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    राजनीति

    राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होने के बावजूद राज्यों में कमजोर क्यों हो रही है भाजपा?

    राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होने के बावजूद राज्यों में कमजोर क्यों हो रही है भाजपा?
    लेखन मुकुल तोमर
    Dec 23, 2019, 07:01 pm 1 मिनट में पढ़ें
    राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होने के बावजूद राज्यों में कमजोर क्यों हो रही है भाजपा?

    झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं और कांग्रेस-झारखंड मुक्ति मोर्चा-राष्ट्रीय जनता दल (RJD) गठबंधन पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रहा है। ये भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है जो राज्य में सत्ता में थी। पिछले एक साल के अंदर झारखंड पांचवां ऐसा राज्य है जहां सत्ता भाजपा के हाथ से फिसली है। भाजपा के लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन लेकिन राज्य चुनावों में खराब प्रदर्शन के पीछे आखिर क्या कारण है, आइए जानते हैं।

    राष्ट्रीय मुद्दे बनाम स्थानीय मुद्दे

    अगर 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत के बाद राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजे देखें तो एक ट्रेंड साफ नजर आता है कि जनता केंद्र और राज्य के स्तर पर अलग-अलग तरीके से वोट करती है। राष्ट्रीय स्तर पर लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और राष्ट्रीय मुद्दों को देखते हुए भाजपा पर भरोसा जताया, लेकिन जब विधानसभा चुनाव की बारी आई तो उन्होंने राज्य के मुद्दों को ध्यान में रखा।

    प्रचार में राष्ट्रीय मुद्दों पर जोर पड़ रहा भाजपा को भारी

    चूंकि राज्य विधानसभा चुनावों में भी भाजपा प्रचार के लिए बहुत हद तक प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पर निर्भर रहती है, इसलिए इन चुनावों में भी अधिकांश समय राष्ट्रीय मुद्दों की बात की गई और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे किया गया। लेकिन वोटर्स राष्ट्रीय मुद्दों का राज्य में उनके सामने आने वाली समस्याओं से कोई संबंध देख पाने में नाकामयाब रहे और इसका नुकसान भाजपा को विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा।

    महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में दिखा यही ट्रेंड

    महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड तीनों राज्यों के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों और झारखंड में नागरिकता कानून और NRC जैसे मुद्दों की बात की गई जिनका उनके जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता।

    राज्य स्तर पर मजबूत नेताओं की कमी

    इसके अलावा भाजपा को राज्य स्तर पर मजबूत नेताओं की कमी का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। 2014 में राष्ट्रीय स्तर पर मोदी और शाह के उभार के बाद भाजपा के काम करने के तरीके में बदलाव आया है। ऐसा माना जाता है कि इन दोनों नेताओं की छत्रछाया में किसी बड़े नेता के उभरने की संभावना बेहद कम रहती है जो बाद में उनके लिए खतरा साबित हो सके।

    राज्यों में गुमनाम चेहरों को बनाया गया मुख्यमंत्री

    मोदी और शाह के कारण भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर तो मजबूत हुई, लेकिन राज्य स्तर पर मजबूत नेताओं का उभार नहीं हो सका। 2014 के बाद जिन राज्यों में भाजपा की सरकार बनी, वहां मुख्यमंत्री बनाए गए नेताओं की सूची देखें तो अधिकांश ऐसे चेहरे चुने गए जिनके बारे में कम ही लोग जानते थे। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि एक मजबूत और जमीनी नेता के मुकाबले उन्हें रिमोट कंट्रोल से चलाना आसान है।

    हरियाणा से लेकर गुजरात तक दिखा यही चलन

    हरियाणा में पहली बार एक गैर-जाट नेता मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया जिन्हें चुनाव से पहले कोई जानता भी नहीं था। झारखंड में भी अर्जुन मुंडा जैसे बड़े नेताओं को नजरअंदाज करके पहली बार एक गैर-आदिवासी नेता रघुवार दास को मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात में कमजोर छवि वाले विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनाया गया वहीं महाराष्ट्र में दिग्गजों की नजरअंदाज करके कम चर्चित देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया।

    फडणवीस को छोड़कर कोई भी अलग छवि बनाने में कामयाब रहा

    इन सभी मुख्यमंत्रियों में फडणवीस को छोड़कर कोई भी नेता अपनी अलग छवि बनाने में नाकाम रहा और मोदी-शाह की छवि में ही रहे। यूपी में योगी आदित्यनाथ भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे, लेकिन याद रहे वह मोेदी-शाह की पहली पसंद नहीं थे।

    नुकसानदेह सिद्ध हो रही गठंबधन के सहयोगियों से सख्ती

    मोदी-शाह की जोड़ी के कारण राज्य स्तर पर भाजपा को एक और बड़ा नुकसान हुआ है। इन दोनों के नेतृत्व में भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ कड़ाई से पेश आती है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को इससे खास नुकसान नहीं होता क्योंकि उसके पास मोदी फैक्टर है, लेकिन राज्य स्तर पर सहयोगियों की सौदेबाजी की शक्ति और अहमियत ज्यादा होती है और इस कड़ेपन का नतीजा सहयोगियों की नाराजगी और गठबंधन टूटने के रूप में होता है।

    झारखंड में साथ लड़ते भाजपा और AJSU तो बना सकते थे सरकार

    झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे खुद इसकी पुष्टि करते हैं। भाजपा 2014 में यहां ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के साथ चुनाव लड़ी और दोनों का गठबंधन 42 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रहा। लेकिन 2019 में सीटों के बंटवारे को लेकर ये गठंबधन टूट गया। चुनाव में भाजपा को लगभग 35 प्रतिशत और AJSU को आठ प्रतिशत वोट मिले हैं और अगर वो इस बार भी साथ चुनाव लड़ते तो सरकार बनाने में कामयाब हो सकते थे।

    राज्यों में मजूबत है विपक्ष

    एक और चीज जो लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन में अंतर पैदा करती है वो है विपक्षी पार्टियों और नेताओं की स्थिति। राष्ट्रीय स्तर पर न तो प्रधानमंत्री मोदी के स्तर का कोई नेता है और न भाजपा जितनी कोई मजबूत पार्टी। लेकिन राज्यों में मोदी के चहरे से काम नहीं चल सकता और यहां मजबूत चेहरों की कमी का नुकसान भाजपा को उठाना पड़ता है।

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