महाराष्ट्र में क्यों पिछड़ गया MVA और महायुति ने कैसे मार ली बाजी? ये रहे कारण
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव परिणामों में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन दोबारा से सरकार बनाने जा रहा है। गठबंधन 200 से ज्यादा सीटों पर आगे चल रहा है, जबकि विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी (MVA) का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। MVA 56 सीटों पर सिमट गया है। इसे महायुति के लिए बड़ी उपलब्धि और MVA के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। आइए जानते हैं MVA की हार के संभावित कारण क्या-क्या रहे।
कल्याणकारी योजनाएं कर गईं काम
लोकसभा चुनाव में हार से सबक लेते हुए महायुति ने कई लोकलुभावन योजनाएं शुरू कीं। महिलाओं के लिए लाडली बहना योजना शुरू की। इसके तहत 2 करोड़ से अधिक महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये दिए गए। इस योजना का महिलाओं को महायुति की ओर खींचने में बड़ा योगदान माना जा रहा है। यही वजह है कि रुझानों के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने पहले बयान में खासतौर पर लाडली बहनाओं का जिक्र किया।
हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ?
लोकसभा चुनाव में विपक्ष का संविधान और आरक्षण का मुद्दा महायुति पर भारी पड़ा था। इससे हिंदू मतदाता जातियों में बिखर गया था। विधानसभा चुनाव में महायुति हिंदू वोटों को एकजुट करने में कामयाब रहा। भाजपा का 'कटोगे तो बटोगे' और 'एक रहोगे तो सेफ रहोगे' के नारे ने हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया। कुछ मुस्लिम उलेमाओं ने MVA के समर्थन में बयान दिए। इससे महायुति को और आसानी हो गई।
मराठा आरक्षण पर चुप्पी
लोकसभा चुनाव के दौरान मराठा आरक्षण का मुद्दा जितने जोर-शोर से उठा था, विधानसभा चुनाव के दौरान उतना ही शांत रहा। आंदोलन के अगुवा रहे खुद मनोज जारांगे पाटिल चुनावों में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। भाजपा ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली। इस वजह से पार्टी ने मराठा और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) दोनों वोटबैंक को साध लिया। OBC को साथ लाने में महायुति की हर पार्टी ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
RSS की सक्रियता आई काम
महाराष्ट्र चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) काफी सक्रिय रहा। संघ ने अपने 36 सहयोगी संगठनों के साथ जमीनी स्तर पर काम किया। संघ से जुड़े संगठन के कार्यकर्ताओं ने घर-घर जाकर पार्टी के पक्ष में प्रचार किया। संगठन ने भूमि जिहाद, लव जिहाद, धर्मांतरण, पथराव, महिला उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर लोगों को जागरूक किया और लोगों से ज्यादा से ज्यादा मतदान की अपील की। मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक ले जाने की जिम्मेदारी संघ ने संभाली।
विदर्भ में लगाई सेंध
विदर्भ में भाजपा कमजोर रही है। यहां शरद पवार की NCP का दबदबा माना जाता है। अजित पवार ने अपने चाचा के गढ़ में इस बार सेंध लगाई है। लोकसभा चुनावों में किसानों की नाराजगी के चलते NDA का प्रदर्शन यहां काफी खराब रहा था। इस बार महायुति ने कोई गलती नहीं की। किसानों पर खासा ध्यान रखा। चुनावों से पहले कपास और सोयाबीन के किसानों के लिए बड़े ऐलान किए।