, आइए समझने की कोशिश करते हैं।

    जातिगत जनगणना

    क्या होती है जातिगत जनगणना? 

    जातिगत जनगणना का अर्थ है, जनगणना में भारत की जनसंख्या का जातिवार सारणीकरण करना है। भारत में 1952 के बाद से जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) को डाटा सार्वजनिक किया जाता है।

    इसके अलावा धर्म, भाषा और सामाजिक-आर्थिक स्थिति से संबंधित जानकारियां सार्वजनिक की जाती हैं, लेकिन जातिवार जनसंख्या सार्वजनिक नहीं की जाती।

    अब इसे ही सार्वजनिक करने की मांग की जा रही है।

    मांग

    आखिरी बार कब जारी हुए थे जातिगत जनगणना के आंकड़े? 

    भारत में जातिगत जनगणना की मांग कोई नई नहीं है। देश में आखिरी बार जातिगत जनगणना के आंकड़े 1931 में जारी किए गए थे। इसके बाद से आज तक सभी जातिगत आंकड़ों को इसी आधार पर पेश किया जाता है।

    विपक्षी पार्टियों का कहना है कि देश में कई कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण के लिए जाति एक महत्वपूर्ण आधार है और 90 साल पहले के आंकड़े स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने जल्द से जल्द जातिगत जनगणना करवाने की मांग की है।

    जनगणना

    आखिरी बार जातिगत जनगणना कब हुई थी?

    देश में आखिरी जनगणना साल 2011 में कांग्रेस के शासन के दौरान हुई थी। उस वक्त जातिगत जनगणना भी की गई थी, लेकिन सरकार ने इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए थे।

    कांग्रेस नेता राहुल ने केंद्र की मोदी सरकार को चुनौती दी है कि वो 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करे या जातिगत जनगणना नए सिरे से करे।

    हालांकि, इससे पहले कांग्रेस जातिगत जनगणना के पक्ष में नहीं थी।

    बिहार

    बिहार में चल रहा है जातीय सर्वेक्षण

    बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस साल जनवरी में अपना बहुप्रचारित जातीय सर्वेक्षण शुरू किया था।

    इसे आधिकारिक तौर पर जातिगत जनगणना नहीं कहा जा सकता क्योंकि तकनीकी रूप से जनगणना केवल केंद्र ही कर सकता है, लेकिन ये जनगणना के समान ही है और राज्य सरकार अपने व्यावहारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लोगों की जातिगत गिनती कर सकती है।

    ऐसे में समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना की मांग की है।

    आरक्षण

    भारत में पिछड़ी जातियों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान

    देश में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जनजातियों ने लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का सशर्त प्रावधान है।

    साल 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए 1931 की जातिगत जनगणना के आधार पर तैयार मंडल आयोग की रिपोर्ट की सिफारिश पर अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) के लिए 27 प्रतिशत की घोषणा की थी।

    OBC का मानना है कि उन्हें आबादी के हिसाब से कम आरक्षण मिल रहा है।

    केंद्र

    केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना की मांग पर क्या कहा?

    विपक्षी पार्टियों की जातिगत जनगणना की मांग को केंद्र सरकार नकार चुकी है। संसद में सरकार ने कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को छोड़कर कोई अन्य जाति आधारित जनगणना नहीं की जाएगी।

    केंद्र सरकार ने कहा, "जाति एक जटिल मुद्दा है और जातियों की गणना करना एक बोझिल प्रक्रिया है। ये जनगणना की प्रक्रिया को ही खतरे में डाल सकती है। उदाहरण के लिए, कई जातियों को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम दिए गए हैं।"

    विपक्ष

    क्यों जनजातीय जनगणना कराना चाहता है विपक्ष?

    देश में सबसे अधिक जनसंख्या OBC समुदाय की है। भाजपा को सत्ता में लाने में OBC वोटबैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद OBC समाज से आते हैं और ये भाजपा का कोर वोटबैंक बन चुका है।

    ऐसे में विपक्षी पार्टियां जातिगत जनगणना के मुद्दे को उठाकर मोदी सरकार को OBC विरोधी साबित करना चाहती हैं और 2024 लोकसभा चुनाव से पहले वह सरकार पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बना रही है।

    सरकार

    क्यों जातिगत जनगणना नहीं कराना चाहती मोदी सरकार?

    राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना को केंद्र की भाजपा सरकार अपने हिंदुत्व के एजेंडे के सामने एक संभावित चुनौती के रूप में देख रही है।

    जातिगत जनगणना से पूरी बहस जाति पर आ सकती है और इससे भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति को बड़ा झटका चल सकता है।

    बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक में क्षेत्रीय पार्टियां जातिगत राजनीति के बूते भाजपा को चुनौती देती हैं, इसलिए सरकार जातिगत जनगणना से बच रही है।

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