नागरिकता कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास कर सकते हैं कांग्रेस शासित सभी राज्य
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई को एक कदम और आगे ले जाते हुए कांग्रेस ने कहा है कि उसकी सरकार वाले सारे राज्यों की विधानसभाएं इसके खिलाफ प्रस्ताव पास करेंगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने कहा कि पंजाब की राह पर चलते हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकारें भी विधानसभा में CAA के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेगी ताकि केंद्र सरकार को इस पर विचार करने का कड़ा संदेश दिया जा सके।
पंजाब विधानसभा ने शुक्रवार को पारित किया था प्रस्ताव
पंजाब विधानसभा ने बीते शुक्रवार को CAA के खिलाफ प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया था। इसमें केंद्र सरकार से CAA वापस लेने की मांग की गई। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस कानून को संविधान विरोधी और समाज को बांटने वाला बताया। विधानसभा में आम आदमी पार्टी के विधायकों ने भी इस प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया। पंजाब CAA के खिलाफ प्रस्ताव पास करने वाला केरल के बाद दूसरा राज्य है।
CAA के विरोध में कांग्रेस का तर्क क्या है?
नागरिकता संशोधन कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 से पहले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, पारसी, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को आसानी से भारत की नागरिकता मिल सकेगी। मुसलमानों को इस कानून से बाहर रखा गया है। कांग्रेस समेत इसका विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह कानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है, जो भारत के संविधान के खिलाफ है। देशभर में इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जारी हैं।
क्या राज्यों के पास कानून लागू करने का विकल्प है?
कांग्रेस की तरफ से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा में CAA के खिलाफ प्रस्ताव पास करने की बात उस समय सामने आई है, जब पार्टी के दो बड़े नेता अपना संदेह जाहिर कर चुके हैं। दरअसल, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा था कि राज्य सरकारों के पास CAA को लागू करने के अलावा कोई चारा नहीं है। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और जयराम रमेश ने उनके इस बयान का समर्थन किया था।
बैकफुट पर आए कपिल सिब्बल ने दी सफाई
कांग्रेस शुरू से ही CAA का विरोध करती आई है। पार्टी से अलग स्टैंड लेकर बैकफुट पर आए सिब्बल ने बयान पर सफाई दी। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, 'मेरा मानना है कि CAA असंवैधानिक है। हर विधानसभा के पास यह संवैधानिक हक है कि वह प्रस्ताव पारित कर सकती है और इसे वापस लेने की मांग कर सकती है। यदि सुप्रीम कोर्ट कानून को संवैधानिक घोषित कर देती है तो उसका विरोध करना मुश्किल हो जाता है। लड़ाई जारी रहेगी।'
कानून को चुनौती नहीं दे रही कांग्रेस
हालांकि, कांग्रेस नागरिकता कानून के विरोध में है और उसकी सरकारें प्रस्ताव पास कर रही हैं, लेकिन वह इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दे रही। पार्टी इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में उसके पक्ष में फैसला आएगा, इसलिए उसने कांग्रेस शासित राज्यों की सरकारों को इसे चुनौती देने से रोका है। गौरतलब है कि कांग्रेस CAA के अलावा नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) और इसे NRC से जोड़ने का भी विरोध कर रही है।
अभिषेक मनु सिंघवी भी उतरे मैदान में
कांग्रेस ने रविवार को अपने वरिष्ठ नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी को भी CAA के खिलाफ मैदान में उतार दिया। सिंघवी ने कहा कि उन राज्यों ने CAA को लागू करने की उम्मीद नहीं की जा सकती, जिन्होंने इसे चुनौती दी है या इसके खिलाफ प्रस्ताव पास किया है। इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक भाजपा का यह कहना ठीक नहीं कि राज्य सरकारें केंद्र का सहयोग नहीं कर रही है।
पंजाब और केरल में CAA के विरोध में प्रस्ताव पास
जैसा हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि केरल और पंजाब विधानसभा CAA के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर चुकी है, वहीं केरल ने इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी है। केरल की चुनौती से पहले सुप्रीम कोर्ट में इस कानून के खिलाफ 60 याचिकाएं दायर हैं, जिन पर फैसला आना बाकी है। केरल ने इनसे अलग रास्ता चुनते हुए अनुच्छेद 131 के तहत इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
क्या है अनुच्छेद 131?
संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास राज्य और केंद्र, केंद्र और राज्यों, और राज्यों और राज्यों के बीच के विवाद पर सुनवाई करने का हक है। इसी के तहत छत्तीसगढ़ ने NIA कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।