अटॉर्नी जनरल ने नहीं दी राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की इजाजत
क्या है खबर?
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाने की इजाजत नहीं दी है।
वेणुगोपाल ने कहा कि राहुल गांधी के बयानों में न्यायपालिका का एक सामान्य संदर्भ था और इससे लोगोंं की नजर में संस्था की गरिमा कम नहीं हुई।
दरअसल, विनीत जिंदल नामक एक वकील ने वेणुगोपाल को पत्र लिखकर मांग की थी कि एक बयान के कारण राहुल गांधी के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए।
जानकारी
राहुल के किस बयान को बनाया गया आधार?
राहुल गांधी ने हालिया इंटरव्यू में कहा था, "इस देश में एक कानूनी तंत्र है, जिसमें हर किसी को अपनी आवाज उठाने की पूरी आजादी है। यह बिल्कुल साफ है कि भाजपा इस देश के संस्थागत ढांचे में अपने लोगों को भर रही है।"
जिंदल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता की ये टिप्पणियां भारतीय न्यायपालिका के खिलाफ और उसकी गरिमा धूमिल करने वाली हैं। राहुल देश की न्यायिक प्रणाली पर लांछन लगा रहे हैं।
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इस प्रकार की सहमति का सवाल ही नहीं उठता- वेणुगोपाल
जिंदल ने पत्र में लिखा कि सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के खिलाफ टिप्पणी के मामले में भविष्य में सतर्क रहने की चेतावनी देकर उनके खिलाफ अवमानना मामला बंद किया था। इस आधार पर उन्होंने राहुल के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की इजाजत मांगी थी।
इस पर वेणुगोपाल ने कहा कि इस प्रकार सहमति देने का सवाल ही नहीं उठता। विचाराधीन बयान जनता के नजरिए से संस्था के अधिकार को कमतर नहीं करता।
नियम
अटॉर्नी जनरल के पास होता है मंजूरी का अधिकार
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत अटॉर्नी जनरल के पास सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के संबंध में अवमानना के लिए कार्यवाही शुरू करने के लिए मंजूरी देने का अधिकार है।
जानकारी के लिए बता दें कि अदालत की अवमानना दो तरह की होती है। पहली दीवानी (सिविल कंटेप्ट) और दूसरी आपराधिक अवमानना (क्रिमिनल कंटेप्ट) होती है। दीवानी अवमानना अदालत की अवमानना अधिनियम 1971 के सेक्शन 2(बी) और आपराधिक अवमानना सेक्शन 2 (सी) के तहत आती है।
जानकारी
दीवानी अवमानना कब होती है?
दीवानी अवमानना में पीड़ित पक्ष अदालत को इस बारे में सूचित करता है। फिर अदालत उस व्यक्ति को नोटिस जारी करती है, जिस पर अदालत के आदेश, निर्देश और डिक्री का पालन कराने की जिम्मेदारी होती है।
वहीं अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर अदालत के आदेश का उल्लंघन करता है तो उस पर भी दीवानी अवमानना का मामला चलाया जा सकता है।
अवमानना का दोषी पाए जाने पर छह महीने की सजा या 2,000 रुपये का या दोनों हो सकते हैं।
जानकारी
आपराधिक अवमानना का मामला कब बनता है?
वहीं अगर व्यक्ति अदालत के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देता है, या उसकी प्रतिष्ठा धूमिल करने, या उसके मान-सम्मान को नीचा दिखाने की कोशिश या अदालती कार्रवाई में दखल देता, खलल डालता है तो यह अदालत की आपराधिक अवमानना का मामला बनता है।
इस तरह की हरकत चाहे लिखकर की जाए या बोलकर या फिर अपने हाव-भाव से ऐसा किया जाए ये अदालत की आपराधिक अवमानना में माना जाएगा।