दिल्ली नगर निगम: 1 अप्रैल को फिर होगा मेयर का चुनाव, पीठासीन अधिकारी पर संशय
दिल्ली नगर निगम (MCD) की मेयर शैली ओबरॉय का मौजूदा कार्यकाल 31 मार्च को खत्म हो गया है। बतौर रिपोर्ट्स, नए मेयर के चुनाव के लिए अगले सप्ताह प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। MCD अधिनियम के अनुसार, हर बार 1 अप्रैल से शुरू होने वाले सत्र में दिल्ली के मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव किया जाता है। ओबरॉय नए मेयर का चुनाव होने तक पद पर बनी रहेंगी।
फिलहाल स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा
बता दें कि स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव भी मेयर के चुनाव के साथ होता है, लेकिन इस बार स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव नहीं होगा। समिति के 6 सदस्यों की चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने चुनाव परिणाम पर रोक लगा दी थी। इस मामले की सुनवाई 24 अप्रैल को होनी है। गौरतलब है कि स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव की मतगणना के दौरान काफी हंगामा हुआ था।
पीठासीन अधिकारी को लेकर संशय बरकारार
दिल्ली के मेयर के चुनाव के लिए सदन के पीठासीन अधिकारी को लेकर अभी संशय बरकरार है। आम तौर पर अगले मेयर का चुनाव करवाने की जिम्मेदारी वर्तमान मेयर की होती है, जो अगले चुनावों के लिए पीठासीन अधिकारी भी होता है। आम आदमी पार्टी (AAP) दोबारा शैली ओबरॉय को दोबारा चुनावी मैदान में उतार सकती है और नियमों के मुताबिक मेयर उम्मीदवार पीठासीन अधिकारी नहीं हो सकता है।
पिछले चुनाव में शैली ओबरॉय ने दर्ज की थी जीत
कई बार टलने के बाद 22 फरवरी को हुए दिल्ली मेयर के चुनाव में AAP की उम्मीदवार शैली ओबरॉय ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने अपनी प्रतिद्वंदी और भाजपा की उम्मीदवार रेखा गुप्ता को हराया था। ओबरॉय 2013 में AAP में शामिल हुई थीं और दिल्ली के पूर्वी पटेल नगर (वार्ड 86) से पार्षद चुनी गई हैं। 39 वर्षीय शैली ओबरॉय दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में असिस्टेंट प्रोफेसर रह चुकी हैं।
पहले वर्ष में महिलाओं के लिए आरक्षित है पद
दिल्ली नगर निगम के मेयर का कार्यकाल एक साल का होता है। मेयर का पद पहले वर्ष में महिलाओं के लिए, जबकि दूसरे साल में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होता है।
क्या रहे थे MCD चुनाव के नतीजे?
MCD चुनाव में AAP ने 250 में से कुल 134 सीटों पर जीत दर्ज की थी, वहीं भाजपा ने 104 और कांग्रेस ने नौ सीटों पर जीत दर्ज की। वोट शेयर की बात करें तो AAP को चुनाव में 42 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे, जबकि 2017 में हुए पिछले चुनाव में उसे मात्र 25 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा का वोट शेयर भी पिछले चुनाव में 35.5 प्रतिशत से बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया था।