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    #NewsBytesExplainer: कर्नाटक की राजनीति में क्यों इतना अहम है लिंगायत समुदाय?

    #NewsBytesExplainer: कर्नाटक की राजनीति में क्यों इतना अहम है लिंगायत समुदाय?
    लेखन आबिद खान
    Mar 25, 2023, 07:54 pm 1 मिनट में पढ़ें
    #NewsBytesExplainer: कर्नाटक की राजनीति में क्यों इतना अहम है लिंगायत समुदाय?
    कर्नाटक की कुल आबादी में से करीब 18 प्रतिशत लोग लिंगायत समुदाय से हैं

    कर्नाटक में जल्द ही विधानसभा चुनावों का ऐलान हो सकता है। इससे पहले लिंगायत समुदाय से जुड़ी दो बड़ी खबरें आई हैं। पहली- राज्य सरकार ने OBC मुस्लिमों का 4% आरक्षण खत्म कर इसे वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय में बांट दिया है। दूसरी- आज ही कांग्रेस ने कर्नाटक चुनावों के लिए 124 नाम वाली उम्मीदवारों की सूची जारी की है। इसमें करीब 28 नाम लिंगायत समुदाय से हैं। समझते हैं कर्नाटक में लिंगायत समुदाय चुनावी नजरिये से कितना अहम है।

    चुनाव से पहले लिंगायतों का आरक्षण बढ़ा

    कर्नाटक सरकार ने शुक्रवार को नौकरियों और शिक्षा में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लिए आरक्षण में बढ़ोतरी की है। सरकार ने OBC मुसलमानों को मिलने वाले 4% आरक्षण खत्म कर दिया है और इसे वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों में बांटा है। इसके बाद राज्य में लिंगायत समुदाय को मिलने वाले आरक्षण का कोटा 5 से बढ़कर 7 प्रतिशत हो गया है, वहीं वोक्कालिगा के लिए कोटा 4 से बढ़कर 6 प्रतिशत कर दिया गया है।

    कांग्रेस की पहली सूची में लिंगायतों का दबदबा

    विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने आज अपने 124 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। इसमें कम से कम 28 नाम लिंगायत समुदाय से हैं। पार्टी ने 7 पंचमशाली लिंगायत, 5 रेड्डी लिंगायत, 3 सदर लिंगायत, 3 वीरशैव लिंगायत, 3 बंजीगा लिंगायत, 2 गनिगा लिंगायत और 1 नोनाबा लिंगायत उम्मीदवार को टिकट दिया है। इसके अलावा वोक्कालिगा समुदाय से भी 22 उम्मीदवारों को टिकट मिला है। पार्टी की अगली सूची में और लिंगायत नामों को जगह मिल सकती है।

    कौन हैं लिंगायत?

    लिंगायत समुदाय 12वीं सदी के समाज सुधारक बासवन्ना को अपना अनुयायी मानता है। बासवन्ना ने ब्राह्मणों की जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था को तरजीह दी। लिंगायत लोग न तो वेदों में विश्वास रखते हैं न मूर्ति पूजा में। समुदाय के सदस्य अपने इष्ट लिंग को गले में चांदी की एक छोटी सी डिब्बी में लटका कर रखते हैं। वे इसे आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं। लिंगायत समुदाय मे शवों को दफनाया जाता है।

    कर्नाटक में करीब 18 प्रतिशत है लिंगायतों की आबादी

    कर्नाटक में लिंगायत लोगों की आबादी करीब 18 प्रतिशत है और 110 विधानसभा सीटों पर इनका प्रभाव है। इसी वजह से चुनावी नजरिए से इस समुदाय की काफी अहमियत है। राजनीतिक तौर पर समुदाय की सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1956 में कर्नाटक का गठन होने से लेकर अब तक राज्य में कुल 21 मुख्यमंत्री हुए हैं, इनमें से 10 लिंगायत समुदाय से रहे हैं। इन्हें भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है।

    लिंगायत मठों की राजनीति में भूमिका

    कर्नाटक में 600 से अधिक मठ हैं। इनमें से ज्यादातर लिंगायत मठ हैं और उसके बाद वोक्कालिगा मठ हैं। इन मठों के बड़ी तादाद में अनुयायी होते हैं। आमतौर पर चुनाव में अगर किसी मठ का समर्थन उम्मीदवार को मिल जाता है तो उस मठ के अनुयायी भी उसी उम्मीदवार को वोट करते हैं। कहा जाता है कि लिंगायत मठों ने पहली बार 1983 में जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े का समर्थन किया था।

    राज्य के बड़े लिंगायत नेता

    राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी इसी समुदाय से हैं। उन्हें राज्य में भाजपा का सबसे कद्दावर नेता माना जाता है। वे किसी भी दक्षिण भारतीय राज्य में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रहे एस निजलिंगप्पा, जेएच पटेल, वीरेंद्र पाटिल, जगदीश शेट्टार और एसआर कांथी भी लिंगायत समुदाय से हैं। 2018 में अकेले भाजपा के टिकट पर लिंगायत समुदाय के 40 लोगों ने जीत दर्ज की थी।

    इस वजह से कांग्रेस से दूर हुए थे लिंगायत

    बात 1990 की है। उस समय कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे, जो लिंगायत समुदाय से आते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी उनसे नाराज चल रहे थे। इसे लेकर वे कर्नाटक पहुंचे और एयरपोर्ट पर ही वीरेंद्र से इस्तीफा ले लिया। वीरेंद्र को सफाई का मौका तक नहीं दिया गया। कहा जाता है कि इस घटना को लिंगायतों ने अपने समुदाय के अपमान के तौर पर लिया और इसके बाद कांग्रेस से दूर हो गए।

    राज्य के पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजे

    2018 के चुनाव में भाजपा को 104, कांग्रेस को 80 और जनता दल (सेक्युलर) को 37 सीटें मिली थीं। चुनाव के बाद कांग्रेस और JD(S) ने मिलकर सरकार बनाई और एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। हालांकि, जुलाई 2019 में कांग्रेस और JD(S) के कई विधायकों के इस्तीफे के बाद सरकार गिर गई। इसके बाद भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाई। जुलाई 2021 में येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बसवराज बोम्मई नए मुख्यमंत्री बने

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