शिवसेना मामला: स्पीकर का शिंदे गुट के पक्ष में फैसला, विधायकों को अयोग्य ठहराने से इनकार
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बड़ी राहत मिली है। विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिंदे समेत 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही स्पीकर ने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना है। बता दें कि शिंदे गुट की बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के गुट ने स्पीकर से दल-बदल कानून के तहत शिंदे और बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की थी। उद्धव गुट अब सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
जानें स्पीकर के फैसले की बड़ी बातें
स्पीकर ने फैसले में कोर्ट के पुराने मामलों और चुनाव आयोग के फैसलों को आधार बनाया। स्पीकर ने कहा कि शिवसेना (शिंंदे गुट) के पास 55 में से 37 विधायकों का समर्थन है। शिंदे को हटाने का फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी ही कर सकती है, ये अधिकार उद्धव ठाकरे को नहीं। स्पीकर ने कहा कि 3 चीजों को समझना जरूरी है। पहली- पार्टी का संविधान क्या कहता है। दूसरी- नेतृत्व किसके पास था और तीसरी- विधानमंडल में बहुमत किसके पास था।
2018 में शिवसेना का संविधान संशोधन असंवैधानिक था- स्पीकर
फैसले को पढ़ते हुए स्पीकर नार्वेकर ने कहा, "चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में शिंंदे गुट की शिवसेना को ही असली माना गया है। फैसले में इसका ध्यान रखा गया है। 2018 में शिवसेना के संविधान में जो संशोधन किया गया था, वह असंवैधानिक था। यह संशोधन चुनाव आयोग के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। आयोग के पास एक ही संविधान संशोधन दर्ज है, जो 1999 में हुआ था। इसलिए ये संविधान ही मान्य होगा।"
स्पीकर बोले- मैं चुनाव आयोग के खिलाफ नहीं जा सकता
स्पीकर नार्वेकर ने कहा कि 2018 के बाद से संगठन चुनाव नहीं हुए, इसलिए उसी को आधार माना जाएगा। उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग के पास जो रिकॉर्ड हैं, उसी के आधार पर फैसला किया गया हैं। मैं चुनाव आयोग के खिलाफ नहीं जा सकता। मेरा अधिकार क्षेत्र भी सीमित है। शिंदे को नेता पद से हटाने का अधिकार ठाकरे को नहीं था। ठाकरे को किसी भी शिवसेना नेता को हटाने का अधिकार नहीं था। शिंदे ही शिवसेना के नेता हैं।"
किन विधायकों की अयोग्यता पर हुआ फैसला?
स्पीकर नार्वेकर ने जिन विधायकों पर फैसला सुनाया है, उनमें मुख्यमंत्री शिंदे, महेश शिंदे, अब्दुल सत्तार ,भरत गोगावाले, संजय शिरसाट, यामिनी जाधव, अनिल बाबर, तानाजी सावंत, लता सोनवणे, प्रकाश सर्वे, बालाजी किनीकार, संदीपन भुमरे, बालाजी कल्याणकार, रमेश बोनारे, चिमनराव पाटिल, संजय रायमुनकरी शामिल हैं।
क्या है मामला?
20 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 40 विधायकों ने शिवसेना से बगावत कर दी थी और भाजपा के साथ सरकार बना ली थी। इसके बाद उद्धव ठाकरे और शिंदे में 'असली शिवसेना' की लड़ाई शुरू हो गई। दोनों गुट दल-बदल कानून के तहत मामले को पहले स्पीकर के समक्ष और बाद में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ले गए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर से विधायकों की अयोग्यता पर 10 जनवरी तक फैसला लेने को कहा था।
मामले पर कोर्ट ने क्या कहा था?
कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता का अधिकार स्पीकर को सौंपते हुए कहा था कि जब तक बड़ी पीठ मामले पर सुनवाई नहीं करती, तब तक ये अधिकार स्पीकर के पास रहेगा। कोर्ट ने मामले में राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा था, "ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहना राज्यपाल का सही कदम नहीं था। अगर उद्धव मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते तो कोर्ट उनकी सरकार को बहाल कर सकती थी।"
चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को सौंपा था चुनाव चिन्ह
पिछले साल फरवरी में चुनाव आयोग ने शिवसेना का चुनाव चिन्ह शिंदे गुट को सौंप दिया था। आयोग ने कहा था कि शिंदे गुट को पार्टी का समर्थन प्राप्त था, इसलिए पार्टी का नाम 'शिवसेना' और चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान' शिंदे गुट को दिया जाता है। बाद में इसके खिलाफ उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट गया था, लेकिन कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।