
पश्चिम बंगाल भाजपा उपाध्यक्ष बोले- संख्या बल के आधार पर नहीं कर सकते आतंक की राजनीति
क्या है खबर?
केन्द्र सरकार की ओर से पिछले महीने संसद में पारित कराए गए नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर पश्चिम बंगाल भाजपा के उपाध्यक्ष और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पड़पोते चंद्र कुमार बोस ने पार्टी रुख से हटकर टिप्पणी करते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में नागरिकों पर कोई भी कानून थोपा नहीं जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार अधिनियम में थोड़ा सा संशोधन करती तो विपक्ष का पूरा अभियान फेल हो जाता।
बयान
CAA को बताया बाध्यकारी
बोस ने कहा कि सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल को एक अधिनियम के रूप में पारित कर दिया है। इससे यह काूनन देश की सभी राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी हो गया है।
उन्होंने कहा कि यह एक कानूनी प्रक्रिया भले ही हो सकती है, लेकिन एक लोकतांत्रिक देश में आप वहां के नागरिकों पर कोई भी कानून थोप नहीं सकते और ना ही सरकारों को किसी कानून की पालना के लिए बाध्य कर सकते हैं।
राजनीति
संख्या बल के आधार पर नहीं कर सकते आतंक की राजनीति
बोस ने CAA को लेकर देश में हालातों को देखते हुए कहा कि सरकार का काम लोगों को इसके बारे में समझाने का है कि इस मामले में सरकार सही है और वो गलत, लेकिन आप उन्हें अपमानित नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि आप संसद में पर्याप्त संख्या बल की खुमारी में आतंक की राजनीति भी नहीं कर सकते। लोकतांत्रिक देश में सभी लोगों को आपनी बात रखने का अधिकार है और सरकार को उस पर गौर करना चाहिए।
सुझाव
धर्म की जगह अलग होना चाहिए दृष्टिकोण
लोगों को CAA के लाभों के बारे में बताने के दौरान उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से इस कानून में धर्म का उल्लेख करते हुए नागरिकता देने की बात कही है। इससे अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना पैदा हो गई। विपक्ष इसी को मुद्दा बनाकर हंगामा कर रहा है। सरकार को इसमें संशोधन करते हुए धर्म का उल्लेख हटाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि इससे सरकार का दृष्टिकोण अलग दिखाई देता और लोग इसे आसानी से स्वीकार कर लेते।
विरोध
CAA को लेकर लगातार हो रहा है विरोध
सरकार की ओर से CAA बिल को संसद के दोनों सदनों में पारित कराने के बाद से ही कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश और पंश्चिम बंगाल में इसको लेकर कई हिंसक प्रदर्शन भी हुए, जिनमें दर्जनों लोगों की मौत हो गई।
कांग्रेस जहां CAA को वापस लेने के मांग कर रही है, वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे राज्य में लागू नहीं करने की कसम खाई है।
परेशानी
सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवैधानिक घोषित करने पर हो सकती है परेशानी
देश में कानून के क्रियान्वयन को लेकर बहस छिड़ गई है। कहा जा रहा है कि राज्यों को केंद्र को चुनौती देने का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट के इस पर निर्णय के बिना "असंवैधानिक कानून" को लागू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता कबिल सिब्बल ने कहा है कि राज्यों को चुनौती का अधिकार है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवैधानिक करार देने के बाद इसका विरोध परेशानी खड़ी कर सकता है।
दावा
CAA को लेकर सरकार कर रही है यह दावा
नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पास होने और 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद नागरिक संशोधन कानून बन गया था।
इस कानून के तहत सरकार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता देने का दावा कर रही है। इसमें धर्म के आधार पर मुस्लिमों के शामिल नहीं होने पर विपक्ष इस कानून का विरोध कर रहा है।