
मध्य प्रदेश चुनाव: ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका और उनके भाजपा में आने से क्या असर पड़ेगा?
क्या है खबर?
मध्य प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इसे लेकर भाजपा अपनी चुनावी रणनीति बनाने में जुटी है, जिसका जिम्मा केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव और नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपा गया है।
इसके अलावा भाजपा ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी चुनाव का स्टार प्रचारक बनाया है। वह कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।
आइए जानते हैं कि सिंधिया के भाजपा में आने से मध्य प्रदेश चुनाव पर क्या असर पड़ सकता है।
चुनाव
क्या सिंधिया और शिवराज के बीच है लड़ाई?
साल 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आमने-सामने थे। यह चुनाव 'शिवराज बनाम महाराज' के नारे पर लड़ा गया था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले अब सिंधिया भाजपा में आ गए हों, लेकिन यह चुनाव भी अंदरखाने शिवराज बनाम महाराज बना हुआ है।
उनका कहना है कि सभी नेता अपने समर्थकों को चुनाव का टिकट दिलाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं, जिससे गुटबाजी भी दिखने को मिल रही है।
रणनीति
क्या टिकट बंटवारे को लेकर प्रदेश संगठन में है नाराजगी?
मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अंदरूनी गुटबाजी से निपटने के लिए आक्रमक रणनीति अपनाई है और चुनाव तारीखों की घोषणा से पहले ही 39 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी गई।
हालांकि, इस सूची को लेकर प्रदेश भाजपा संगठन में ही विरोध शुरू हो गया, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व स्पष्ट किया है कि उम्मीदवार कोई भी हो, संगठन उसके लिए काम करेगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सभी को यह नसीहत दी है।
सिंधिया
क्या सिंधिया के समर्थकों को मिलेगा टिकट?
सिंधिया का ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में दबदबा है। उनके साथ कांग्रेस छोड़कर कई समर्थक भी भाजपा में आए थे, जिन्हें अपने क्षेत्रों से टिकट मिलने की उम्मीद है।
हाल ही में ग्वालियर में भाजपा की प्रदेश कार्य समिति की बैठक के बाद सिंधिया ने कहा था कि भाजपा में जिस व्यक्ति के जीतने की संभावना है, उसे ही टिकट मिलेगा और यहां टिकट वितरण में तेरा-मेरा नहीं होगा।
सिंधिया के इस बयान के बाद से उनके समर्थक बेचैन हैं।
कांग्रेस
सिंधिया से उनके समर्थकों को क्या हैं उम्मीदें?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए संधिया के समर्थकों को उम्मीद थी कि भाजपा सिंधिया को मध्य प्रदेश चुनाव में आगे करेगी और वह मुख्यमंत्री के दावेदार होंगे।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सिंधिया को किनारे किये जाने के बाद पिछले एक महीने में उनके कई समर्थक वापस कांग्रेस में लौट आए हैं।
इनमें सबसे बड़ा नाम समंदर पटेल का है, जिन्हें भाजपा ने कार्यसमिति का सदस्य बनाया था।
सिंधिया
प्रदेश की राजनीति में सिंधिया का कितना प्रभाव?
मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा के सामने सिंधिया को लेकर अभी भी दुविधा बनी हुई है और वह अगर संधिया को आगे करती है तो उसे अपने पुराने नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजघराने की वजह से सिंधिया का प्रभाव ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में है और अन्य हिस्सों में उनका प्रभाव नहीं दिखता है।
उनका मानना है कि प्रदेश की राजनीति में उनकी जननेता वाली छवि कभी नहीं रही।
केंद्रीय
क्या टिकट बंटबारे से नाराज है प्रदेश संगठन?
हाल में गृह मंत्री शाह ने ग्वालियर में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में उन्होंने स्पष्ट किया है कि एक सीट पर 10-10 उम्मीदवार हैं, लेकिन टिकट किसी एक को ही मिलेगा।
इससे साफ है कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने टिकट बंटवारे को लेकर प्रदेश संगठन में उपजे विरोध को थामने की कोशिश की है। केंद्रीय नेतृत्व इस चुनाव में सब कुछ प्रदेश संगठन पर नहीं छोड़ना चाह रहा है।
चेहरा
किसके चेहरे पर लड़ा जाएगा चुनाव?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ने जा रही है। यह स्प्ष्ट करते हुए शाह ने ही हाल ही में ग्वालियर प्रदेश कार्य समिति की बैठक के बाद 'मध्य प्रदेश के मन में मोदी' के नारे पर सदस्यता अभियान की शुरुआत की थी।
इसके अलावा उन्होंने भाजपा की प्रदेश सरकार के 20 साल का रिपोर्ट कार्ड भी जारी किया, जिसमें राज्य के लिए केंद्रीय योजनाओं को वर्णन किया गया है।