#NewsBytesExplainer: सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला सौर मिशन आदित्य L-1 क्या है?
क्या है खबर?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का चांद मिशन चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतरने के करीब पहुंच रहा है। इस बीच ISRO ने एक अन्य मिशन आदित्य-L1 से जुड़ा अपडेट भी दिया है।
ISRO ने बताया कि इस मिशन में उपयोग किया जाने वाला SDSC-SHAR सैटेलाइट आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा पहुंच गया है।
माना जा रहा है कि इस महीने के अंत तक सूर्य का अध्ययन करने वाले PSLV-C57/आदित्य-L1 मिशन लॉन्च हो सकता है।
आइये इस बारे में जानते हैं।
सूर्य
सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय मिशन
आदित्य-L1 सूर्य का अध्ययन करने वाला अंतरिक्ष आधारित पहला भारतीय मिशन होगा।
इसे सूर्य-पृथ्वी के सिस्टम में लाग्रेंज बिंदु 1 (L1) के चारों ओर एक हेलो ऑर्बिट में रखा जाएगा। हेलो ऑर्बिट पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है।
L1 बिंदु के चारों ओर हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट बिना किसी अवरोध या ग्रहण के प्रभाव के लगातार को सूर्य को मॉनिटर कर सकता है और रियल टाइम में सौर गतिविधियों की जानकारी देगा।
गुरुत्वाकर्षण
लाग्रेंज बिंदु क्या है?
सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लाग्रेंज बिंदु कहलाता है।
लाग्रेंज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है।
ऐसे में लाग्रेंज बिंदु पर रखी वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी तरफ खींच सकेगी। इससे वस्तु वहीं रहती हैं, जहां उसे रखा जाता है।
लाग्रेंज
लाग्रेंज बिंदु पर नहीं होता ग्रहण का असर
पृथ्वी-सूर्य सिस्टम के ऑर्बिट में स्थित 5 बिंदुओं में से L1 एक बिंदु है और इसे ही लैग्रेंजियन या लाग्रेंज बिंदु-1 कहते हैं।
इसके अलावा अन्य लाग्रेंज बिंदु को L-2, L-3, L-4, L-5 नाम दिया गया है।
इस बिंदु पर रखी वस्तु अधर में लटकी रहती है। लाग्रेंज-1 पॉइंट पर रखे जाने वाले सैटेलाइट पर ग्रहण का असर नहीं होता और यह यहां से बिना किसी रुकावट के लगातार सूरज का अध्ययन कर सकता है।
सफर
L-1 बिंदु पर ऐसे पहुंचेगा आदित्य L-1
आदित्य L-1 स्पेसक्राफ्ट श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च होगा।
पहले इसे लो अर्थ ऑर्बिट में भेजा जाएगा और फिर अंडाकार ऑर्बिट में भेजा जाएगा।
बाद में ऑब्जर्वेटरी की कक्षा को धीरे-धीरे बढ़ाया जाएगा, जिससे अंतरिक्ष यान पृथ्वी के ग्रैविटेशनल स्फियर ऑफ इन्फ्लुएंस (SOI) से बाहर निकलेगा।
यहां से क्रूज फेज शुरू होगा और आदित्य L-1 को लाग्रेंज पॉइंट (L-1) के हेलो ऑर्बिट में भेजा जाएगा।
लॉन्चिंग से L-1 पॉइंट तक पहुंचने में इसे लगभग 4 महीने लगेंगे।
पेलोड
7 पेलोड ले जाएगा आदित्य L-1
आदित्य L-1 अपने साथ रिमोट सेंसिंग और इन सीटू यानी 2 कैटेगरी के कुल 7 पेलोड ले जाएगा।
इसके रिमोट सेंसिंग पेलोड में विजिबल इमिशन लाइन कोर्नोग्राफ (VELC), सोलर अल्ट्रावॉयलट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT), सोलर लो एनर्जी X-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS) और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग X-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS) हैं।
इन सीटू पेलोड्स में आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX), प्लाजमा एनालाइजर पैकेज फर आदित्य (PAPA) और एडवांस्ड ट्राय एक्सल हाई रेज्योल्यूशन डिजिटल मैग्नोमीटर पेलोड हैं।
कार्य
ये होंगे पेलोड के कार्य
आदित्य L1 अंतरिक्ष यान विभिन्न पेलोड के जरिए फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करेगा।
4 पेलोड सीधे सूर्य को देखेंगे और शेष 3 पेलोड लाग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे।
आदित्य L-1 सूर्य के प्रकाश मंडल, क्रोमोस्फीयर, सौर उत्सर्जन, सौर तूफानों और सोलर फ्लेयर का अध्ययन करेगा और पूरे समय सूर्य की इमेजिंग करेगा।
इसके जरिए किए जाने वाले अध्ययन से सूरज के छिपे रहस्यों की जानकारी प्राप्त की जाएगी।
प्रभाव
आदित्य L1 से मिलेगी ये जानकारी
यह रियल टाइम में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने में मदद करेगा। इससे सोलर एक्टिविटीज और रियल टाइम में अंतरिक्ष के मौसम पर उनके असर को समझा जा सकेगा।
कोरोनल हीटिंग, सूर्य के सतह पर होने वाले विस्फोटों और सोलर विंड के बारे में भी कई नई जानकारियां देगा।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, IIT-BHU के भी कुछ खगोल वैज्ञानिक इस मिशन में शामिल हैं और उन्होंने सैटेलाइट के कई डिवाइसेज भी डिजाइन किए हैं।
अध्ययन
क्यों जरूरी है सूर्य का अध्ययन?
सूरज के अंदर और उसके आसपास होने वाली प्रक्रियाओं से सोलर सिस्टम पर पड़ता है।
इसके प्रभाव से सैटेलाइट का ऑर्बिट बदल सकता है और सैटेलाइट सिस्टम बाधित हो सकता है।
सौर मौसम पृथ्वी पर इलेक्ट्रॉनिक संचार को बाधित कर सकते हैं। इसलिये अंतरिक्ष के मौसम को समझने के लिये सौर घटनाओं की जानकारी जरूरी है।
पृथ्वी पर आने वाले तूफानों के बारे में जानने और उन्हें ट्रैक करने, उनके प्रभाव की पूर्व घोषणा के लिये सौर अवलोकन जरूरी है।